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रणजी ट्रॉफी प्लेट चैंपियन बनाने का लक्ष्य

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- किरण वाईकर
पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर ऋषिकेश कानिटकर मध्यप्रदेश रणजी ट्रॉफी टीम की कप्तानी को चुनौती के रूप में ले रहे हैं। उनके अनुसार मध्यप्रदेश टीम बेहद संतुलित है और उनका लक्ष्य मप्र को इस वर्ष रणजी ट्रॉफी प्लेट चैंपियन बनाने का है।

33 वर्षीय कानिटकर ने पुणे सेबताया कि बुची बाबू टूर्नामेंट के दौरान उन्होंने पाया कि मप्र टीम में अपार संभावनाएँ हैं, आवश्यकता बस उन्हें उचित मार्गदर्शन देकर हर खिलाड़ी से बेहतर प्रदर्शन करवाने की है।

उन्होंने कहा कि मप्र के पास संजय पांडे, देवेंद्र बुंदेला, शांतनु पित्रे तथा योगेश गोलवलकर जैसे अनुभवी खिलाड़ी मौजूद हैं, वहीं कई युवा खिलाड़ी भी हैं। हमारे सीनियर खिलाड़ी और बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, वहीं जूनियर खिलाड़ियों ने भी बुची बाबू टूर्नामेंट के दौरान दिखाया कि उनमें सीखने की ललक है।

34 वन-डे मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व कर 339 रन बना चुके ऋषिकेश मप्र की कप्तानी संभालने को बेहद चुनौतीपूर्ण दायित्व मानते हैं, लेकिन साथ ही उन्हें विश्वास है कि वे टीम की प्रगति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।

उन्होंने कहा मैं रविवार को इंदौर पहुँच रहा हूँ, जहाँ चयन समिति प्रमुख नरेंद्र हिरवानी तथा अन्य सदस्यों के साथ बैठकर टीम के बारे में चर्चा करूँगा। उसके बाद ही टीम के लिए कुछ अल्पकालीन लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ेंगे।

मप्र को इस वर्ष रणजी ट्रॉफी प्लेट 'बी' स्पर्धा में विदर्भ, बंगाल, असम, सर्विसेज तथा त्रिपुरा का सामना करना है। कानिटकर के अनुसार किसी भी टीम को हलका नहीं आँका जा सकता है, फिर भी उन्हें लगता है कि टीम को सबसे ज्यादा चुनौती बंगाल से मिलेगी।

टेस्ट मैचों में और खेल सकता था : 1999-2000 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे के बारे में इस वामहस्त बल्लेबाज ने कहा कि मैंने वहाँ कंगारूओं के खिलाफ 2 टेस्ट मैचों में 75 रन बनाए। स्वदेश वापसी के बाद मुझे टीम से निकाल दिया गया।यदि मुझे आगे भी मौका दिया जाता तो मैं और बेहतर प्रदर्शन कर सकता था।

ज्यादा मौका नहीं मिलता था : बाएँ हाथ के बल्लेबाज तथा ऑफ स्पिन गेंदबाज ने वन-डे अंतरराष्ट्रीय मैचों के बारे में कहा कि उस समय भारतीय बल्लेबाजी पंक्ति बेहद मजबूत थी, इस वजह से मुझे बल्लेबाजी पर 6 नंबर के बाद ही उतरना पड़ता था। जिसकी वजह से रन बनाने के अवसर कम ही रहते थे। यही कारण था कि मैं बड़ा स्कोर नहीं बना पाया।

पिता से मिली प्रेरणा : मेरे पिता हेमंत कानिटकर भारत की तरफ से 2 टेस्ट मैच खेल चुके थे। वे 87 प्रथम श्रेणी मैचों में 5000 से ज्यादा रन भी बना चुके थे। इस वजह से घर में शुरू से ही क्रिकेट का माहौल मिला। मैं अपने पिताजी से ही प्रेरित होकर इस खेल में आया और शुरुआती मार्गदर्शन भी मुझे उन्हीं से मिला।

यादगार लम्हा : 1998 में ढाका में इंडिपेंडेंस कप के फाइनल में सकलैन मुश्ताक की गेंद पर चौका लगाकर भारत को दिलाई गई जीत मेरे क्रिकेट करियर का सबसे यादगार लम्हा है। उस वक्त हमें 2 गेंदों पर जीत के लिए 3 रनों की जरूरत थी और नॉन स्ट्राइकर छोर पर खड़े श्रीनाथ ने मुझसे कहा था कि कुछ भी हो जाए गेंद खाली नहीं जाए और फिर मैंने चौका लगाया और इतिहास बन गया। हर खिलाड़ी चाहता है कि उसे ऐसा मौका मिले और मैं इस मामले में भाग्यशाली रहा कि मौके को भुना पाया।

पेशेवर लेकिन फीस सामान्य खिलाड़ी की : 2 टेस्ट मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके कानिटकर भले ही पेशेवर खिलाड़ी के रूप में मप्र टीम से जुड़े हैं, लेकिन वे पेशेवर खिलाड़ी के रूप में पारीश्रमिक नहीं ले रहे हैं।

इस मामले में वे टीम के एक सामान्य खिलाड़ी के रूप में ही मैच फीस लेंगे। इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि मेरा मकसद क्रिकेटर के रूप में उन्नति करना है। मैंने सोचा कि सामान्य खिलाड़ी के रूप में खेलना ज्यादा चुनौतीपूर्ण रहेगा और मैं इस स्थिति में अपने तथा टीम के लिए ज्यादा बेहतर साबित हो सकूँगा। अपने आप में परिवर्तन लाने का मुझे इससे बेहतर मौका नहीं मिल सकता है।

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