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लगाओ सौ शतक सचिन...

मास्टर ब्लास्टर के जन्मदिन पर विशेष

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भारत और पाकिस्तान के बीच कराची में टेस्ट मैच। इमरान खान, वसीम अकरम और वकार यूनुस की तूफानी गेंदों का सामना करने के लिए 16 साल का एक बच्चा बल्ला हाथ में लिए मैदान में कदम रखता है। यह दृश्य है नवंबर 1989 में खेले गए मैच का। तब यह यकीन करना थोड़ा मुश्किल था कि मासूम सा दिखने वाला नन्हा सचिन एक दिन मास्टर ब्लास्टर बनेगा। 16 वर्ष की छोटी सी उम्र से सचिन लगातार क्रिकेट खेल रहे हैं...

आदमी भविष्य की चिंता में वर्तमान को तबाह कर स्वयं की जिंदगी को साक्षात नर्क में बदल देता है।
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खेलों की दुनिया इससे बची हो, ऐसा नहीं है। आखिर खिलाड़ी भी एक इंसान होता है। वह आम आदमी से ज्यादा प्रसिद्ध और धनवान होता है, परन्तु महत्वाकांक्षा का स्तर समान ही है।

सचिन तेंडुलकर अपने जीवन के 35 बसंत पूरे कर चुके हैं और अभी भी खेलना चाहते हैं। उनके प्रशंसक भी चाहते हैं कि मास्टर बल्लेबाज हमेशा क्रिकेट मैदान पर ही नजर आएँ। लेकिन यह संभव नहीं, कभी तो बल्ला टाँगना पड़ेगा। ऐसे में सवाल यह है कि जब खेलों से निवृत्त होंगे तो क्या करेंगे।

  सचिन के नाम एक दिवसीय और टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक शतक दर्ज हैं। सचिन की बल्लेबाजी के बारे में ज्यादा कुछ कहना सूरज को दीया दिखाने की तरह है। सचिन आईपीएल में मुंबई इंडियंस के कप्तान हैं। 24 अप्रैल 1973 को जन्मे सचिन की आज 35वीं वर्षगाँठ है      
बीसीसीआई आजकल पेंशन दे रहा है, लेकिन तेंडुलकर को पेंशन की चिंता नहीं। सचिन ने 19 वर्ष के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में इतना धन कमाया है कि किसी के सामने हाथ फैलाना तो दूर इसके बारे में सोचना भी नामुमकिन है। वे वर्तमान में दुनिया में सबसे ज्यादा कमाने वाले क्रिकेटर हैं। इससे एक बात तो तय है कि क्रिकेट छोड़ने के बाद भी सचिन चैन से रह सकते हैं, लेकिन क्या वे रह पाएँगे।

इतना नाम और दाम कमाने के बाद उसे कायम रखना चुनौती होती है। क्रिकेट से दूर होने पर ख्याति कम होने लगती है। इतना पैसा, शोहरत, दौलत उन्हें जिस खेल की वजह से मिली है उसे वे चाहकर भी नहीं छोड़ सकते। आप मिसालें देख लीजिए सुनील गावस्कर, रवि शास्त्री, संजय मांजरेकर कहीं न कहीं क्रिकेट से जुड़े हैं, इसलिए ये आज भी सितारा हैसियत रखते हैं। सचिन के मुंबई में दो और एक बंगलोर में रेस्टोरेंट हैं।

पत्नी अंजलि भी डॉक्टर हैं। न जाने कहाँ-कहाँ मकान और बंगले हैं। सचिन के ससुर एक उद्योगपति हैं और मास्टर ब्लास्टर से जुड़े वित्तीय मामले वे और सचिन के बड़े भाई अजित देखते हैं। क्रिकेट द्वारा कमाए धन का उपयोग वे स्वयं की कंपनी शुरू करने में कर सकते हैं। वैसे इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की शुरुआत के समय यह खबर सामने आई थी कि सचिन भी एक टीम की फ्रैंचाइजी लेना चाहते हैं, लेकिन नियमों के कारण वे ऐसा नहीं कर सके।

कोच बने तो : सचिन को क्रिकेट का बहुत ज्ञान है और जूनियर खिलाड़ियों को टिप्स देना भी उन्हें अच्छा लगता है। ऐसे में सचिन भारत के कोच बन सकते हैं। भारतीय बोर्ड भी यही चाहेगा क्योंकि इससे दो फायदे होंगे। पहला तो टीम को ऐसा कोच मिलेगा जिसका सभी आदर करते हैं। साथ ही विदेशी कोच की आलोचना करने वालों पर भी विराम लगेगा। कोच के रूप में भी वे तगड़ी कमाई कर सकते हैं। बोर्ड ने ग्रेग चैपल को करोड़ों रुपए दिए जबकि गैरी कर्स्टन को करीब 1 करोड़ 20 लाख रुपए प्रति वर्ष के मानदेय पर दो वर्ष के लिए कोच बनाया गया है। निश्चित ही सचिन कोच बनते हैं तो वे इन दोनों ही खिलाड़ियों से ज्यादा धन कमाएँगे।

अखबारों में कॉलम लिखकर : पूर्व दिग्गज खिलाड़ी अक्सर अपने नाम और क्रिकेट के ज्ञान का उपयोग समाचार पत्रों में कॉलम लिखने के लिए करते हैं और यह विकल्प सचिन के लिए भी उपलब्ध है।

क्रिकेट कमेंटेटर बनकर : सचिन अन्य क्रिकेटरों की तरह क्रिकेट कमेंट्री करें इसकी संभावना कम है। कमेंट्री करने के लिए भी नैसर्गिक प्रतिभा होना चाहिए। दूसरी ओर सचिन शब्दों से खेलने में विश्वास नहीं रखते या दूसरे शब्दों में वे थोड़े मितभाषी हैं। फिर भी गावस्कर और शास्त्री के नक्शेकदम पर चलते हुए वे कभी आँखों देखा हाल सुनाते हुए नजर आ जाएँ तो हैरानी नहीं होना चाहिए।

विज्ञापन जगत में : वैसे तो क्रिकेट मैदान से दूर होते ही कंपनियाँ क्रिकेटरों से किनारा कर लेती हैं। लेकिन सचिन की भारत में छबि कुछ और ही है। वे सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में गिने जाते हैं और कई कंपनियाँ उनके साथ होंगी। सचिन का क्रिकेट के बाद का भविष्य अभी आना बाकी है। इसका कारण यह है कि वे स्वयं को उस मुकाम तक पहुँचा चुके हैं जहाँ दुनिया छोटी लगती है। फिर भी उन्हें फैसला जल्द ही करना होगा।

दोस्ती की दास्तान : यदि सचिन के जीवन से जुड़ी बातें हों और उसमें विनोद कांबली का उल्लेख न हो तो वह कहानी अधूरी मानी जाएगी। तेंडुलकर और कांबली की दोस्ती जगजाहिर है। इनकी कहानी किसी फिल्म से कम नहीं। दो बच्चे जो बचपन से ही चैंपियन थे और बाद में भारतीय टीम के लिए भी खेले। एक दाएँ हाथ का बल्लेबाज तो दूसरा बाएँ हाथ का। दोनों की मुलाकात शारदा आश्रम स्कूल में हुई।

कांबली आज भी पिछले दिनों को याद करते हैं। उनके अनुसार-जब कोच रमाकांत आचरेकर समर कैम्प के लिए 50 खिलाड़ियों को चुनने वाले थे तो सचिन बहुत नर्वस था। वह इतना तनाव में थे कि कोई भी गेंद ठीक से नहीं खेल सका। इसे देख कोच को सचिन की बल्लेबाजी अच्छी नहीं लगी और उन्होंने उसे मना कर दिया। फिर क्या था सचिन वहीं रोने लगा और एक और मौका माँगा। हालाँकि वह दूसरे दिन अपने भाई अजित के साथ फिर आया, इस बार सचिन की प्रतिभा ने सभी को प्रभावित किया।

ये दोनों दोस्त फरवरी 1988 में सुर्खियों में आए। सेंट जेवियर कॉलेज के खिलाफ हैरिस शील्ड स्पर्धा के तीन दिनी सेमीफाइनल मैच के दौरान दोनों ने तीसरे विकेट के लिए 664 रनों की साझेदारी कर डाली। सचिन ने बनाए नाबाद 326 तो कांबली ने नाबाद 349 बनाए। इस पारी का लेखा-जोखा रखने के लिए स्कोर शीट के तीन पेज भर गए। उस पारी के बारे में कांबली ने कहा- वह मैच वाकई यादगार था। आजाद मैदान पर उस दिन गेंदबाज इतने दुःखी थे कि दूसरे दिन मैदान पर आना नहीं चाहते थे। एक गेंदबाज को तो रोना ही आ गया।

क्षेत्ररक्षकों की गेंद को पकड़ने में दिलचस्पी ही खत्म हो चुकी थी। सचिन-कांबली को बल्लेबाजी करने में इतना मजा आ रहा था और कोच पारी घोषित करना चाहते थे। तब दोनों ने पैवेलियन की ओर देखना ही बंद कर दिया। दोनों के बीच हुई यह साझेदारी क्रिकेट के किसी भी स्वरूप में सबसे बड़ी साझेदारी थी। हालाँकि इस रिकॉर्ड तो तोड़ने का कारनामा भी इन्हीं के जैसे दो बच्चों ने किया। 2006 में हैदराबाद के दो अंडर-13 टीम के खिलाड़ियों ने यह कीर्तिमान तोड़ा।

सचिन और विनोद दोनों को ही वड़ा-पाव पसंद है। बचपन में ये सभी दोस्त इस बात की शर्त लगाया करते थे कि कौन ज्यादा वड़ा-पाव खाता है। बचपन तो बीत गया, लेकिन वड़ा-पाव अब भी इन्हें वही दिन याद कराता रहता है। सचिन को हर शतक पर कांबली वड़ा-पाव बतौर उपहार दिया करते थे। यह सिलसिला आज भी जारी है। (नईदुनिया)

सचिन आँकड़ों में
मैच
रन
100
50
विकेट
टेस्ट
147
11782
39
49
42
वनडे
417
16361
42
89
154

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