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टीम इंडिया को नहीं चाहिए कोच....!

हमें फॉलो करें टीम इंडिया को नहीं चाहिए कोच....!

सुधीर शर्मा

टीम इंडिया की इंग्लैंड में मस्ती
विश्व का सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड...विश्व के सबसे स्टाइलिश और सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाले क्रिकेटर... जनता जिन क्रिकेटरों को भगवान से भी ज्यादा मानती हो... जहां टीम की जीत के लिए देशभर में हवन-पूजन किए जाते हों, ऐसी टीम और बोर्ड कोच और कप्तान के झगड़े के कारण चर्चा में बने हुए हैं। अनिल कुंबले जैसे महान क्रिकेटर के बारे में यह कहा जाए ‍‍कि कोच के रूप में उनकी स्टाइल को कप्तान पसंद नहीं करते हैं तो इसे आप क्या कहेंगे...
 
और कोच और कप्तान का यह झगड़ा नया नहीं है। इससे पहले भी कप्तान और कोच में नहीं बनी है और इसका खामियाजा टीम को भुगतना पड़ा है। याद कीजिए चैपल और गांगुली विवाद। विदेशी कोच ग्रैग चैपल ने टीम  इंडिया में फूट डालने की हर संभव कोशिश की थी। खबरें तो दो महान क्रिकेटरों राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली के बीच आई और इस खटास की असली वजह कोच ग्रैग चैपल ही थे। 
 
ग्रैग चैपल खुद को टीम का कोच और बॉस अधिक समझते थे। यहां तक कि वे कई‍ क्रिकेटरों की शिकायत बोर्ड से कर भी चुके थे। ग्रैग चैपल कई बड़े खिलाड़ियों को बाहर बैठाना चाहते थे। इसके बाद बोर्ड ने देशी क्रिकेटर को टीम की सौंपनी चाही और 1983 में वर्ल्ड कप दिलाने वाले कपिल देव को टीम का कोच बनाया गया, लेकिन वे भी टीम के लिए कोई जादू नहीं कर पाए और उनके कोच रहते सचिन तेंदुलकर को टीम की कप्तानी छोड़नी पड़ी। इस दौरान मनोज प्रभाकर ने कपिल देव पर खराब खेलने के लिए रिश्वत देने का आरोप लगाया और उन्हें कोच पद छोड़ना पड़ा। हालांकि जांच में वे निर्दोष पाए गए।
 
दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज गैरी कस्टर्न इसका अपवाद हो सकते हैं। टीम इंडिया के कोच के रूप में उन्होंने टीम को नई ऊंचाई दी। कप्तान महेंद्रसिंह धोनी और कर्स्टन की सूझबूझ से टीम इंडिया एक नई ऊंचाई तक पहुंची। टीम इंडिया ने 2008 और 2009 के बीच लगातार पांच एकदिवसीय सीरीज जीतीं। 
 
कर्स्टन की सबसे बड़ी उपलब्धि जो रही वह है टीम इंडिया का वर्ल्ड कप जीतना। 2011 में टीम इंडिया ने जब 28 साल के बाद वर्ल्ड कप जीता था, तब गैरी क्रिस्टन टीम इंडिया के कोच थे। डंकन फ्लेचर टीम इंडिया ने भी टीम इंडिया के कोच पद की जिम्मेदारी संभाली। रवि शास्त्री टीम डायरेक्टर और कोच भी बने। 

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क्या यह हंसी दिखावटी थी...

बीसीसीआई के सामने परेशानी यह आती है कि वह अगर किसी विदेश कोच को नियुक्त करता है तो वह टीम के बांटने की कोशिश करता है (गैरी कस्टर्न इसके अपवाद हैं) और अगर किसी भारतीय क्रिकेटर को कोच बनाता है तो टीम के कप्तान और कोच अहम टकराने लगता है। जैसा कोहली और कुंबले विवाद में स्पष्ट देखा जा सकता है। टीम के इंडिया के क्रिकेटरों के व्यवहार से तो यही लगता है कि उन्हें कोच की आवश्यकता ही नहीं है। 
 

 
जब टीम इंडिया मैदान पर उतरती है तो 11 क्रिकेटर ही नहीं, बल्कि सवा सौ करोड़ जनता की भावनाएं उनके साथ होती हैं क्योंकि भारत जैसे देश में क्रिकेट महज खेल नहीं धर्म बन चुका है। क्रिकेट का आम प्रशंसक यही चाहता है कि जल्द से जल्द इस 'कोच प्रकरण' का अंत हो और टीम इंडिया में फिर से जीत का जोश और जुनून दिखे। वह वेस्टइंडीज के तेज और उछाल भरे पिचों पर पांच वन-डे मैचों के अलावा एक टी-20 मैच में जीत का सेहरा बांधकर वतन लौटे...

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