Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

भारतीय क्रिकेट के शान से बढ़ते कदम

Advertiesment
हमें फॉलो करें भारतीय क्रिकेट के शान से बढ़ते कदम
- प्रवीण सिन्ह
राहुल द्रविड़ का फॉर्म में लौटना भारतीय क्रिकेट के सुखद दौर में लौटने की शुरुआत है। द्रविड़ ने मोहाली में चल रहे दूसरे टेस्ट में मुद्दत बाद शतकीय पारी खेलते हुए न केवल फॉर्म में वापसी की, बल्कि अपने उन आलोचकों के मुँह भी बंद कर दिए जो उन्हें (द्रविड़ को) अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लेने की सलाह दे रहे थे।

ND
इसके अलावा इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीतने की ओर अग्रसर भारतीय टीम अब शान के साथ टेस्ट रैंकिंग में दूसरे स्थान पर काबिज होने की तैयारी करेगी। भारतीय टीम अंक तालिका में दक्षिण अफ्रीका से महज एक अंक पीछे है और द्रविड़ के फॉर्म में लौटने के बाद टीम का मनोबल इतना बढ़ गया है कि इंग्लैंड के लिए उसे रोक पाना कतई आसान नहीं होगा।

पिछले विश्व कप की असफलता के बाद हालाँकि टीम ने कई सफलताएँ हासिल कीं, लेकिन उस दौरान भारतीय क्रिकेट में उथल पुथल का दौर भी जारी रहा। विश्व कप के ठीक बाद राहुल द्रविड़ ने अचानक कप्तानी छोड़कर क्रिकेटप्रेमियों को सकते में डाल दिया।

इसके बाद भारतीय क्रिकेट में कलह पैदा करने वाले गुरु ग्रेग चैपल की छुट्टी कर टेस्ट टीम की कमान अनिल कुंबले को सौंप कर टीम को पटरी पर लाने की कोशिश की गई। यही नहीं, महेंद्रसिंह धोनी को वनडे और ट्वेंटी-२० टीम की कमान सौंपकर भविष्य के कप्तान के रूप में उन्हें तैयार किया गया। लेकिन इस दौरान अनुभवी खिलाड़ियों की जगह टीम में युवाओं को शामिल करने के नाम पर खेल चलता रहा।

सौरव गांगुली सबसे पहले शिकार बने और उनको टेस्ट और वनडे टीम से बाहर कर दिया गया। हालांकि उन्होंने वापसी का जबरदस्त जज्बा दिखाते हुए टीम में दोबारा जगह बनाई और सम्मान के साथ क्रिकेट को अलविदा कहा। गांगुली ने साबित किया कि उन्हें या अन्य सीनियर खिलाड़ियों को टीम से बाहर करने की माँग जायज नहीं थी। इसके बावजूद क्रिकेट में हलचल मचाने वाले आलोचकों की नजर गांगुली के बाद वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ पर पड़ गई।

द्रविड़ चूँकि लंबे अरसे से फॉर्म में नहीं चल रहे थे, इसलिए उन्हें टीम से बाहर करने की चर्चा जोर पकड़ने लगी। यह जानते हुए कि कौशल और तकनीक के मामले में द्रविड़ टीम इंडिया के किसी भी खिलाड़ी से कमजोर नहीं हैं, टीम प्रबंधन ने उन पर भरोसा बनाए रखा।

यह एक नाजुक दौर था जिसमें कप्तान धौनी सहित टीम के सभी खिलाड़ियों ने द्रविड़ का भरपूर साथ दिया। यह सही है कि द्रविड़ का खराब दौर चल रहा था, लेकिन गागुंली के बाद आनन-फानन में अन्य सीनियर खिलाड़ियों को बाहर कर देने से टीम इंडिया का भी वही हश्र हो जाता जिस दौर से इन दिनों आस्ट्रेलियाई टीम गुजर रही है।

विश्व चैंपियन होने के बावजूद ग्लेन मैग्राथ, शेन वॉर्न और एडम गिलक्रिस्ट के संन्यास लेने के बाद उनकी टीम का प्रदर्शन निरंतर खराब हो रहा है। पहले जो ऑस्ट्रेलियाई टीम अजेय मानी जाती थी, आज भारत, दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड के हाथों पिट जा रही है। अब टीम इंडिया भी उस स्थिति में न आ जाए इसके लिए बेहतर होगा कि नाहक होहल्ला मचाने वालों की परवाह न करते हुए टीम को स्थिरता देने की कोशिश की जाए।

इस दौरान उभरते हुए युवाओं को टीम के साथ रखकर उन्हें रोटेशन के तहत अनुभव दिलाया जा सकता है, तभी एक सशक्त टीम का निर्माण होगा और भारतीय टीम की प्रतिष्ठा बरकरार रहेगी। गौतम गंभीर इसका एक उदाहरण हैं। वह अनुभव हासिल कर इस वर्ष 1000 से ज्यादा टेस्ट रन बनाकर टीम के स्टार खिलाड़ी बन चुके हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi