1975 में जब पहला विश्व कप खेला गया था, तब से लेकर 2003 के विश्व कप तक टेस्ट खेलने वाले सभी देशों ने इसमें भाग लिया था, लेकिन प्रत्येक आयोजन के साथ ही प्रतियोगी टीमों की संख्या में भी परिवर्तन होता गया।
1975 में पूर्व अफ्रीका और कनाडा को प्रवेश दिया गया था। दोनों टीमों को टेस्ट का दर्जा प्राप्त नहीं था। इसके बावजूद यह देश विश्व कप में खेले। श्रीलंका की टीम भी टेस्ट का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकी थी। 1979 में पूर्व अफ्रीका को प्रवेश नहीं दिया गया, जिससे भाग लेने वाली टीमों की संख्या कम होकर आठ पर पहुंच गई।
नई टीमों की विश्व कप के दरवाजे पर दस्तक 1983 में जिम्बॉब्वे ने धमाकेदार तरीके से विश्व कप में पर्दापण किया। 1987 में वही टीमें खेलीं, जो 1983 में खेली थी। 1992 में दक्षिण अफ्रीका ने पहली मर्तबा विश्व कप में खेलने का सम्मान प्राप्त किया। 1996 में संयुक्त अरब अमीरात, कैन्या, हॉलैंड की टीमें खेलीं, तो 1999 में बांग्लादेश और स्कॉटलैंड की टीमों ने भी विश्व कप में दस्तक दी।
नौवे विश्व कप में 16 टीमों की जंग वेस्टइंडीज की सरजमी पर होने जा रहे 2007 के विश्व कप में कुल 16 टीमें भाग ले रही हैं, जो इस प्रकार हैं- 1. दक्षिण अफ्रीका, 2. ऑस्ट्रेलिया, 3 इंग्लैंड, 4. न्यूजीलैंड, 5. पाकिस्तान, 6. भारत, 7. श्रीलंका, 8. वेस्टइंडीज, 9. जिम्बॉब्वे, 10. बांग्लादेश, 11. बरमूडा, 12. हॉलैंड, 13. कनाडा, 14. केन्या, 15 आयरलैंड और 16 स्कॉटलैंड।
60 ओवर घटकर 50 रह गए पहले तीनों विश्व कप में 60-60 ओवर के मैच होते थे और प्रत्यके गेंदबाज को 12 ओवर गेंदबाजी करने का अधिकार था, लेकिन यह परंपरा 1987 में समाप्त हो गई। 1987 से मैच के ओवरों की संख्या 60 से घटाकर 50 कर दी गई और प्रत्येक गेंदबाज के ओवरों की संख्या 10 कर दी गई। यह नियम अब तक बरकरार है।
विश्व कप में रंगीन कपड़े और सफेद गेंद विश्व कप में रंगीन कपड़ों, सफेद गेंदों, काली साइड स्क्रीन और फ्लड लाइट का प्रयोग केरी पैकर की देन है। पैकर के सर्कस में यह तमाम चीजें 1977 के आसपास प्रारंभ हुई थी, जिसे विश्व कप में आते-आते कई साल लग गए। यह तमाम प्रयोग 1992 के विश्व कप से प्रारंभ हुए।
विश्व कप में तटस्थ अंपायरों का प्रयोग 1986 में क्रिकेट में पहली मर्तबा तटस्थ अम्पायर का प्रयोग हुआ। पहले के विश्व कप के सभी मैचों की अम्पायरिंग इंग्लैंड के अम्पायरों ने की थी लेकिन 1987 के विश्व कप से मैदान पर तटस्थ अम्पायर देखने को मिले और 1992 के विश्व कप में तीसरा अम्पायर तो आया ही, साथ ही मैच रैफरी की नियुक्ति भी शुरू हो गई। 1983 से 1996 के विश्व कप में क्षेत्ररक्षण में अभूतपूर्व सुधार आया।
रिलायंस कप ने टूटे संबंधों को जोड़ा विश्व के जरिए ही भारत और पाकिस्तान नजदीक आए, जिन्होंने मिलकर रिलायंस कप का आयोजन किया था। रिलायंस विश्व कप में दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विश्व कप क्रिकेट 21वीं सदी में आने के बाद काफी बदल गया है।
कम्प्यूटर पर पहले से ही रणनीतियाँ तय कर ली जाती हैं और उन्हें मैदान में अमलीजामा पहनाय जाता है। क्रिकेट पूरी तरह व्यावसायिक हो गया है। बल्लेबाजों ने भी परम्परागत शैली को ताक में रखकर बेसबॉल हिटिंग को अपना लिया है। मैदान विज्ञापनों से भरे पड़े रहते हैं और खिलाड़ियों का खेलने का अंदाज भी बदला-बदला नजर आता है।
लहरों पर सवार क्रिकेट का सफर क्रिकेट ने एक सदी से भी ज्यादा का सफर तय किया है। कभी वह इंग्लैंड के हरे-भरे मैदानों पर फला-फूला तो कभी कैलिप्सो की धुन पर चाय के, गन्ने के बानागों में महका, कंगारुओं सी कुलाँचे भरता, सिंधु, सतलज की लहरों पर तैरता, रंगभेद से आहत हुआ और फिर किबी की तरह उड़ना भूल गया।
इस महान खेल को अनेक महान खिलाड़ियों ने अपनी का और मेहनत से आगे बढ़ाया है। बॉब ग्रेस से लेकर अद्वितीय ब्रेडमैन और तमाम महान क्रिकेटिंग हस्तियों की तपस्या का परिणाम हमारी आँंखों के सामने है।