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विश्व कप ने देखे कई बदलाव

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हमें फॉलो करें 1975 से प्रारंभ हुए विश्व कप ने 2007 बदलाव
, सोमवार, 4 जून 2007 (03:46 IST)
क्रिकेट ने काफी बदलाव देखे हैं। इस समय वह अपने आधुनिकतम दौड़ से गुजर रहा है। क्रिकेट को हम फुटबॉल की तरह ग्लोबल गेम तो नहीं मान सकते, लेकिन भारतीय उप-महाद्वीप के साथ ही इसे खेलने वाले देशों में इसकी लोकप्रियता का कोई सानी नहीं है।

1975 से प्रारंभ हुए विश्व कप ने 2007 तक एक लंबा सफर तय किया है और तमाम चुनौतियों का सामना करने के बाद परिवर्तनों के साए में वह लोकप्रियता के नए आयाम स्थापित करने में सफल रहा है।

पहला वन-डे का गवाह बनाएमसीजी का मैदान : पहला एकदिवसीय मैच 1971 को एमसीजी मैदान पर खेला गया था और इसके बाद से लेकर करीब 32 सालों में फटाफट क्रिकेट कई दौर से गुजरता गया। क्रिकेट की लोकप्रियता को आगे बढ़ाने में भारतीय उपमहाद्वीप का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। भले ही बात खिलाड़ियों की हो या फिर आयोजन की। भारतीय उपमहाद्वीप में दो मर्तबा विश्व कप का सफलतम आयोजन और पड़ोसी देशों के साथ मिलकर किया गया।

रिलायंस कप ने विश्व कप का कायाकल्प किया : 1987 का रिलायंस विश्व कप यदि एक सफल आयोजन था तो 1996 का विश्व कप उससे कहीं ज्यादा कामयाबियों से भरपूर था। खिलाड़ियों को अधिक पैसा मिला, क्रिकेट बोर्डों को गारंटी मिली और आयोजन स्थलों का भी कायाकल्प हुआ। यहां तक कि दूधिया रोशनी में भारत में कई प्रमुख सेंटरों पर मैच खेलने की सुविधा मौजूद है।

जब पहली बार डे-नाइट का मैच खेला गया : 1992 में पहली बार क्रिकेट दिन-रात में खेला गया था और उसके बाद से तो डे-नाइट मैचों का फैशन ही चल पड़ा। किसी ने क्रिकेट में कल्पना भी नहीं की थी कि दो अम्पायरों के बाद तीसरे अम्पायर की सेवाएं ली जाएंगी और तकनीक को इतना विकसित कर दिया जाएगा कि मैदान में कोई भी गलत फैसला नहीं होगा।

यह भी उम्मीद की गई थी कि एक दिन में दो-तीन बार गेंद बदली जाएगी और यह भी सोचा नहीं गया था कि सफेद कपड़े उतरकर उनका स्थान रंगीन कपड़े ले लेंगे। यहां तक कि यह कल्पना भी नहीं की गई थी कि मैदान से होने वाली खिलाड़ियों की खुसुर-फुसुर तक टेलीविजन में सुनाई देगी, लेकिन बदले हुए क्रिकेट में आज यह सब संभव है।

आधुनिक क्रिकेट का जन्मदाता ऑस्ट्रेलिया : क्रिकेट का जन्मदाता भले ही इंग्लैंड को माना जाता हो, लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने आधुनिक क्रिकेट को जन्म देने का काम किया है। 1975 के विश्व कप के दो साल बाद ऑस्ट्रेलिया के धनकुबेर केरी पैकर ने अपना क्रिकेट सर्कस चालू करके पूरी दुनिया के क्रिकेट को हिलाकर रख दिया था। पैकर के सबसे बड़े सहयोगी और सलाहकार टोनी ग्रेक थे।

पैकर ने काफी कानूनी लड़ाइयाँ लड़ीं। भारत को छोड़कर वे क्रिकेट खेलने वाले देश के नामी क्रिकेटरों को खरीदने में सफल रहे। क्रिकेट इतिहास की यह सबसे बड़ी महत्वपूर्ण घटना थी। पैकर ने बता दिया था कि वे अमेरिका जाकर गोल्फ खेलने के लिए बोइंग-747 विमान खरीद सकते हैं तो फिर वे क्या नहीं कर सकते।

पैकर ने क्रिकेट में पैसों के बीज बोए : पैकर ने सिडनी की पीबीएल मार्केटिंग कंपनी से अनुबंध करके चैनल-9 जैसे टीवी नेटवर्क को खोला। चैनल-9 ने इतनी प्रगति कीकि आज भी उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। पैकर ही वह शख्स थे, जिन्होंने क्रिकेट में पैसों के बीज बोए और खिलाड़ियों को अहसास करायाकि वे कितने कीमती हैं। आज क्रिकेटरों पर पैसों की बरसात हो रही है, जिसका तमाम श्रेय पैकर के हिस्से में ही जाता है।

क्रिकेट की सल्तनत चलाने वालों में हंगामा : 1975 से लेकर 1983 तक लगातार तीन विश्व कप इंग्लैंड में आयोजित हुए। 1983 में भारत की अप्रत्याशित खिताबी जीत के बाद भारत-पाकिस्तान ने संयुक्त रूप से जब चौथे विश्व कप की मेजबानी का प्रस्ताव रखा तो लंदन में क्रिकेट की सल्तनत चलाने वालों में हंगामा मच गया। वे ख्वाब में भी नहीं सोच सकते थे कि उनकी मेजबानी को कोई चुनौती देने के लिए कमर कस रहा है।

जब पहली बार विश्व कप इंग्लैंह से बाहर निकला : भारत-पाकिस्तान की योजना ने साकार रूप लिया और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने घुटने टेकते हुए मेजबानी इन दोनों देशों की झोली में डाल दी। यह पहला अवसर था, जब विश्व कप ने इंग्लैंड से बाहर अपने कदम निकाले थे।भारतीय उद्योग को नई दिशा देने वाले धीरूभाई अंबानी के सहयोग से 1987 के विश्व कप को रिलायंस कप नाम दिय गया।

भारत की नकल दूसरे देशों ने की : भारत की नकल किस प्रकार दूसरे देश करते हैं, इसका उदाहरण अगले विश्व कप में मिला, जब 1992 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने मिलकर पाँचवें विश्व कप की मेजबानी की। ऑस्ट्रेलिया से ही दिन-रात के मैचों की शुरुआत हुई, यही नहीं, तीन अम्पायरों का प्रयोग और विवादास्पद वर्षा नियम भी इसी विश्व कप से क्रिकेट में जन्मे।

कुल मिलाकर ऑस्ट्रेलिया पहुँचते-पहुँचते विश्वकप पूरी तरह बदल चुका था। सब कुछ चकाचौंध से भरपूर था। खिलाड़ियों की जेबें डॉलरों से भरी थी और क्रिकेट का पूर्ण रूप से व्यावसायिकरण हो गया था। बहुराष्ट्रीय कंपनियों में प्रायोजक बनने की दौड़ होने लगी थी।

इमरान- राणातुंगा ने विश्व कप को चूमा : 1992 में पाकिस्तान इमरान खान के नेतृत्व में विश्व विजेता बना। 1996 के विश्व कप की जिम्मेदारी भारत, पाकिस्तान व श्रीलंका ने संयुक्त रूप से वहन की और श्रीलंका ने अर्जुन राणातुंगा की कप्तानी में श्रीलंका ने तमाम समीकरणों को बदलकर विश्व कप जीतने का सम्मान पाया।

स्टीव की परंपरा को पोंटिंग ने आगे बढ़ाया : 1999 में क्रिकेट एक बार फिर अपनी जन्मस्थली इंग्लैंड में लौटा, लेकिन यहाँ पर कंगारू विश्व को ले उड़े। स्टीव वॉ की अगुवाई वाली टीम विश्व विजेता बनी। 2003 के विश्व कप की मेजबानी दक्षिण अफ्रीका ने की और यहाँ भी रिकी पोंटिंग की कप्तानी वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम चैम्पियन बनी। फाइनल में उसने भारत ने को हराया। वेस्टइंडीज में 2007 के विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया को अपनी 'खिताबी हैट्रिक' पूरी करने का अवसर है।

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