अजय बर्वे
अपने पिता की इच्छा पूरी करते हुए गणित विषय लेकर इंजीनियर बने लेकिन क्रिकेट के लिए अपने लगाव को कम नहीं कर पाए और आखिरकार क्रिकेट को अपना लक्ष्य बनाकर भारतीय क्रिकेट के एक महान सितारे बने।
अजित लक्ष्मण वाडेकर, इस नाम को सुनते ही याद आती है एक ऐसे खिलाड़ी की, जिसने अपना नाम भारतीय क्रिकेट में सुनहरे शब्दों में लिख दिया। 1971 के दौरान वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के विरुद्ध यादगार जीत दिलान वाली कप्तानी के लिए उनका नाम हमेशा याद किया जाता रहा है।
अजित वाडेकर का जन्म 1 अप्रेल 1941 को मुंबई में हुआ उन्होने सन् 1958-59 में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण किया और अपने लाजवाब प्रदर्शन की बदौलत भारत की राष्ट्रीय टीम में जगह निश्चित की और वेस्टइंडीज के खिलाफ अपने घेरलू मैदान पर अपने टेस्ट करियर का आगाज किया।
उन्होंने अपना पहला टेस्ट मैच दिसंबर 1966 में खेला और सन 1977 तक टीम के लिए कुल 37 टेस्ट मैच खेले । घरेलू क्रिकेट में काफी अच्छे प्रदर्शन के बाद भी वाडेकर को राष्ट्रीय टीम में अपना स्थान बनाने में समय लगा, लेकिन एक बार टीम में आने के बाद वे लगातार सात सालों तक टीम के आधार स्तंभ बने रहे।
अजित दाएँ हाथ के एक आक्रामक बल्लेबाज रहे है टेस्ट पदार्पण के कुछ समय बाद ही वे भारतीय टीम के अहम खिलाड़ी बन गए। वे नंबर तीन पर बल्लेबाजी करने उतरते थे। एक अच्छे बल्लेबाज होने के साथ ही वे स्लिप के एक बेहतरीन खिलाड़ी भी थे।
प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उन्होंने 237 मैचों में 1538 रन बनाए, जिसमें 36 शतक शामिल थे। साथ ही स्लिप के माहिर खिलाड़ी होने की वजह से उन्होंने करीब 271 कैच लपके थे। वे एक असाधारण खिलाड़ी थे और प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उनका प्रदर्शन लगातार निखरता रहा।
अजित ने मुंबई रणजी के कप्तान बने और बाद में राष्ट्रीय टीम की कमान सन 1971 में संभाली। इस टीम में सुनील गावस्कर, एम एल जयसिंहा, गुंड्डप्पा विश्वनाथ, आबिद अली, फारूख इंजीनियर, बिशनसिंह बेदी, एएस प्रसन्ना, भागवत चन्द्राकर जैसे महान खिलाड़ी मौजूद थे। वे जल्द ही एक सफल कप्तान साबित हुए। इस टीम ने वेस्टइंडीज और इंग्लैंड दौरे पर मेजबान टीम को उनके ही घर में टेस्ट सिरीज में 1-0 से हराया।
1971 में ही अजित की कप्तानी में भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज को 5 मैचों में हराया और उसके बाद इंग्लैंड को लगातार 3 मैचों में हराकर कर एक यादगार जीत दर्ज की।
इसके बाद वाडेकर की कप्तानी में भारतीय टीम ने 1972-73 में इंग्लैंड की टीम को 5 मैचों की सिरीज में 2-1 से हराया। लेकिन यही टीम जब 1974 में इंग्लैंड दौरे पर गई तो सभी 5 मैच हार गई। इस हार को समर ऑफ 42 भी कहा जाता है। यह नाम इसे भारतीय टीम के सिरीज के दौरान लॉर्ड्ज के मैदान पर सबसे कम रन बनाने पर
मिला था।
एक समय अपने चरम पर रहे अजित को इस हार के लिए काफी विरोध का सामना करना पड़ा और आखिर में उन्होंने कप्तानी छोड़ दी साथ ही प्रथम श्रेणी क्रिकेट से भी संन्यास ले लिया। उसके बाद उन्होंने भारतीय टीम के लिए दूसरी पारी की शुरुआत की और 1990 के दौरान टीम के मैनेजर बने। इस समय भारतीय टीम के कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन थे। अजित वाडेकर उन कुछ खास क्रिकेट खिलाड़ियों में से एक हैं, जिन्होंने देश के लिए एक खिलाड़ी, कप्तान, कोच, मैनेजर और चेयरमैन की भूमिका निभाते हुए भारतीय क्रिकेट को शिखर पर लाने में अपना योगदान दिया। उनके पहले लाला अमरनाथ और चंदू बोर्डे ने यह जिम्मेदारी निभाई है। अजित आज भी भारतीय क्रिकेट में किसी न किसी तरह अपना योगदान दे रहे हैं।
प्रथम श्रेणी रिकॉर्ड :
मैच: 237, पारी: 360, नाबाद: 33, रन: 15380, उच्चतम स्कोर: 323, औसत: 47.03, शतक 36, कैच 271
टेस्ट रिकॉर्ड :
टेस्ट 37, पारी 71, नाबाद 3, उच्चतम स्कोर 143, रन 2113, औसत 31.07, शतक 1, अर्द्धशतक 14, कैच 46।