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संसार प्रशंसा कर रहा है मोदीजी के साहसी कदम की

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शरद सिंगी

, शनिवार, 19 नवंबर 2016 (18:30 IST)
विमुद्रीकरण या नोटबंदी का मोदी सरकार का निर्णय देश के कई विपक्षी नेताओं के गले नहीं उतरा और उन्होंने इस  निर्णय की जमकर आलोचना की। आलोचना करना उनका अधिकार है अतः हम उस पर चर्चा नहीं करेंगे। महत्वपूर्ण यह जानना है कि देश के बाहर जो अंतरराष्ट्रीय जगत है वह मोदी सरकार के इस निर्णय के बारे में क्या राय रखता है? सबसे पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की बात करें। उसने विमुद्रीकरण के निर्णय का स्वागत किया है।
आईएमएफ के प्रवक्ता गेरी राइस ने एक संवाददाता सम्मलेन में एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि आईएमएफ भारत में भ्रष्टाचार और अवैध वित्तीय प्रवाह से लड़ने के लिए उपायों का समर्थन करती है। साथ ही सलाह भी दी कि नोटबंदी और नोट बदलने के प्रक्रिया को बड़ी चतुराई से प्रबंधित किया जाना चाहिए ताकि कोई व्यवधान उत्पन्न न हो।  
 
दुनिया की मानी हुई पत्रिका फोर्ब्स ने मोदी के निर्णय की सराहना करते हुए लिखा है कि इस निर्णय से नकद भुगतान की प्रथा धीरे-धीरे समाप्त होगी और कंप्यूटर के माध्यम से ऑनलाइन भुगतान का उपयोग बढ़ेगा जो आयकर विभाग की नज़रों में रहेगा। ऑनलाइन भुगतान की सुविधा देने वाली कंपनियों के व्यवसाय में इजाफा होगा।
 
अमेरिका के प्रतिष्ठित अख़बार वाशिंगटन पोस्ट ने भी मोदी सरकार के इस निर्णय की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उसने मोदीजी जी की पहल को महत्वाकांक्षी बताया और उसके अनुसार मोदीजी ने अपने काले धन को हटाने के चुनावी वादे को पूरा करने के लिए एक कदम आगे बढ़ाया है। इस अख़बार के अनुसार भारत में तीन लाख करोड़ का काला धन जमा है। 
 
बीबीसी जो केवल नकरात्मक ख़बरों के लिए जाना जाता है, उसने अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों पर टिप्पणी न करते हुए लोगों को होने वाली परेशानियों में अधिक दिलचस्पी दिखाई। चीन सरकार के मुखपत्र ने भारत सरकार के इस निर्णय को चौंका देने वाला और साहसिक तो बताया किन्तु कहा कि भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए यह कदम पर्याप्त नहीं है। साथ ही यह सीख भी दे डाली कि मोदी सरकार को चीन सरकार द्वारा उठाए गए भ्रष्टाचार विरोधी क़दमों से सीख लेना चाहिए जो चीन में बहुत ही कारगर सिद्ध हुए हैं। 
 
यदि आपको स्मरण हो तो इसी स्तम्भ में मैंने अप्रैल 2015 में सिंगापुर के पितृ पुरुष, संस्थापक नेता एवं प्रथम प्रधानमंत्री, ली कुआन की बात की थी जिसने एक पिछड़े हुए टापू को आज का आधुनिकतम राष्ट्र सिंगापुर बनाया। जिसने सिंगापुर को एक भ्रष्टाचार रहित देश बनाया और विकसित देशों की श्रेणी में लाकर खड़ा किया। यह वही देश है जिसकी सुदृढ़ भ्रष्टाचाररहित व्यवस्था को लेकर अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री बनने से पहले उदाहरण देते घूमते थे। उसी देश के एक अख़बार ने मोदी के इस निर्णय के पश्चात उन्हें अपने देश के पितामह के समकक्ष खड़ा कर दिया। उसके अनुसार ऐसा निर्णय केवल ली कुआन ही ले सकते थे।   
 
पाकिस्तान को तो समझ नहीं आ रहा है कि वह किस तरह की प्रतिक्रिया दे। उसे तो दोहरी मार पड़ी जब नकली भारतीय नोट छापने वाली उनकी प्रिंटिंग प्रेस में नोटों का भंडार रद्दी कागज़ बन गया तथा साथ ही आतंकवाद की फैक्टरी पर ताले लग गए। दूसरी ओर अपने भ्रष्ट शासकों से नाराज़ पाकिस्तानी कौम मोदी की तारीफ किए बिना नहीं थकती और अफ़सोस जताती है कि मोदी जैसा शासक उनके पास क्यों नहीं? पाकिस्तान के एक सांसद ने तो तुरंत भारत की तरह नोटबंदी करने की मांग भी कर डाली। सबसे रोचक बात यह हुई कि स्विट्ज़रलैंड के एक बड़े बैंक समूह यूबीएस ने तो ऑस्ट्रेलिया को भी ऐसा ही करने की सलाह दे डाली।  
 
कुल मिलाकर अंतरराष्ट्रीय जगत ने भारत सरकार के इस कदम को सही ठहराया है। वे सभी इस बात से भी सहमत हैं कि मात्र एक कदम उठाने से काले धन की समस्या से निपटा नहीं जा सकता क्योंकि भारत में यह मर्ज बहुत पुराना है जो अब नासूर बन चुका है। अपराधियों की बात छोड़ दें तो भारत का आम आदमी सम्मान से जीना चाहता है किन्तु व्यवस्थाओं में  दोष के चलते न चाहते हुए भी व्यापारी और अधिकारी इस काली धारा का हिस्सा बनते चले गए।
 
सामानांतर अर्थव्यवस्था उनके जीवन का हिस्सा बन गई। उदाहरण के लिए यदि किसी को घर या जमीन खरीदनी है तो उसे काले सफ़ेद के दलदल में उतरना ही पड़ता था। दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद आई सरकारों ने अपनी आय को बढ़ाने का माध्यम करों एवं उनकी दरों को बनाया। वे एक बाद एक नए कर लगाते गए और वित्तीय घाटे की आपूर्ति के लिए उनकी दरें भी बढ़ाते गए। ईमानदारी से टैक्स देने वालों पर बोझ बढ़ता गया।
 
व्यापारियों ने इन करों से बचने की कोशिश की जो बाद में उनकी आदत बन गई। व्यापारियों को देख वेतन पर सीधे टैक्स देने वाला अधिकारी वर्ग भी आय के नए स्रोत खोजने लगा। बाद में तो इस काली कमाई में भी स्पर्धा हो गई।  तू डाल डाल मैं पात पात। अतः काली अर्थव्यवस्था को बनाने में सरकारों का हाथ भी कम नहीं रहा। हो सकता है कि मोदीजी के जीएसटी एवं नोटबंदी के कदमों से व्यवस्था के शुद्धिकरण की शुरुआत हो और यदि यह प्रयास सफल हुआ तो भारत की प्रगति में आड़े आने वाले लोग या तो सुधर जाएंगे अन्यथा बाहर फेंक दिए जाएंगे। पहले इतनी बड़ी जनसंख्‍या पर निगाह रखना और उनसे टैक्स उगाहना संभव नहीं था किन्तु अब इलेक्ट्रॉनिक माध्यम उपलब्ध होने से आयकरदाताओं का विस्तार होगा और इससे टैक्स प्रणाली में भी सुधार होगा।

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