नोटबंदी के बाद पूरे देश में एटीएम से रुपए निकलाना एक चुनौती की तरह है, क्योंकि एटीएम में पैसे ही नहीं होते। अगर किसी इलाके में कोई एटीएम से पैसा निकल रहा है तो वहां लंबी कतार लग जाती है। ज्यादातर एटीएम मशीन काम नहीं कर रही हैं और लोगों की परेशानियां बढ़ती जा रही हैं।
जिस तरह लोग परेशान हैं और लंबी लाइनों में लगे हैं, इससे यह बात तो साफ है कि सरकार के एटीएम में नोट आपूर्ति के दावे उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं। क्या एटीएम तक रुपया पहुंचाने का सरकार का प्लान फेल हो गया?
पूरे देश में लोग बैंक और एटीएम के बाहर लंबी-लंबी कतारों में लगे हैं, लेकिन सभी को नए नोट फिर भी नहीं मिल पा रहे हैं। क्या सरकार ने नोटबंदी से पहले पर्याप्त व्यवस्था नहीं की? एटीएम तक नए नोट नहीं पहुंचे, क्या सरकार इस बात का अनुमान ही नहीं लगा सकी कि इतनी भारी संख्यां में लोग बैंक और एटीएम आएंगे? क्या सरकार का होमवर्क अधूरा था?
एटीएम में नए नोट क्यों नहीं पहुंच पाए? कहीं ऐसा तो नहीं कि रिज़र्व बैक ऑफ इंडिया द्वारा एटीएम प्लान की जांच ही नहीं की गई? 8 नवंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी तब क्या आज हो रही अव्यवस्था से निपटने के लिए पुख्ता प्लान तैयार किया गया था?
नोटबंदी के विपक्ष में बोलने वाले विरोधी दल इस तरह के सवाल उठा रहे हैं, लेकिन यह पूरा सच नहीं है। 2 नवंबर को जारी हुए आरबीआई के नोटिफिकेशन से स्पष्ट होता है कि आरबीआई और सरकार मिलकर एटीएम में समय पर पैसा पहुंचाने के लिए काम कर रहे थे, लेकिन ऐन वक्त पर एकसाथ कई समस्याएं आ जाने के कारण यह प्लान पूरी तरह क्रियान्वित नहीं किया जा सका और एटीएम तय समय में तैयार नहीं हो सके।
आज भी देश के अधिकतम एटीएम 100 रुपए के नोट ही दे रहे हैं, जबकि वित्त मंत्रालय ने यह घोषणा की थी कि एटीएम से बड़े नए नोट भी निकलेंगे। आखिर चूक कहां हुई?
आरबीआई और सरकार व्यवस्था सुधारने में लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि ऐतिहासिक फैसले की घोषणा से पहले इसके लिए कोई बैकअप प्लान था या नहीं?