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जर्मनी और इतिहास का देवता

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-मधुसूदन आनंद

बर्लिन की दीवार गिराने के बीस बरस के मौके पर दो नए तथ्य सामने आए हैं। पश्चिम जर्मनी के पूर्व चांसलर हेलमुठ कोल के संस्मरणों की हाल में आई पुस्तक से पता चलता है कि तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर जर्मनी के एकीकरण को लेकर गहरे संदेहों से भरी हुई थीं और उन्होंने इसे रोकने के लिए जो भी संभव था, वह किया।

उन्होंने लिखा है कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा मितेरां ने जब एक रात्रि भोज दिया तो एकीकरण को लेकर मारग्रेट थैचर ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए उन पर कड़ा हमला किया। ब्रिटिश विदेश मंत्रालय और राष्ट्रमंडल कार्यालय द्वारा जारी किए गए दस्तावेजों से भी पता चलता है कि मारग्रेट थैचर ने योरप और अमेरिका की तरफ से खुद अपने आप खड़े होकर तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव तक को झाँसा देने की कोशिश की थी कि जैसे भी हो इस एकीकरण को रोकिए।

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यानी वे इतनी उद्धत थीं कि अमेरिका के स्टैंड को भी गलत ढंग से पेश कर रही थीं। उन्हें लगता था कि अकेले गोर्बाचेव ही इस एकीकरण को रोक सकते हैं। यह बात सही भी है। गोर्बाचेव ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन से बात कर परमाणु हथियारों में कटौती का समझौता किया था और शीतयुद्ध की तीव्रता कम करने की कोशिश की थी।

1989 का सोवियत संघ निश्चय ही अमेरिकी खेमे को कड़ी टक्कर देने वाला देश था, लेकिन गोर्बाचेव इस झाँसे में नहीं आए क्योंकि वे अमेरिकी स्टैंड से अच्छी तरह वाकिफ थे। अब 20 साल बाद उन्होंने कहा है कि यदि मैं पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एकीकरण को रोकता तो तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो जाता।

गोर्बाचेव ने तो खुद पुराने सोवियत संघ में ग्लासनोस्त (खुलापन) और पेरेस्त्रोइका (पुनर्रचना) के जरिए समाज में इतनी आशाएँ और अपेक्षाएँ जगा दी थीं कि वे बाद में खुद सोवियत संघ का विघटन रोक नहीं पाए।

इतिहास की धाराओं को रोकना आसान नहीं होता और इतिहास देशों को बनाता भी है, बिगाड़ता भी है और तोड़ता भी है। मारग्रेट थैचर को डर था कि दोनों जर्मनी अगर एक हो गए तो नया जर्मनी वाचाल हो जाएगा। उसकी ताकत बढ़ेगी और वह फिर से हिटलर की तरह विश्व विजय के सपने देखने लगेगा, जिसकी परिणति विश्वयुद्ध के रूप में सामने आ सकती है।

जर्मनी और उसकी राजधानी बर्लिन को दूसरे विश्वयुद्ध में विजेता रहे देशों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ ने आपस में बाँट लिया था। पूर्वी जर्मनी सोवियत खेमे का कम्युनिस्ट देश बना तो पश्चिम जर्मनी अमेरिकी खेमे वाला पूँजीवादी देश।

एकीकरण के बाद जर्मनी पूँजीवादी देश बनेगा, जो कि वह बना भी, यह सोचकर ब्रिटेन और फ्रांस को अपनी लघुता का बोध हुआ होगा। इतिहास से हम जानते हैं कि ये तीनों ही देश आपस में लड़ते रहे हैं और हर देश अपनी संस्कृति को दूसरे से उत्तम मानता है।

इसलिए हम देखते हैं कि फ्रांस में भी एकीकरण को लेकर जर्मनी के प्रति गहरे संदेह थे और राष्ट्रपति फ्रांस्वा मितेरां ने अंतिम क्षण तक इस एकीकरण को रोकने की कोशिश की थी। बर्लिन में जब चांसलर कोल ने उनसे टूटी हुई दीवार के सामने हाथ में हाथ डाले फोटो खिंचवाने का आग्रह किया तो उन्होंने मना कर दिया।

मितेरां के सलाहकार आज दावा करते हैं कि उन्होंने एकीकरण को नहीं रोका, लेकिन ऐसी व्यवस्था की जिससे एकीकरण आगे चलकर फ्रांस पर भारी न पड़े यानी इतिहास के प्रचंड वेग के सामने मितेरां भी झुक गए।

जर्मनी के एकीकरण और सोवियत संघ के विघटन के गहरे सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक कारण थे। ऐसे लोग कम नहीं हैं जो मिखाइल गोर्बाचेव को अमेरिका का एजेंट साबित करते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि गोर्बाचेव ने जैसे ही सोवियत संघ में सुधारों और खुलेपन का मार्ग प्रशस्त किया, वैसे ही पूँजीवादी समाजों के साथ समाजवादी समाजों की तुलना होने लगी।

अमेरिका से हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा करने वाले सोवियत संघ को आम जनता की सुविधाएँ कम कर, बल्कि पेट काटकर, आगे बढ़ना पड़ा था। इसलिए वहाँ योरप की सी खुशहाली नहीं थी।

फिर रोमानिया के चाऊशेस्कू और पूर्वी जर्मनी के एरिक होनेकर जैसे तानाशाह अपनी जनता से पूरी तरह कटे हुए थे। ऐसे लोगों को आम जनता ने खुद ठिकाने लगा दिया। वे इतिहास के प्रवाह को क्या रोकते।

इतिहास ने जर्मनी को फिर से गढ़ा और सोवियत संघ को काँट-छाँटकर रूस के रूप में सामने कर दिया, लेकिन विडंबना देखिए कि एकीकरण से जर्मनी और विघटन से रूस दोनों ही कमजोर हुए हैं।

जो लोग पाकिस्तान को एक विफल राष्ट्र मानकर उसके भारत में विलय के सपने देखते हैं और ऐसे लोग कोई बहुत कम नहीं हैं, उन्हें न तो जमीनी सच्चाई की जानकारी है और न ही वे इतिहास के द्वंद्व को समझते हैं। ऐसी कोई संभावना नहीं है।
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पूँजीवाद के जयकारों के बीच जहाँ एक तरफ पूर्वी जर्मनी के लोगों को यह लग रहा है कि यह एकीकरण नहीं है बल्कि हड़पा जाना है, वहीं रूस के लोगों को लगता है कि पुराने सोवियत संघ में ही उनका जीवन क्या बुरा था।

पश्चिम जर्मनी वाले भाग से पूर्वी जर्मनी वाले भाग को 1989 के बाद से लेकर अब तक कोई डेढ़ खरब अमेरिकी डॉलर दिए जा चुके हैं, लेकिन मुफ्त आवास और चिकित्सा सुविधा के आदी रहे पूर्वी जर्मनों के लोगों को पहले के दिन याद आते हैं।

पूँजीवाद से दोनों ही जगह कोई खास प्रगति नहीं हुई। यही कारण है कि दोनों ही जगह कम्युनिस्ट पार्टी की प्रासंगिकता बढ़ी है, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि जर्मनी फिर टूट जाएगा या रूस में कुछ और जुड़ जाएगा बल्कि अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन चाहेंगे कि सब कुछ ऐसे ही चलता रहे ताकि शक्ति संतुलन बना रहे।

इस तरह के दावे जरूर किए जाते हैं कि रोनल्ड रीगन की कूटनीति के कारण बर्लिन की दीवार गिरी और दोनों जर्मनी एक हो गए, लेकिन अगर मारग्रेट थैचर तक को इस बात की जानकारी नहीं थी या वे इस बारे में जानबूझकर भ्रम फैला रही थीं तो रीगन की कूटनीति की भी सीमाएँ स्पष्ट हो जाती हैं।

दरअसल, नक्शे पर किसी भाग को किसी दूसरे भाग में जोड़ने या काटने से देश नहीं बनते। इतिहास की शक्तियाँ उस समय और स्थान की सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक जरूरतें जब एक आवेग पैदा करती हैं तब देश बनते या बिगड़ते हैं।

इसलिए जो लोग पाकिस्तान को एक विफल राष्ट्र मानकर उसके भारत में विलय के सपने देखते हैं और ऐसे लोग कोई बहुत कम नहीं हैं, उन्हें न तो जमीनी सच्चाई की जानकारी है और न ही वे इतिहास के द्वंद्व को समझते हैं। ऐसी कोई संभावना नहीं है।

पाकिस्तान के साथ एकीकरण से भारत की समस्याएँ हजार गुना बढ़ जाएँगी और जर्मनी की तरह भारत भी कमजोर हो जाएगा। भविष्य को इतिहास के देवता पर भी छोड़ देना चाहिए और देवता है सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक शक्तियों का मिला-जुला पुँज। (नईदुनिया)

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