Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

ईश्वर को चुनौती देता विज्ञान

Advertiesment
हमें फॉलो करें विज्ञान
-मधुसूदन आनंद

वैज्ञानिक जो न कर दिखाए, वह थोड़ा है। परखनली शिशु तो अब जैसे गुजरे जमाने की बात हो गई हो। जापान के वैज्ञानिकों ने एक अनोखा प्रयोग करके एक जीन संवर्धित शिशु-एक संकर जाति का शिशु-बनाने की विधि खोज निकाली है। आपने अभी तक जीन संवर्धित बैंगन के बारे में सुना होगा जिसे बायो टेक्नोलॉजी की मदद से बनाया गया था, लेकिन जिसके प्रयोग को लेकर अमेरिका तक में तीखा विवाद है।

वैज्ञानिकों ने युवा स्त्री के अंडों से एक अधिक उम्र वाली स्त्री के क्षतिग्रस्त अंडों को दुरुस्त कर और फिर पुरुष के शुक्राणु से उनका मेल कराकर प्रयोगशाला में भ्रूण की प्रारंभिक अवस्था विकसित कर ली। हालाँकि अभी इन वैज्ञानिकों ने इस विधि से किसी बच्चे को नहीं बनाया है, लेकिन वे चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। जाहिर है ऐसे बच्चे के तीन माँ-बाप होंगे। दो माताएँ और एक बाप।

webdunia
ND
अमेरिका में 2001 में एक बड़ी उम्र की स्त्री के अंडों में एक युवा स्त्री का साइटोप्लाज्म डालकर उसकी क्वालिटी सुधारने की कोशिश की गई थी। साइटोप्लाज्म जैली की तरह का एक पदार्थ होता है, जो कोशिका की झिल्ली में भरा रहता है। बूढ़ी होती स्त्रियों की कोशिका का साइटोप्लाज्म इस लायक नहीं रहता कि उनके अंडे शुक्राणु के साथ मिलकर गर्भाधान कर सकें।

इस कोशिश का कट्टरपंथी ईसाइयों ने विरोध किया था और इससे समाज में विकृति फैलने की बात कहते हुए इसे ईश्वर के काम में हस्तक्षेप बताया था। जापानी वैज्ञानिकों के नप्रयोग में तो साफ-साफ दो स्त्रियाँ और एक पुरुष शामिल हैं, जिससे प्रयोगशाला में भ्रूण बन सकेगा।

आदमी, भेड़ और चूहे आदि के क्लोन (हूबहू वैसा ही जीवन-रूप) बना चुका है तो जाहिर है वह आदमी का भी बना सकता है। ऐसे समाचार आते भी रहे हैं कि फलाँ मुल्क में आदमी का क्लोन बन चुका है, लेकिन उसकी पुष्टि नहीं हुई। जो भी हो विज्ञान ने यह संभव किया है।

जीन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके आज पौधों और जीवों की नस्ल सुधारी जा सकती है, लेकिन जीवन के इन रूपों में वैसी चेतना नहीं होती, जो मनुष्य में होती है। मनुष्य की नई-नई खोजों ने इस ब्रह्माण्ड और जीवन के बारे में हमारा नजरिया बदल डाला है।

अँगरेज भौतिक शास्त्री और प्रसिद्ध लेखक पॉल डेविस ने कहा थाः "अगर कभी किसी ग्रह के वासी का पता चल गया तो धर्म पर उसका भारी असर पड़ेगा और ईश्वर के बारे में आदमी की पारंपरिक धारणा चूर-चूर हो जाएगी।
webdunia
विज्ञान ने धर्म और ईश्वर की अवधारणा को जबर्दस्त चुनौती दी है। वह आदमी को अमर बनाने की खोज में लगा हुआ है। उसकी खोजों से आज यह बात तक संभव दिखने लगी है कि आगे चलकर लोग डिजाइनर बेबी की कामना करने लगेंगे कि मुझे वैज्ञानिक, मुझे खिलाड़ी, मुझे पहलवान, मुझे राजकुमार या राजकुमारी-सा सुकुमार-सुंदर बेबी चाहिए।

अभी तक मनुष्य जीवन और मृत्यु में निर्णायक हस्तक्षेप नहीं कर सकता था। उसने जन्म देने की प्रक्रिया को माँ और नवजात शिशु के लिए ज्यादा से ज्यादा निरापद बनाने की कोशिश की। जन्म और मृत्यु दर में कमी आई और मनुष्य की आयु बढ़ने लगी।

लेकिन अभी तक जीवन और मृत्यु के बारे में मनुष्य का दखल सीमित था। अब अनंत हस्तक्षेप का मार्ग खुल रहा है और आदमी खुद अपना ईश्वर बनने की कोशिश कर रहा है।

लेकिन क्या आदमी इस प्रकृति को रच सकता है? क्या पहाड़ और समुद्र बना सकता है? क्या वह इस ब्रह्माण्ड में सारे समुद्र तटों पर उपस्थित समूची रेत का एक नन्हा-सा जर्रा माने जानी वाली यह पृथ्वी बना सकता है? ये, तारे, सूरज और चाँद बना सकता है? सौरमंडल और आकाशगंगाएँ बना सकता है? क्या वह सारे संसार को आपस में बाँधे रखने वाला गुरुत्वाकर्षण बल बना सकता है? यह चराचर जगत बना सकता है? इसका जवाब है- नहीं।

मनुष्य अभी खुद करीब एक लाख साल पहले ही अस्तित्व में आया है, जबकि उसकी पृथ्वी कुल साढ़े चार अरब साल के करीब पुरानी है। यह ब्रह्माण्ड इतना पुराना है कि महाविस्फोट के बाद जो तारे और आकाशगंगाएँ आदि बनीं, उनमें से करोड़ों का प्रकाश अभी पृथ्वी तक पहुँचा भी नहीं है और हर साल नई आकाशगंगाएँ ढूँढी जा रही हैं। निश्चय ही मनुष्य की सीमाएँ हैं।

अभी तक कहीं और जीवन के सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि सौ अरब से ज्यादा आकाशगंगाओं के होने का अनुमान हो और हर आकाशगंगा में मान लीजिए एक सौ अरब ही तारे हों और फिर भी हम यह मान लें कि सिर्फ एक पृथ्वी पर ही जीवन है!

अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने पृथ्वी जैसे ग्रह-नक्षत्र ढूँढे हैं, लेकिन वहाँ तक पहुँचना एक तो संभव नहीं और मान लो संभव हो भी तो वहाँ तक पहुँचने के लिए हमें कई जिंदगियाँ चाहिए।

जाहिर है मनुष्य की एक सीमा है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम इस विराटता को लेकर झट किसी ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार कर लें। एक ऐसा ईश्वर जो हमारी तरह हो या जिन जीवन-रूपों को हम जानते हैं, वैसा हो।

विज्ञान की खोजों से आज यह बात तक संभव दिखने लगी है कि आगे चलकर लोग डिजाइनर बेबी की कामना करने लगेंगे कि मुझे वैज्ञानिक, मुझे खिलाड़ी, मुझे पहलवान, मुझे राजकुमार या राजकुमारी-सा सुकुमार-सुंदर बेबी चाहिए।
webdunia
क्या यह नहीं माना जा सकता कि सृष्टि ऐसे ही है और जो कुछ है उसका कोई कारण नहीं है। बस वह है। हम चूँकि कारण ढूँढते हैं, इसलिए भगवान की कल्पना कर लेते हैं।

जरा सोचिए यदि किसी दिन कोई एलियन किसी उड़नतश्तरी में बैठकर सचमुच पृथ्वी पर आ जाए तो भगवान के बारे में हमारी कल्पना कैसी होगी? अँगरेज भौतिक शास्त्री और प्रसिद्ध लेखक पॉल डेविस ने कहा थाः "अगर कभी किसी ग्रह के वासी का पता चल गया तो धर्म पर उसका भारी असर पड़ेगा और ईश्वर के बारे में आदमी की पारंपरिक धारणा चूर-चूर हो जाएगी।

उन्होंने यह भी कहा है कि ईसाइयत के लिए तब मुश्किलें और बढ़ जाएँगी, जो यह मानती है कि ईसा मसीह ईश्वर के पुत्र हैं जिन्होंने पृथ्वी पर मानव की मुक्ति के लिए अवतार लिया था। क्या इसका मतलब यह नहीं निकाला जा सकता कि जैसे ईश्वर ने पृथ्वी पर ईसा मसीह को भेजा वैसे ही जिन-जिन ग्रहों पर जीवन है, वहाँ के वासियों की मुक्ति के लिए दूसरे दूतों या अपने पुत्रों को भेजा होगा? यह संकट हिन्दू धर्म के सामने भी पेश होगा, जहाँ एक बड़े वर्ग में अवतारवाद में आस्था है और कहा जाता है कि जब-जब धर्म की हानि होती है, मनुष्य के रूप में प्रभु अवतार लेते हैं।

यही कारण है कि वेटिकन ने विशेषज्ञों के एक दल से आग्रह किया है कि वे पता लगाएँ कि पृथ्वी के बाहर क्या कहीं जीवन है। अगर है तो कैथोलिक चर्च के भविष्य पर तब उसका क्या असर पड़ेगा?

जाहिर है विज्ञान, ईश्वर के अस्तित्व के बारे में लगातार सवाल उठा रहा है। जिज्ञासा ने ही मनुष्य के लिए धर्म और ईश्वर का अस्तित्व बनाया था और जिज्ञासा ही विज्ञान के जरिए इस अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है। विज्ञान कह रहा है कि जीवन की रचना प्रयोगशाला में भी संभव है और मनुष्य, जीवन का नियंता बन रहा है। यह धर्म और ईश्वर के विचार को एक चुनौती है। (नईदुनिया)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi