'कम्यून (रजनीशपुरम) को नष्ट कर देने से पहले उनको कुछ भी न रोक पाता। सर्वोपरि रूप से, वे ओशो रजनीश को नष्ट करना चाहते थे- यह गैर-ईसाई, गैर-यहूदी, गैर-रैंचर, जो रॉल्स रॉयस में घूमता था और अजीब से कपड़े पहनता था। उन्होंने उसे मृत देखना पसंद किया होता। और वे उसमें सफल भी हो जाते यदि समय रहते उसके शिष्यगण उसे छुड़ा लाने के लिए बीच में न कूद पड़ते।'
यदि हम तथ्यों की मानें तो ओशो रजनीश को जहर देने में जब शीला असफल रही तो उसने अमेरिकी सरकार के साथ मिलकर ओशो के खिलाफ षड्यंत्र रचा और फिर अमेरिकी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जहर देकर मरने के लिए छोड़ दिया।
ओशो की प्रेमिकाएं तो बहुत थीं लेकिन कथित रूप से 'विश्वासघात' सिर्फ एक ही ने किया और उसका नाम है शीला, जो पहले कभी मां आनंद शीला थी। उसका असली नाम है- शीला अंबालाल पटेल। वर्ष 1949 में बड़ौदा के एक गुजराती परिवार में जन्मीं शीला को सिर्फ पैसों से प्यार है। वह अपने एक साक्षात्कार में कहती है- 'मैं आज भी ओशो की प्रेमिका हूं।' सही है शीलाजी ओशो की प्रेमिका बने रहने में ही लाभ है।
बहुत सालों बाद शीला ने अपनी किताब को हिंदी में लिखने का इसलिए मन बनाया, क्योंकि हिंदी का बाजार भी अब समृद्ध हो चला है और ओशो के संन्यासियों की संख्या भी पहले से 10 गुना ज्यादा हो गई है। यदि 20 प्रतिशत संन्यासी ही यह किताब खरीद लेते हैं तो काम बन जाएगा। आखिर शीला उसी समाज का हिस्सा है, जो धन के अलावा कुछ सोचता ही नहीं।
यह आधुनिक युग है। यहां प्रेम का अर्थ और महत्व समझना मुश्किल है। शीला ने अपनी किताब में खुद लिखा है कि उनकी (शीला की) दिलचस्पी आध्यात्मिक ज्ञान में नहीं थी, वह तो रजनीश से प्यार करने लगी थी। शीला कहती है कि वह आज भी रजनीश की प्रेमिका है।
रजनीश उन लोगों से कतई मतलब नहीं रखते थे जिनकी रुचि ध्यान और अध्यात्म में नहीं होती थी। वे बहुत जल्द ही ऐसे लोगों को चलता कर देते थे। दूसरी बात यह कि आप आज भी उन्हें अपना प्रेमी क्यों मानती हैं? जब आपको रजनीश ढोंगी, सेक्सी, नशेड़ी और गैर-आध्यात्मिक व्यक्ति लगते हैं तो उनकी प्रेमिका कहलाने में आपको तो शर्म महसूस होना चाहिए?
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ओशो रजनीश की पूर्व निजी सचिव शीला ने एक संस्मरण में कहा है कि ओशो रजनीश अपने नियम और कायदों के समाज का निर्माण करना चाहते थे इसलिए उन्होंने हर कानून, नीति और वैधता को भुला दिया।ओशो रजनीश की पूर्व सचिव आनंद शीला ने अपने संस्मरण ‘डोंट किल हिम : द स्टोरी ऑफ माई लाइफ विद भगवान रजनीश’ में अपने उस समय के अनुभव, अवलोकन और भावनाएं व्यक्त की हैं, जब वे ओशो रजनीश के साथ काम कर रही थीं। 1981 में ओशो रजनीश की सहायक के रूप में नियुक्त हुईं शीला ने 1985 में इस पद को छोड़ दिया था। इसके बाद वे समुदाय के साथी सदस्यों के साथ यूरोप रवाना हो गईं।कथित तौर पर ओशो शीला के इस ‘विश्वासघात’ पर बहुत नाराज हुए थे और उन्होंने उस पर जैव-आतंकी हमले की योजना बनाने, हत्या का षड्यंत्र रचने और 55 करोड़ डॉलर लेकर भागने का आरोप लगाया था। शीला इनमें से कुछ आरोपों की दोषी निकलीं और उन्होंने 39 माह जेल में बिताए।शीला कहती हैं कि ओशो बहुत करिश्माई, प्रेरक, शक्तिशाली, प्रेमपूर्ण व्यक्तित्व वाले थे और साथ ही वे बेतुके ढंग से चालाक, प्रतिशोधी, खुद के बारे में सोचने वाले और हानि पहुंचाने वाले भी थे। उन्होंने हर समुदाय, समाज और देश के सभी नियमों, नैतिकताओं, नीतियों और वैधताओं का उल्लंघन किया, क्योंकि वे अपने नजरिए वाले ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे जिसमें उनके अपने नियम और कायदे हों।ओशो का पतन : फिंगरप्रिंट द्वारा प्रकाशित अपनी किताब में शीला लिखती हैं कि मैं इस बात की गवाह बनी कि इस खेल में बंबई और पूना में वे किस तरह शीर्ष पर थे, किस तरह उन्होंने अपना समुदाय खड़ा किया, किस तरह वे लोगों के साथ काम करते थे और किस तरह विवाद पैदा करके उन्होंने मीडिया को बरगलाया।ओशो के पतन के बारे में शीला लिखती हैं कि उनका पतन ओरेगन में दर्दनिवारक दवाओं और अन्य नशीले पदार्थों पर उनकी निर्भरता से शुरू हुआ। जिसके फलस्वरूप गिरावट आनी शुरू हो गई और फिर समुदाय का विघटन हो गया। वर्ष 1949 में बड़ौदा के एक गुजराती परिवार में जन्मीं शीला अंबालाल पटेल कहती हैं कि वे ओशो से बहुत प्रेम करती थीं और उन पर आंख मूंदकर भरोसा करती थीं।ओशो को अपनों ने ही लूट लिया : शीला को लगता है कि ओशो को उनके अपने ही लोगों ने लूट लिया। वे कहती हैं- ‘मेरे दिल में उनकी शिक्षाओं के लिए बहुत आदर भाव है और आज भी मैं उनकी भक्त हूं।' आज उनकी संन्यासी शिष्याएं भी रजनीशपुरम के बारे में बात करने में डर और शर्म महसूस करती हैं। मेरी राय में लोगों ने उनके जीवन के बहुत महत्वपूर्ण समय के बारे में बात न करके उन्हें कमजोर कर दिया।ओशो की मौत के बारे में शीला लिखती हैं कि उन्हें आज भी इस बात पर यकीन नहीं होता कि ओशो की मौत प्राकृतिक थी। ओशो के दिल ने 1989 में 58 साल की उम्र में काम करना बंद कर दिया था।शीला दावा करती हैं, ‘आज भी मैं यह नहीं मानती कि वह एक प्राकृतिक मौत थी। अगर वह प्राकृतिक होती तो मैं उसे जरूर महसूस करती।’ किताब के शुरुआती अध्यायों में उस समय का जिक्र है, जब लेखिका रजनीशपुरम छोड़कर गईं और उन्हें कानूनी कार्रवाइयों का सामना करना पड़ा। किताब के दूसरे भाग में शीला शुरुआत से कहानी बयां करती हैं, जब 1972 में 20 साल की उम्र में वे ओशो के अभियान में शामिल हुई थीं।
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यह वह वक्त था जबकि दुनियाभर के धार्मिक संगठनों के नेता और अमेरिका की रोनाल्ड रीगन सरकार ओशो के धर्म और राजनीति विरोधी विचार के कारण उनकी जान के दुश्मन बन बैठे थे। एफबीआई और सीआईए ओशो के साम्राज्य को ध्वस्त करने के लिए योजना बनाने लगे थे।
वे लगातार इस मामले में जर्मन और ब्रिटेन की सरकार के संपर्क के अलावा ओशो के ओरेगान कम्यून के संन्यासियों के संपर्क में थे। उन्होंने बहुत से ऐसे लोगों को भेजा, जो ओशो के संन्यासी बनकर कम्यून की गतिविधियों की जानकारी अमेरिकी खुफिया विभाग को देते थे। आखिकार उन्होंने 'शीला' सहित कम्यून के और भी लोगों को अपना एजेंट बना ही लिया।
विद्या और शीला के माध्यम से अमेरिकी सरकार ने जहां ओशो को मारने की साजिश रची वहीं उन्होंने उनके वैभवपूर्ण साम्राज्य को ध्वस्त करने और दुनियाभर में उनकी छवि बिगाड़ने के लिए लाखों-करोड़ों खर्च किए।
इस बारे में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ऑफ विक्टोरिया (ऑस्ट्रेलिया), सुप्रीम कोर्ट ऑफ ओरेगान, दि यूएस फेडरल डिस्ट्रिक्ट ऑफ ओरेगान तथा नाइन्थ सर्किट यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स में वकालत करने के लिए मान्यता प्राप्त अटर्नी और अमेरिकन बार एसोसिएशन तथा एसोसिएशन ऑफ ट्रायल लायर्स की सदस्या 'सू एपलटन' ने एक विश्वप्रसिद्ध किताब लिखी है जिसमें इस बारे में खुलासा किया गया है।
उन्होंने अपनी किताब में अमेरिकी सरकार और उसकी खुफिया एजेंसी के वे सारे दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं जिसमें रोनाल्ड रीगन सरकार की साजिश और शीला के अमेरिकी एजेंट होने का खुलासा होता है।
सू एपलटन अनुसार शीला ने खुद के चरित्र को सरकारी अधिकारियों के विरोधी के रूप में चित्रित किया ताकि कोई उन पर संदेह न कर सके। लेकिन अमेरिकी फ्रीडम ऑफ इन्फर्मेशन एक्ट से प्राप्त जानकारी के आधार पर पता चला कि मां योग विद्या और अन्य फेडरल सरकार को सूचनाएं देती रही थीं। यह अमेरिकी खुफिया विभाग में एक एजेंट के रूप में कोड थी यानी ओशो कम्यून में शीला ही नहीं और भी कई संन्यासी थे, जो अमेरिकी एजेंट थे?
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