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गरमा-गरम : गरीब की बात

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- विष्णु नागर
चुनाव को नजदीक जानकर तमाम नेता किसी न किसी बहाने आजकल गरीब की ही बात कर रहे हैं। कुछ तो ऐसे भी नेता हैं, जो मिट्टी भी ढोकर दिखा रहे हैं। आजकल तो अपने वित्त मंत्री तक कह रहे हैं कि केंद्र सरकार गरीब को इतना पैसा दे रही है, लेकिन गरीब तक यह पहुँच नहीं रहा है।

चुनाव नजदीक हैं, इसलिए वे यह नहीं कह रहे हैं कि फिर इस पैसे को गरीब तक भेजने का फायदा भी क्या? इससे तो अच्छा है कि हम यह पैसा भी अमीरों तक ही पहुँचा देते हैं! आप कमाल देखिए कि गरीब को आजकल इतनी अहमियत मिली हुई है और उस गरीब को इसकी खबर तक नहीं है। अगर किसी को सिर्फ रोटी की ही फिक्र हो तो इसके अलावा और होगा भी क्या?

और मान लो गरीब को इस बात की खबर हो भी जाए कि उसके हिस्से का पैसा उस तक नहीं पहुँच रहा है तो वह कर भी क्या लेगा? वह भी यही कहेगा न कि हमारे गाँव तक सड़क ही नहीं है तो पैसे पहुँचें भी कैसे? बात उसकी बिलकुल दुरुस्त है।

देखिए पैसे को तो कहीं-न-कहीं पहुँचना ही है। वह भी चाहता है कि वहाँ पहुँचे, जहाँ राजमार्ग हो, उन हाथों में पहुँचे, जो उसे अपने मिट्टी सने, रूखे हाथों से गंदा नहीं कर देंगे, उसका कड़कपन, उसकी ताजगी को सुरक्षित रखेंगे और वैसे भी मान लो गरीब के पास पैसा पहुँच भी गया तो उसका वह क्या करेगा?

कहीं उसका 'प्रॉपर' निवेश तो नहीं करेगा न! फिर उसे देने से क्या फायदा? इसका दूसरा पक्ष भी है। अगर पैसा गरीब तक पहुँचेगा तो वह हद से हद इससे अपनी गरीबी दूर कर लेगा और उसने अपनी गरीबी दूर कर ली तो फिर अपनी इतने दलों की इतनी सारी सरकारें क्या करेंगी?

उनके पास काम क्या रहेगा? उनका तो एकमात्र उद्देश्य ही गरीबी हटाना है। इसलिए सरकार को तो यह सुनिश्चित करना होगा कि निरंतर रहे, गरीबी बनी रहे, गरीबों का पैसा जो गरीब नहीं हैं, उन तक पहुँचे। यह काम भी कम मुश्किल नहीं है।

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