तुम हमें माफ मत करना सरबजीत...
उधर सियासी कट्टरता, इधर शर्मनाक शिथिलता
सरबजीत नहीं लौटे। उनकी सूचना आई है। कितना मार्मिक होता है घर के किसी व्यक्ति का निरपराध होकर यूं मारा जाना। एक मासूम शख्स की छोटी सी भूल इस कदर जानलेवा हो सकती है कि देख-सुन कर रूह सिहर जाए। हमारी सरकार तमाशा देखती रही और सरबजीत हमारी आंखों के सामने टीवी पर मौत के करीब बढ़ते रहे। हम क्यों नहीं बना सके अपनी ठंडी सरकार पर एक असरकारी तपता हुआ दबाव कि वह जिंदा सरबजीत न सही पर जिंदगी के लिए लड़ता सरबजीत तो पाक से वापस लाने की पुख्ता पहल करती।
सरकार कोई तो कदम ऐसा उठाती जिससे लगता कि उसकी संवेदनाएं इस मामले से गंभीरता से जुड़ी हैं। लेकिन अफसोस जिस तरह 'दामिनी' और 'गुड़िया' मामले में वह नकारा सिद्ध हुई इस गंभीरतम मसले पर भी पंगु ही साबित हुई।
आखिर एक मुल्क की सियासी कट्टरता और दूसरे मुल्क की शर्मनाक शिथिलता ने उस निर्दोष व्यक्ति को निगल लिया। अफजल और कसाब को फांसी देकर सरकार जनता की जो भावनाएं लूट लेना चाहती थी वह तो उसे नसीब नहीं हुई उल्टे सरबजीत की मौत के बाद उसकी रही-सही इज्जत के परखच्चे उड़ गए हैं।
उसके पास खोखली निंदा के सिवा कुछ नहीं बचा। जिम्मेदार मंत्रियों के बयान आत्माविहीन है और शब्द अर्थहीन। आश्चर्य होता है कि देश के बड़े पद पर बैठा इंसान आखिर कैसे इतना बेबस और अशक्त हो सकता है? पद और पॉवर तो किसी को भी विपरीत परिस्थितियों से निपटने की हिम्मत दे देता है लेकिन हमारे नेता इन दो चीजों का इस्तेमाल मात्र स्वहित में करना जानते हैं।
ना जाने वह कौन सा गलत क्षण था जब सरबजीत अपने गांव भिखिविंड से भटक कर पाक सीमा में चला गया और मनजीत और सुरजीत नामक व्यक्ति की गफलत में पकड़ा गया। इन दो व्यक्तियों के नाम फैसलाबाद और लाहौर बम विस्फोट के आरोपी के रूप में लिए गए थे। बाद में यही आरोप सरबजीत पर लगा दिए गए।
तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सरबजीत को माफी दे दी थी। दावा किया गया कि उसे छोड़ दिया जाएगा। लेकिन अफसोस कि सरबजीत की जगह छोड़ा गया सुरजीत। लौटते ही सुरजीत ने यह कह कर सबको चकित कर दिया कि वह पाकिस्तान में भारत का जासूस था। खुफिया जानकारी जुटाने के लिए वह 85 बार पाकिस्तान गया-लेकिन 86वीं बार पकड़ा गया। बस इसी के बाद से सरबजीत की रिहाई और अधिक मुश्किल हो गई।
दूसरे अफजल और कसाब की फांसी के बाद बदले की आग में जल रहा पाकिस्तान हमें जिंदा सरबजीत लौटाएगा इस बात में शुरू से ही संदेह था लेकिन इस बर्बरता और शातिरी के साथ कि पाक पर आंच भी न आए और काम भी हो जाए यह तो कल्पना से परे था।
यूं भी हम जिस भयावहता की कल्पना करने में भी डरते हैं पाकिस्तान ऐसे काम इस तरह कर दिखाता है जैसे उसे इस तरह के मारकाट की आदत रही हो। हमारे जवानों के सिर काटने से लेकर आंखें निकाल लेने तक पाक सेना ऐसे-ऐसे घृणित कृत्य को अंजाम दे चुकी है और हमारी सरकार हमेशा की तरह अमानवीय होकर बैठी रही।
आखिर कैसे संभव है कि जेल में कोई इस कदर किसी को पीट-पीट कर अधमरा कर दे और किसी को कानोंकान खबर तक ना हो। अव्यवस्था का यह आलम भारतीय जेलों में भी है लेकिन हमने तो कसाब की सुरक्षा में करोड़ों रुपए स्वाहा कर दिए थे। तब कहीं जाकर 'ससम्मान'(?) कुटनीतिक तरीके से उसे फांसी दी गई थी।
यह कैसा अंतर है एक ही जमीन से अलग हुए दो टुकड़ों में कि एक जमीन नफरत और दरिंदगी को अपनी जागिर मान बैठी है और दूसरी जमीन निरंतर माफ कर देने को अपना 'कर्तव्य'??? आखिर उनके तमाम कर्तव्य अपने ही निर्दोष नागरिक को बचाने की बारी आने पर कहां चले जाते हैं?
सरबजीत की मौत पर सवाल फिर गहरे बन कर खड़े हैं कि आखिर दो मुल्कों की रीढ़हीन सरकार के खामियाजे आखिर मासूम जनता क्यों भुगते, कब तक भुगते? किस हद तक भुगते?
हमें माफ मत करना सबरजीत....हम सब गुनाहगार हैं तुम्हारे। यह सरकार नॉनरिवर्सिबल कोमा में है पर शायद तुम सुन रहे हो....
सरबजीत, हम नहीं महसूस कर सके उस दर्द को जो जेल में रहते हुए तुम्हारे भीतर रिस रहा था....जो चोट तुमने शरीर पर खाई उसके घाव यहां हमारी आत्मा पर उभर रहे हैं फिर भी तुम हमें माफ मत करना सरबजीत...। हम दिल से शर्मिंदा हैं तब भी और दुख से सराबोर हैं तब भी.... । 23 वर्षों बाद तुम नहीं, तुम्हारा शरीर आया है और हम उसके समक्ष निष्प्राण है हमारी सरकार की तरह ... ।