-सुधीश पचौरी
पिछले पचास सालों में भारत में टीवी का इतिहास दरअसल 'दूरदर्शन' का इतिहास है। देश में अभी दो सौ से ज्यादा टीवी चैनल उपलब्ध हैं, लेकिन उन सबका अगुआ आज भी दूरदर्शन ही है। अगर दूरदर्शन नहीं होता तो भारत नए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी देश भी नहीं होता।
वास्तविकता यह है कि दूरदर्शन के बूते ही भारत आज टीवी के क्षेत्र में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है। देश में आज सूचना-प्रिय, सूचना के प्रति संवेदनशील और घर के भीतर मनोरंजन के प्रति निरंतर उत्सुक लोगों की संख्या करोड़ों में है। लोगों की यह फौज टीवी ने बनाई है, जिसमें दूरदर्शन की भूमिका अग्रणी है।
देश में सितंबर 1959 में शुरू हुई टीवी क्रांति ने पिछले पचास साल में भारतीय समाज को तेजी से बदला है। विकास और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर और आम जनता के हक में हमदर्दी का माहौल तैयार हुआ है। टीवी ने समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है और इतना प्रभावित किया है कि आज कोई भी बहस-बातचीत टीवी के बिना पूरी नहीं होती है। टीवी इस जनतंत्र का सिर्फ 'चौथा पाया' ही नहीं है, बल्कि सबसे अव्वल और मजबूत पाया भी लगता है। गुजरात में आणंद के चुनिंदा क्षेत्रों के किसानों को मौसम और बीज-फसल आदि की जानकारी देने के लिए दूरदर्शन शुरू हुआ था। इस प्रयोग से नतीजा निकला कि दूरदर्शन निरक्षर समाज को सूचना के प्रति सजग बनाने का एक जबर्दस्त माध्यम है और उसे विकसित किया जाना चाहिए। यह प्रयोग कोई दो-तीन साल तक चला।इसके बाद दूरदर्शन को मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई आदि महानगरों में शुरू किया गया, जिसमें राजनीतिक-सामाजिक खबरों की संख्या बढ़ाई गई और मनोरंजन का हिस्सा भी बढ़ाया गया। भारत में दूरदर्शन को आगे बढ़ाने का यह दूसरा चरण था, जो आपातकाल तक रहा। आपातकाल में दूरदर्शन सरकारी नीतियों और सत्ता के प्रचार का भोंपू बना दिया गया। इससे दूरदर्शन की विश्वसनीयता में कमी आई। आपातकाल के बाद दूरदर्शन और रेडियो को सूचना माध्यम के रूप में सरकारी शिकंजे से मुक्त कर स्वायत्त बनाने की घोषणा विभिन्न सरकारों ने की। इसके लिए कई कमेटियाँ और आयोग बने।आखिर में 1990 में प्रसार भारती कानून बना, जिसमें दूरदर्शन को स्वायत्तता देने की व्यवस्था की गई। 1990 के बाद इराक युद्ध के दौरान भारत में उपग्रह टीवी का चलन बहुत तेजी से बढ़ा। अनेक उपग्रह चैनल बाजार में आए। टीवी-संचार क्षेत्र में निजी मीडिया घराने कूद पड़े। आज जितने चैनल केबल और उपग्रह आदि के जरिए घरों में देखे जाते हैं वे सब 1990 के बाद के हैं।
आज का टीवी जगत ग्लोबल जगत है। भारत में दुनिया के किसी भी कोने के चैनल दिखते हैं। इसी तरह भारत के चैनल भी विदेश में दिखते हैं। इंटरनेट और फेसबुक से लेकर ट्विटर तक ने टीवी की खबरों और बाइटों को नए आयाम दिए हैं। आज टीवी सचमुच एक ग्लोबल संचार माध्यम का रूप ग्रहण कर चुका है। वह जन-मन को बनाने-बिगाड़ने वाला संचार माध्यम बन गया है। उसने मनोरंजन से लेकर खबरों के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग किए हैं। अब कोई भी खबर तत्काल सब जगह पहुँचती है। टीवी चैनल अब तरह-तरह के कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण भी करते हैं। हर नागरिक आज पत्रकार है और हर आदमी संवाददाता। मनोरंजन के क्षेत्र में टीवी अब चित्रहार और साप्ताहिक फिल्म प्रदर्शन से निकलकर चौबीस घंटे तरह-तरह के मनोरंजक कार्यक्रम दर्शकों को परोस रहा है।
दूरदर्शन आज भी एक भरोसेमंद और प्रभावी माध्यम नजर आता है। इसका कारण यह है कि खबरों और मनोरंजक कार्यक्रमों के प्रसारण में हमेशा उसका एक जिम्मेदाराना रवैया रहा है। प्रसार भारती के गठन के बाद उसे सीमित स्वायत्तता मिली है। इससे उसकी साख बढ़ी है।
दूरदर्शन की सीरियल क्रांति रियलिटी शो में तब्दील हो गई है और विज्ञापन निर्णायक बन गए हैं। इतने सारे चैनलों के बावजूद जनता टीवी चैनलों की पकड़ से बाहर हैं, क्योंकि टीवी चैनल धीरे-धीरे मध्यवर्गीय और महानगरीय सीमाओं में सिमट गए हैं। इसलिए टीवी चैनल समस्याओं को उजागर करने की जगह सतही बनते जा रहे हैं। वे बड़े अभिनेता-अभिनेत्रियों, सेलिब्रिटी और धन्नासेठों को ही अपना विषय बनाते हैं। जिस आम आदमी को दूरदर्शन ने अपनी सारी सीमाओं के बावजूद गले लगाया था, वह आम आदमी आज टीवी चैनलों में अव्वल तो आता नहीं, अगर आता भी है तो महानगरीय-सा लगता है। इसके विपरीत "दूरदर्शन" आज भी आम आदमी का प्रसारक है। उसकी खबरें अधिक ठहरी हुई होती हैं और वह जनता के प्रति जबावदेह और सजग भी दिखता है। बहुत से लोग निजी चैनलों की चमक-दमक में समझते हैं कि दूरदर्शन गए-गुजरे लोगों का माध्यम है और उसकी दर्शक संख्या कम है, जबकि सच्चाई इसके उलट है।दूरदर्शन आज भी एक भरोसेमंद और प्रभावी माध्यम नजर आता है। इसका कारण यह है कि खबरों और मनोरंजक कार्यक्रमों के प्रसारण में हमेशा उसका एक जिम्मेदाराना रवैया रहा है। प्रसार भारती के गठन के बाद उसे सीमित स्वायत्तता मिली है। इससे उसकी साख बढ़ी है। टीवी चैनलों की भीड़ के बावजूद आज भी सबसे ज्यादा लोग दूरदर्शन को ही देखते हैं। दूरदर्शन के दर्शकों की संख्या निजी चैनलों के दर्शकों की कुल संख्या से कहीं ज्यादा है। अगर दस करोड़ घरों के लोग टीवी देखते हैं तो इनमें से सत्तर फीसदी लोग दूरदर्शन देखते हैं। दूरदर्शन दूरदराज और दुर्गम इलाकों तक में देखा जाता है, जहाँ केबल और उपग्रह को पकड़ने वाली डिश काम नहीं करती। आज के टीवी सीन में दूरदर्शन अपनी सारी सीमाओं के बावजूद अहम भूमिका रखता है और आम आदमी का असली माध्यम वही है। (नईदुनिया)