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बचपन की स्मृतियाँ और समय का हाहाकार

ब्लॉग चर्चा में इस बार उदय प्रकाश

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रवींद्र व्यास

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समकालीन हिंदी के सबसे चर्चित कथाकार-कवि उदय प्रकाश का ब्लॉग पिछले तीन माह से सूना है। वे कह गए थे कि डे़ढ़ माह बाद लौट आएँगे। वे अपने ब्लॉग पर अब तक नहीं लौटे हैं। और ब्लॉग दुनिया में इसकी कोई चर्चा भी नहीं है लेकिन मुझ जैसे उनके प्रशंसक को कमी महसूस होती है कि आखिर यह लेखक ब्लॉग की दुनिया से इतने लंबे समय से गायब क्यों है?

उनकी आखिरी पोस्ट 4 जुलाई की है जिसमें उन्होंने अपनी एक बेहतरीन कविता चंकी पांडे मुकर गया है पोस्ट की थी। इसके बाद से उनका यह ब्लॉग सूना है। हो सकता है वे अपनी किसी लंबी कहानी को लिखने में तल्लीन हों, या अपना उपन्यास शुरू किया हो। ऐसा है तो खुश खबर है लेकिन यह नहीं हो तो चिंता होती है।
ब्लॉग चर्चा शुरू करने के पहले उनके इस गद्यांश को पढ़िए -

आषाढ़ महीने की उस रात, नदी के पार, दूसरे तट पर, रहस्यपूर्ण आग की धुँधली-झिलमिलातनन्ही-नन्ही लपटें टहल रही थीं। हमारे बीच की दूरी में बाढ़ में उतराती नदी की तेधार और उसका हहराता हुआ शोर था। मैंने मां को पुकारा, `मम्मा, देखो नदी के पाचितावर जल रहा है।´
माँ उठ कर आई। उन्होंने गौर से देखा और कहा, `सुनो, क्यतुम्हें कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही है, आदमियों की?´
मैंने अपने कान उधर लगाएधीरे-धीरे बाढ़ के शोर और रात की दूसरी ध्वनियों में कहीं डूबी हुई मनुष्यों कआवाजें सुनाई देने लगीं। कुछ ही पलों बाद पता लगने लगा कि इसमें संगीत जैसा कुहै। कुछ ध्वनियों की बार-बार आवृत्ति

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माँ रसोई के अंदर जा चुकी थी और मैवहीं खड़ा था चुपचाप। उन रंगीन धुँधली रोशनियों को घूमते-टहलते देखता और वहाँ सउठने वाली आवाजों को सुनने की चेष्टा करता हुआ। कुछ देर के बाद, उन सुदूर रोशनके वृत्तों में से मनुष्यों के आकार झलकने लगे। अस्पष्ट, अस्थिर लेकिन निश्चिजीवित मानव आकृतियाँ

मैं आज तक नहीं जानता कि लामा मृतक का अंतिम संस्काकिस तरह करते हैं। उसे दफनाते हैं, जलाते हैं, पारसियों की तरह कहीं शव को छोड़ देतहैं या नदी में बहा देते हैं। लेकिन मुझे इतना जरूर लगता है कि अपने घर और देश सहजारों मील दूर, जब कोई तिब्बती किसी और पराये देश में मरता है, तो अंतिम संस्काके समय लामा जो प्रार्थना करते हैं या मंत्र पढ़ते हैं, तो वह असल में, ध्यान ससुनो तो, और कुछ नहीं, एक विलाप जैसा कुछ होता है। बहुत मार्मिक। भीतर तक बेध डालनवाला। व्याकुल कर डालने वाला।

और अगर कोई सिर्फ राजनीतिक नहीं रह गया है, उसकभीतर मनुष्य जैसा कुछ बचा रह गया है तो उसकी स्मृति का पीछा यह विलाप कभी नहीछोड़ता....

उदय प्रकाश के ब्लॉग को पढ़ना एक तरह से हमारे समय के दुःस्वप्नों, उसकी चुनौतियों, हिंसा और अत्याचार औऱ साथ ही इनसे लड़ने के साहस और ताकत से भी रूबरू होने जैसा है। शुरुआत की पंक्तियाँ उनकी किस्तों में लिखी गई संस्मरण की कड़ी से ली गई हैं। ये स्मृतियाँ तिब्बत कविता के पीछे छिपी कहानी को बताने के लिए लिखी थी

उल्लेखनीय है कि उदय प्रकाश की तिब्बत कविता को १९८० में प्रतिष्ठित भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वस्तुतः तिब्बत कविता के पीछे छिपे इन संस्मरणों को पढ़ने से उदय प्रकाश की किसी लंबी कहानी को पढ़ने जैसा आस्वाद ही मिलता है। बचपन की स्मृतियों को इन संस्मरणों में वे बिलकुल साफ, चमकदार, नीले और पारदर्शी आसमान की तरह देख पा रहे हैं। उन कारुणिक दृश्यों को वैसा ही दर्ज कर रहे हैं जैसा अपनी कहानियों में दर्ज करते रहे हैं, कल्पना के बारीक और मुलायम धागों से बुनते हुए, जो गहरे दुःख और पीड़ा के रंग से रंगे हुए हैं। एक कवि अपनी कविता लिखने के लिए दूसरों के दुःख में किस कदर घुलमिल जाकर किस कलात्मक ढंग से उस अनुभव को अभिव्यक्त करता है जो बरसों बरस उसके जेहन में अमिट बने रहे हैं।

यह कविता न केवल तिब्बतियों पर चीन के अत्याचारों को बहुत ही कारुणिक ढंग से और लगभग उतनी ही मासूमियत से बताती-जताती है जितना मासूमियत भरा लामाओं का जीवन होता है। दूसरी तरफ यह इसी अकेलेपन, पीड़ा और मासूमियत से वह ताकत हासिल करती है जिससे इन अत्याचारों के खिलाफ बिना शोर किए एक प्रतिरोध भी पैदा होता है। बीस साल पहले लिखी गई एक छोटी सी कविता आज कितनी ज्यादा प्रासंगिक हो गई है यह हम उन खबरों के आईने में भी देख सकते हैं जब चीन में ओलिंपिक के मद्देनजर तिब्बतियों पर चीनी सरकार फिर से अत्याचार करने पर उतर आई थी

जाहिर है यह सस्मरण हमें एक बार फिर उस पीडा और अवसाद के जल में झाँकने का मौका देता है जो लगातार अनदेखा किया जाता रहा है। यह संस्मरण कल्पना और यथार्थ, करुणा और अवसाद, बचपन और घर, बालमन और आसपास के आश्चर्यलोक का ऐसा विशाल दृश्य चित्रित करता है कि हम उदय प्रकाश की रचनात्मकता के प्रति गहरे आदर से भर जाते हैं।

इस ब्लॉग पर उदय प्रकाश ने कुछ और बेहतरीन चीजें पोस्ट की हैं। जैसे उन्होंने म्यांमार की क्रांतिकारी नेता आंग सान सू की का जॉन पिल्गर का लिया साक्षात्कार भी अनुवाद किया है जिसे पढ़कर आप एक नेता के साहस और अपनी जनता के प्रति प्रेम और जिम्मेदारी का गहरा अहसास देख सकते हैं। इसके अलावा अपनी कविताएँ भी लगाई हैं।

यही नहीं उन्होंने हिंदी के महान कवियों भवानी बाबू (भवानीप्रसाद मिश्र), त्रिलोचन आदि को याद किया है। इसमें त्रिलोचन की मृत्यु के कुछ ही दिन पहले के फोटो भी देखे जा सकते हैं। अपने मित्र अशोक शास्त्री की मृ्त्यु पर उन्होंने संस्मरण लिखा है। इसके अलावा अपनी कहानियों के नाट्य रूपांतर, अनुवाद और फिल्मों के बारे में जानकारी देते हुए उनसे फोटो भी दिए हैं। उनकी विदेश यात्राओं के फोटो भी यहा देखे जा सकते हैं।

कुल मिलाकर उदय प्रकाश का ब्लॉग हमारे समय के हाहाकार को अपने पूरे रचनात्मक कौशल के साथ अभिव्यक्त करता है। उनका यूआरएल है-
http://uday-prakash.blogspot.com

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