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बड़ी लकीर खींचने की कोशिश में मोदी

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उमेश चतुर्वेदी

PTI
आम आदमी पार्टी के उभार के बाद भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का राष्ट्रीय मीडिया में स्पेस कम हो गया था..पार्टी के रणनीतिकार इसे लेकर खुलकर भले ही चिंता नहीं जता रहे थे..लेकिन उनके पेशानी पर बल जरूर नजर आने लगे थे। ऐसे माहौल में मोदी अपनी पार्टी की राष्ट्रीय समिति की बैठक में रविवार को जब बोलने जा रहे थे, तो दिल्ली में रविवार की सुबह छाए कोहरे की तरह उम्मीदों के आकाश पर आशंकाओं के बादल छाए हुए थे।

लेकिन जैसे दिन चढ़ते ही दिल्ली में सूरज खिल उठा, मोदी के भाषण पर छाए आशंकाओं के बादल भी काफूर हो गए..मोदी न सिर्फ छाए रहे..बल्कि पूरी तरह अपने भाषण से मीडिया ही नहीं, अपनी पार्टी की राष्ट्रीय समिति के सदस्यों को भी मंत्रमुग्ध भाव से सुनने के लिए मजबूर हो गए।

...तो क्या यह मान लिया जाए कि आम आदमी पार्टी का असर कम होने लगा है..जिस तरह आम आदमी पार्टी के मंत्री हरकतें कर रहे हैं और पार्टी के अंदर सिरफुटव्वल का माहौल गहराता जा रहा है..उससे लगता तो यही है कि राष्ट्रीय मीडिया परिदृश्य में मोदी की वापसी हो चुकी है..हालांकि इसे पूर्ण वापसी मानने के लिए कुछ और वक्त तक इंतजार करना ही होगा..

नब्बे के दशक में जब क्षेत्रीय राजनीति अपने उभार पर थी तो उसके पीछे पिछड़ा, दलित और क्षेत्रीय अस्मिताओं का उभार माना गया था..तब इन शक्तियों के सैद्धांतिक पैरोकारों का तर्क रहा कि चूंकि कांग्रेस जैसे अखिल भारतीय असर वाले दलों ने क्षेत्रीय अस्मिताओं और उम्मीदों को इतनी चोट पहुंचाई है कि क्षेत्रीय अस्मिताएं इन दलों (क्षेत्रीय दलों) के तौर पर उभर रही हैं और लोग उनका साथ दे रहे हैं।

लेकिन क्या क्षेत्रीय अस्मिताओं ने अपने असर वाले राज्यों के विकास के साथ क्या किया है..यह अब किसी से छुपा नहीं है..हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों को छोड़ दें तो चाहे उत्तरप्रदेश, बिहार, उड़ीसा या पूर्वोत्तर के राज्यों की तरफ देखें..तमाम क्षेत्रीय ताकतों और राजनीति के उभार के बावजूद इन इलाकों के राज्य विकास के किस पायदान पर खड़े हैं..लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में उनके खिलाफ सवाल उठाने की हिम्मत किसी भी दल में नहीं है..कम से कम उनकी राजनीति पर कोई सवाल नहीं उठाना चाहता।

मोदी भले ही राजनीति में अपनी जुबानी हमलों में नए इतिहास बना रहे हों, लेकिन उनसे भी किसी ने उम्मीद नहीं लगा रखी थी कि वे क्षेत्रीय राजनीतिक ताकतों पर निशाना साधेंगे। प्रधानमंत्री की दौड़ में जब एक-एक लोकसभाई सीट से उम्मीद लगाई गई हो, कांग्रेस जैसा दल भी साम-दाम-दंड-भेद लगाकर क्षेत्रीय दलों को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहा हो, मोदी से भी ऐसी उम्मीद नहीं की जा रही थी।

मोदी ने अपने भाषण में सीधे-सीधे क्षेत्रीय अस्मिताओं पर ही सवाल उठा दिया और उन्हें विकास की राह में बाधक बता दिया। मोदी के इस बयान से जाहिर है कि वे अपने दम पर खुद की बड़ी लकीर खींचना चाहते हैं। उन्हें पता है कि क्षेत्रीय अस्मिताओं के सहारे आई गठबंधन की सरकार को उनके जैसे दबंग व्यक्तित्व के लिए चला पाना आसान नहीं होगा। अव्वल तो उसे सहयोग भी मिल जाए तो बड़ी बात होगी लेकिन मोदी ने उनकी परवाह करने की बजाय सीधे मतदाताओं से उनकी शिकायत कर डाली।

मोदी पर कांग्रेस का आरोप रहा है कि वह कांग्रेस सरकार की आलोचना तो करते हैं, लेकिन भावी विकास के लिए उनके पास कोई एजेंडा नहीं है। राष्ट्रीय समिति को संबोधित करते हुए उन्होंने कांग्रेस को लगता है, जवाब देने की ही कोशिश की। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सरकार के दौर में होने वाले विकास का खाका खींचने की कोशिश की।

उन्होंने कहा कि किसानों और पैदावार के भरोसेमंद आंकड़े तैयार किए जाएंगे। बेरोजगारी घटाने के उपायों पर चर्चा की और एक बार फिर एकात्म मानववाद आधारित अपने विकास का ही खाका लोगों के सामने पेश किया। उन्होंने देश में 100 नए स्मार्ट सिटी बनाने, हर राज्य में आईआईटी, आईआईएम और एम्स बनाने का सपना लोगों के सापने पेश किया।

दुनिया में जहां बुलेट ट्रेन हकीकत बन चुकी है, भारत में यह सपना अभी दूर है, फिर नहीं पीढ़ी भी रफ्तार और विकास की कायल है लिहाजा उन्होंने पूरे देश को बुलेट ट्रेनों से जोड़ने का वादा भी किया। वाजपेयी सरकार ने बाढ़ और सूखा से राहत के लिए नदी जोड़ परियोजना शुरू की थी। मोदी एक बार फिर इस परियोजना का लोगों को सपना दिखाया है।

लगातार बढ़ती महंगाई के दौर में स्वास्थ्य और इलाज परेशानी का सबब बन गया है। मोदी को इसका ध्यान है..शायद यही वजह है कि उन्होंने हेल्था इंश्योरेंस की बजाए सबको स्वास्थ्य की योजना देने का वादा किया।

उन्होंने सबसे बड़ी बात यह की कि वे देश के पूर्वी हिस्से के विकास पर भी पश्चिमी हिस्से जैसा ध्यान देंगे। मोदी के इस भाषण को कांग्रेस कार्यसमिति में राहुल और सोनिया के भाषण के जवाब के तौर पर ही देखा जाएगा लेकिन हर बार की तरह यह भाषण सिर्फ इतना ही नहीं है, बल्कि इससे आगे है। यानी मोदी ने सही मायने में चुनावी बिगुल की शुरुआत कर दी है। (लेखक टेलीविजन पत्रकार और स्तंभकार हैं)

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