rashifal-2026

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

भ्रष्टाचार और नैतिकता पर खुलकर बात करें !!

Advertiesment
हमें फॉलो करें मध्यप्रदेश विधानसभा डंपर
, शुक्रवार, 30 नवंबर 2007 (11:17 IST)
विनय छजलान
तो डंपर ने अब विधानसभा सत्र को भी कुचल दिया। मध्यप्रदेश विधानसभा का 60 साल का इतिहास जरूर शर्मसार हो गया लेकिन उसे लिखने वालों का सीना दो इंच और चौड़ा हो गया होगा। वाह प्यारे! क्या बहादुरी का काम किया है। करना क्या है विधानसभा या लोकसभा चलाकर? पानी, बिजली, सड़क ये भी कोई मुद्दे हैं भला?

क्या हुआ गर आज भी प्रदेश के कई गाँवों में पेयजल नहीं है, क्या हुआ गर शहरों में भी दो घंटे रोज से ज्यादा की बिजली कटौती हो रही है, गाँवों में तो कई-कई घंटों अँधेरा है, क्या फर्क पड़ता है? क्या हुआ गर प्रदेश में महिला उत्पीड़न के मामले बढ़ते जा रहे हैं, क्या हुआ जो स्कूली शिक्षा की खस्ता हालत पर सदन में बहस नहीं हो पाई? अरे ये भी कोई मुद्दे हैं?

NDND
तो फिर मुद्दा क्या है- भ्रष्टाचार? नहीं मुद्दा दरअसल भ्रष्टाचार भी नहीं है... भ्रष्टाचार तो राजनेताओं की वादाखिलाफी से भी ज्यादा पुराना और शाश्वत सत्य है। किसी ने चारे में खाए, तो किसी ने गारे में। कोई पानी में पी गया तो कोई डबरी में तो कोई नलकूप में जीम गया। कोई तोप में खा गया, कोई डामर में तो कोई सिंहस्थ में और कोई विस्थापन में। क्या-क्या गिनाएँ और किसको गिनाएँ, सब तो एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।

सही ही तो कहते हैं कि आज की तारीख में ईमानदार वही है जो बेईमानी करते हुए पकड़ा न जाए। पकड़ा जाए तो वो सब उधम मचाएँगे और ईमानदारी की दुहाई देंगे जो खुद एक नहीं कई डंपरों पर सवार होंगे। भई नैतिकता का तकाजा जो ठहरा! और नैतिकता का तकाजा आखिर है क्या चीज? यही न कि अपनी तमाम अनैतिकताओं को दरकिनार करते हुए नैतिकता का बिगुल बजाओ। सामने वाला फँस ही गया है तो उस पर खूब कीचड़ उछालो, अपना दामन दागदार है कि नहीं इससे क्या मतलब?

और फिर ऐसा सोचने लग जाएँ कि- पहला पत्थर वो मारे जिसने पाप ना किया हो, जो पापी न हो तो फिर तो पत्थर मारना ही मुश्किल हो जाए। ऐसा कौन होगा जिसने टी.सी. को पैसे देकर रेल में बर्थ ना ली हो, या राशन कार्ड या जाति प्रमाण पत्र न बनवाया हो, या टैक्स बचाने के लिए झूठे कागज न लगाए हों!! अब छोटे लोग छोटा भ्रष्टाचार करेंगे, तो बड़े लोग बड़ा भ्रष्टाचार करेंगे। बस दिखना नहीं चाहिए। और यहीं कई लोग चूक जाते हैं।

सब जानते हैं किस शहर में किस नेता की कौन सी होटल है, कौन सा उद्योग है, कौन सा मैरेज गार्डन है, कौन सा स्कूल है आदि-आदि सब जानते हैं। तो? उस से क्या ऐसा ही कुछ कर लेते, अब सीधे डंपर ही चलवाने की क्या जरूरत थी? श्रीमतीजी के नाम पर डंपर चलेंगे तो इनकम टैक्स से लेकर हर चीज का हिसाब देना होगा। बेनामी ही कर लेते। ऐसी नैतिकता किसी काम की नहीं, जमाना बहुत खराब है, पूरा अनैतिक भ्रष्ट ज्यादा सुखी है। अब देखो नजर लग गई न ? अब जवाब देते फिरो....

लोग कहते हैं कि जाँच बिठा दी है, तो सदन में हंगामा मचाने की क्या जरूरत? ये भी कोई बात हुई भला! कमीशन बैठाने वाले और हंगामा करने वाले सब जानते हैं कि इसका कोई मतलब नहीं। वैसे भी अब ये मुद्दा प्रदेश और राष्ट्र हित का है, और अभी जो विधायकों के वेतन-भत्ते बढ़े हैं और प्रदेश के खजाने पर 6.63 करोड़ का अतिरिक्त भार आया है, वो इसलिए थोड़ी आया है कि ये सब विधायक सदन चलाएँ। उनको तो सदन की कार्रवाई स्थगित करनी थी, सो कर दी। अपना क्या अपन भी चलें किसी पान की दुकान पर, और भ्रष्टाचार पर खुलकर बात करें...।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi