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राजीव ने दिखाई संचार क्रांति की राह

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हमें फॉलो करें राजीव गाँधी सद्भावना दिवस
-विभा पटेल
भारत के इतिहास में राजीव गाँधी का प्रधानमंत्रित्वकाल संचार क्रांति और कम्प्यूटर युग के रूप में याद किया जाएगा। ये दोनों बातें ऐसी हैं, जिनके आधार पर भारत में विकास के नए द्वार खुले और आज हमारा देश संचार क्रांति में विश्व में सिरमौर है। देश में विकास की जो गति तेज हुई, वह कम्प्यूटर व संचार क्रांति का ही परिणाम है।

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राजीव गाँधी ने बड़ी त्रासद परिस्थितियों में देश की बागडोर संभाली। उनकी माँ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की उन्हीं के ही सुरक्षा गार्ड ने हत्या कर दी थी। उनकी पार्टी कांग्रेस पार्टी आपसी गुटबाजी और एक-दूसरे की छवि धूमिल करने में लगी थी। साम्प्रदायिक एवं अलगाववादी ताकतें सिर उठाने लगी थीं। आतंकवाद के हमले सीमापार से बढ़ गए थे। घरेलू मोर्चे पर भी नक्सलवाद अपना फैलाव बंगाल से निकलकर पड़ोसी आदिवासी अंचलों में अपनी जड़ें जमाने लगा था। कांग्रेस के शीर्ष स्तर भी इंदिराजी के बाद कौन प्रधानमंत्री बने, इस पर भी मतैक्य नहीं था, इसलिए सत्ता की सूई राजीव गाँधी पर आकर रुक गई। हालातों से समझौता हुआ और राजीवजी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया गया।

माँ के निधन से उत्पन्न अवसाद के गहरे क्षणों में इस युवा ने जिस साहस, धैर्य और मानसिक संतुलन का परिचय दिया, वह भारतीय इतिहास में अद्वितीय है। उन्होंने नकारात्मक सोच को अपने पास ही नहीं फटकने दिया। शीघ्र ही वे अपने नए उत्तरदायित्व प्रधानमंत्री पद के प्रति गंभीर हो गए एवं उन्होंने अपनी प्राथमिकताएँ स्वयं तय कर लीं। राजीव गाँधी चाहे पहले सक्रिय राजनीति में न रहे हों, लेकिन पायलट के रूप में उन्होंने देश-दुनिया को करीब से देखा था और विश्व की राजनीतिक उठा-पटक और प्रवृतियों से भी परिचित थे।

सर्वप्रथम उन्होंने सोचा कि अगर हमें दुनिया की तरक्की की रफ्तार में साथ-साथ चलकर अपना मुकाम बनाना है तो हमें हर चीज में वैज्ञानिक सोच को प्राथमिकता देना होगी और विश्व ने जो वैज्ञानिक उपलब्धियाँ हासिल की हैं, उसे अपने निजी और सार्वजनिक जीवन में जोड़ना होगा। इसके लिए उन्होंने कम्प्यूटर और संचार साधनों को विशेष महत्व दिया, उसी का परिणाम है कि आज हम सूचना प्रौद्योगिकी में दुनिया के सिरमौर बने हुए हैं। आज केवल संसार के विकासशील देश ही नहीं, वरन विकसित देश भी सूचना प्रौद्योगिकी की जरूरतों के लिए हमारी ओर देखने लगे हैं
  राजीवजी के रूप में भारत को एक युवा, ऊर्जावान, स्वप्नदर्शी प्रधानमंत्री मिला। उन्होंने जिस सशक्त और हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न देखा था, उसे पूरा करना हमारा दायित्व है       


दूसरा उन्होंने देश में चल रही विकास प्रक्रिया को भी भूल-भुलैया वाला माना। उन्होंने साहसपूर्वक यह घोषणा की कि हम गाँवों की विकास योजनाओं के लिए दिल्ली से जो एक रुपया भेजते हैं, उनमें से 85 पैसे तो बीच की प्रशासनिक व्यवस्था तथा अन्य कारणों से दूसरी जेबों में चला जाता है। केवल 15 पैसे ही हितग्राही के पास पहुँच पाते हैं। इसमें सुधार के लिए उन्होंने सीधे पंचायतों के पास विकास की राशि पहुँचाने की व्यवस्था की। इससे भ्रष्टाचार पर भी रोक लगी और विकास के सम्पूर्ण राशि विकास एजेंसी के पास पहुँचने लगी, इससे गाँवों में विकास की गति तेज हुई।

राजीवजी ने राजीव शिक्षा मिशन और राजीव जल मिशन जैसे अनेक प्रशासनिक संगठन बनाकर इन क्षेत्रों में विकास के नए द्वार खोले। राजीवजी ने महसूस किया कि जब तक आधी आबादी अर्थात महिलाओं को फैसला लेने वाली संस्थाओं से नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक न तो महिलाओं में जाग्रति आएगी और न ही उनकी क्षमता और योग्यता का सीधा लाभ समाज को मिल पाएगा। महिला सशक्तीकरण की दिशा में भी यह एक कारगर प्रयास सिद्ध होगा।

इसके लिए उन्होंने स्थानीय संस्थाओं और पंचायतों में तीस प्रतिशत आरक्षण दिया। साथ ही पंचायतों को अनेक मामलों में स्वयं निर्णय लेने का अधिकार देकर उन्होंने भी सशक्त बनाया। वे साम्प्रदायिक और अलगाववाद की प्रवृतियों की रोकथाम के लिए सदा सक्रिय रहे। राज्य से लोगों को जान-माल सुरक्षा मिले, यह राज्य का पहला कर्त्तव्य होता है। इसके लिए उन्होंने खतरों से खेलने का साहस भी दिखाया और इसी अलगाव की हिंसात्मक प्रवृति ही उनके असामयिक निधन का कारण बनी।

राजीवजी के रूप में भारत को एक युवा, ऊर्जावान, स्वप्नदर्शी प्रधानमंत्री मिला था, जो काल ने असमय ही हमसे छीन लिया। उन्होंने जिस सशक्त और हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न देखा था, उसे पूरा करना ही अब हमारी पीढ़ी का दायित्व है
(लेखिकभोपामहापौहैं।) सौजन्य-मधुकामिनी फीचर्स

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