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लुप्त हो रही हैं दुनियाभर की गिद्ध प्रजातियां

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विश्व में पक्षियों की हजारों प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं जिससे पारिस्थितिकी तंत्र का तानाबाना असंतुलित हो जाने का खतरा है।

जीव-जंतुओं से संबंधित अंतरराष्ट्रीय संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में पक्षियों की नौ हजार 956 प्रजातियों को खतरे वाली श्रेणी में रखा गया है जिनमें से 1217 प्रजातियों के विलुप्त हो जाने की ज्यादा आशंका व्यक्त की गई है।

आईयूसीएन के अनुसार भोजन की कमी घटते आवास और विद्युत तार पक्षियों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। रेड लिस्ट में कहा गया है कि वातावरण को प्रदूषण मुक्त रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गिद्धों की संख्या काफी तेजी से कम हो रही है।

पक्षी विज्ञानी रवि कुमार के अनुसार गिद्धों के नष्ट होने का मुख्य कारण पशुओं को दी जाने वाली डाईक्लोफेनेक दवा है। यह दवा पशुओं की मांसपेशियों में जम जाती है और उनकी मौत तक उनके शरीर में बनी रहती है।

कुमार का कहना है कि पशुओं के मरने पर गिद्ध जब उनका मांस खाते हैं तो डाईक्लोफेनेक उनके शरीर में चली जाती है। इसके असर से धीरे-धीरे गिद्ध भी मौत के मुंह में चले जाते हैं।

आईयूसीएन की रिपोर्ट के अनुसार एशिया में पाए जाने वाले लाल सिर के गिद्ध (जिन्हें सार्कोजिप्स काल्वस) कहा जाता है अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार एशिया में पाया जाने वाला एजिप्शियन गिद्ध (नीओफ्रोन पक्रनोप्टेरस) अब देखने को नहीं मिलता अफ्रीका में पाए जाने वाले सफेद सिर के गिद्ध ‘ट्रिगनोसेप्स अफ्रीकंस’ भी खतरे का सामना कर रहे हैं।

आईयूसीएन की रेड लिस्ट के अनुसार अफ्रीका में पाया जाने वाला सफेद पीठ वाला गिद्ध ‘जिप्स अफ्रीकंस’ विलुप्ति के नजदीक पहुंच चुका है जबकि अफ्रीका में ही पाया जाने वाला ‘रुपेल्स ग्रिफन’ (जिप्स रुपेली) की प्रजाति भी लगभग विलुप्ति के नजदीक है।

रवि कुमार का कहना है कि यदि गिद्धों को बचाने के उचित प्रयास नहीं किए गए तो वातावरण में प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाएगा। गिद्ध मानव के मित्र हैं जिन्हें बचाना मानव का ही फर्ज है।

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