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लोगों की जेब ही गायब कर दी!

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, गुरुवार, 5 जून 2008 (14:22 IST)
- अखिलेश श्रीराम बिल्लौर

4 जून को केंद्र सरकार ने पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दामों में वृद्धि कर दी। इस वृद्धि से आम जनता पर क्या असर पड़ेगा। यह जरूर सोचा होगा सरकार ने। क्योंकि बहुत दिनों से सरकार मूल्यवृद्धि को लेकर दबाव में थी। कीमतें जितनी बढ़ाई जाने की सिफारिश थी, उतनी नहीं बढ़ाईं। यह आम जनता पर एक तरह का एहसान किया।

लेकिन सबसे अहम प्रश्न यहाँ यह है कि महँगाई जब आम जनता का बजट पहले ही बिगाड़ चुकी है। लोगों की जेब कब की कट चुकी है। गृहिणियों को घर का बजट संभालने में नानी याद आ रही है। किराना सामान, दूध, सब्जी आदि प्रतिदिन की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं।

ऐसे में यह मूल्यवृद्धि क्या लोगों की जेब ही गायब नहीं करेगी। क्या सरकार मूल्यवृद्धि करते वक्त यह सोचती है कि किसी कंपनी में मामूली पगार पर नौकरी करने वाले कर्मचारी का मालिक मूल्यवृद्धि से दया दिखाकर उसकी तनख्वाह में 500-600 रुपए की बढ़ोतरी कर देगा! ताकि उस बेचारे का बजट बना रहे। क्या सरकार ने अपने कर्मचारियों के वेतन में उतनी बढ़ोतरी की है? नहीं ना।

ऐसा कुछ नहीं हुआ है। सरकार को कीमत बढ़ाना थी उसने बढ़ा दी। देश में जनता पर इसका कुछ भी असर क्यों न हो। हमें तो चुनाव आयोग का अहसानमंद होना चाहिए‍कि उसने कर्नाटक चुनाव की वजह से सरकार को दो माह पूर्व ही कीमतें बढ़ाने के लिए रोके रखा। आज एक आम मध्यम वर्गीय परिवार को कितनी कठिनाई उठाना पड़ रही है। ऊपर से कमरतोड़ महँगाई। गरीब तो बेचारा बनकर छूट जाता है।

अमीर के बारे में कह ही नहीं सकते। मध्यम वर्गीय न तो भीख माँग सकता है, न ही ऐश कर सकता है। उसे तो मरना ही है। यदि आज के जमाने में मनुष्य केवल सादा जीवन भी जीना चाहे तो वह सुख से जी नहीं सकता क्योंकि सादा जीवन जीने के लिए भी कुछ जरूरी वस्तुओं की आवश्यकता होती है। वह भी इस महँगाई के युग में उसे नसीब नहीं है।

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