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विचारों में धड़कती जीवन की सुंदरता

इस बार 'जे.कृष्णमूर्ति इन हिंदी' ब्लॉग की चर्चा

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रवींद्र व्यास

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दुनिया में कई फिलॉसफर हुए हैं जिन्होंने अपनी मेधा, अंतर्दृष्टि और ज्ञान के जरिये मानव मन के रहस्यों को समझने-बूझने की कोशिशें की है। अपने अचूक और सटीक विचारों के जरिये जो जीवन-सूत्र दिए हैं वे निश्चित ही किसी के लिए भी राह दिखाने वाले हो सकते हैं। आँख खोल देने वाले हो सकते हैं और साथ ही दिल को खोल देने वाले भी हो सकते हैं। इन विचारों और भावो के जरिये कोई भी अपने को, अपने अंतर्मन को और दुनिया के साथ अपने रिश्तों के रंगों, रेशों और खुशबुओं में समझ-जान सकता है।

इन फिलॉसफर में एक हुए हैं जे.कृष्णमूर्ति। जे.कृष्णमूर्ति ने पारदर्शी जल की तरह सुस्पष्ट विचारों और भावों के जरिये क्रांतिकारी बदलाव की प्रेरणा दी है। उन्होंने अपने विचारों को इतनी सरलता और सहजता से अभिव्यक्त किया है कि हम उनकी खरी संवेदना से परिचित होते हैं और उदात्त विचारों से भी। उनके कहने की शैली हमें छूती है और हमें एक निर्मल अनुभव दे जाती है।

इसी अनुभव में हम जान पाते हैं कि हम क्या हैं, हमारी महत्वाकांक्षाएँ और पीड़ाएँ क्या हैं और अंततः हम किस मिट्टी के बने हैं और हमें किस तरह से अपने जीवन की जीना चाहिए। उनके विचारों को फैलाने के मकसद से एक ब्लॉग ध्यान खींचता है। यह ब्लॉग है जे.कृष्णमूर्ति इन हिंदी। इस विरल और महान दार्शनिक के विचार अंग्रेजी में हैं लेकिन इसका अनुवाद भी खासा उपलब्ध है। यह ब्लॉग इस दार्शनिक के विचारों को हिंदी में पढ़ने का मौका देता है।

राजेय शा के इस ब्लॉग की एक पोस्ट पहला कदम ही आखिरी कदम में कृष्णमूर्ति लिखते हैं कि पहला कदम है जानना, बूझना, समझना, महसूस करना। यह समझना कि आप क्या सोचते हैं, अपनी महत्वाकांक्षाओं को समझना, अपने गुस्से को, अपने अकेलेपन, अपनी निराशा, अपने दुख की असामान्यता को समझना... इन सब बातों को बिना आलोचना किए, बिना न्यायसंगत ठहराए, इन्हें बदलने की इच्छा किए बिना समझना, बूझना, महसूस करना, जानना ही पहला कदम है।

इस अंश को पढ़कर यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे अपनी बात को कहने के लिए किसी आलंबन का, किसी कथा या दृष्टांत का सहारा नहीं लेते। इसी तरह से वे अपनी बात को ज्यादा साफ ढंग से कहने के लिए कतई भावुक नहीं होते। वे भाववादी दार्शनिक नहीं है कि आप उनके विचारों में बहते चले जाएँ और भावुक हो जाएँ। वे आपको एक साफ और पारदर्शी दृष्टि से चीजों को समझाने की कोशिश करते हैं।

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कोई अपने ही बारे में छवि क्यों बनाता है पोस्ट में उनके विचार कितने स्पष्ट है इसके लिए यह उदाहरण पर्याप्त होगा- 'हम लोग हमेशा एक आदर्शलोक में जीते हैं, कल्पनालोक में जीते हैं... मिथकों में जीते हैं उस जगत में नहीं जो यथार्थतः है। जो वास्तव में है उसे देखने के लिए... उसकी जाँच पूछ-परख, यथार्थ से परिचय के लिए- हमें पूर्वाग्रह, पूर्व में ही निर्णय, मूल्यांकन, उसके बारे में भय आदि बिल्कुल नहीं होना चाहिए।

इस तरह के मार्मिक और संवेदनशील विचारों को यहाँ पढ़ा जा सकता है। ये विचार कुछ कैटेगरी में दिए गए हैं। इनमें अपने बारे में,ध्यान, अनुभव, रिश्ते, प्रेम, छवि और होश कैटगरी के तहत इस दार्शनिक के छोटे-छोटे लेकिन सारगर्भित गद्यांश दिए गए हैं जो हमारे तमाम तरह के विभ्रमों को दूर कर हमें एक निश्छल और कुंठारहित मन देते हैं।

और अंत में वे प्रेम को लेकर क्या सोचते हैं यह इस पोस्ट की इन पंक्तियों में महसूस किया जा सकता है जो हमें एक विशाल और प्रेम भरा दिल दे सकता है- 'जब आपका दिल, दिमाग दुनिया की चीजों-चालाकियों से नहीं भरा होता, तब प्रेम से भरा होता है। एकमात्र और अकेला प्रेम ही है जो निवर्तमान दुनिया के पागलपन, उसकी भ्रष्टता को खत्म कर सकता है। प्रेम के सिवा, कोई भी संकल्पना, सिद्धांत, वाद दुनिया को नहीं बदल सकते। आप तभी प्रेम कर सकते हैं जब आप आधिपत्य करने की कोशिश नहीं करते, ईर्ष्यालु या लालची नहीं होते। जब आप में लोगों के प्रति आदर होता है, करूणा होती है, हार्दिक स्नेह उमड़ता है तब आप प्रेम में होते हैं। जब आप अपनी पत्नी, प्रेमिका, अपने बच्चों, अपने पड़ोसी, अपने बदकिस्मत सेवकों के बारे में सद्भावपूर्ण ख्यालों में होते हैं तब आप प्रेम में होते हैं।'

प्रेम ऐसी चीज नहीं जिसके बारे में सोचा विचारा जाए, कृत्रिम रूप से उसे उगाया जाए, प्रेम ऐसी चीज नहीं जिसको अभ्यास कर-कर के सीखा जाए। प्रेम, भाईचारा आदि 'सीखना' दिमागी बाते हैं प्रेम कतई नहीं। जब प्रेम, भाईचारा, विश्वबंधुत्व, दया, करूणा और समर्पण सीखना पूर्णतः रूक जाता है, बनावटीपन ठहर जाता है तब असली प्रेम प्रकट होता है। प्रेम की सुगंध ही उसका परिचय होता है। ये रहा इस ब्लॉग का पता-

http://jkrishnamurthyhindi.blogspot.com

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