Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

स्वच्छंदता का विरोध या पुरुषवादी मानसिकता

Advertiesment
हमें फॉलो करें सर्वोच्च न्यायालय
-वेबदुनिया डेस्क

FILE
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि महिला और पुरुष बिना शादी के भी एक साथ रह सकते हैं और यौन संबंध बना सकते हैं। इसे आप नैतिक दृष्टि से तो गलत मान सकते हैं और सामाजिक तौर पर भी स्वस्थ परम्परा नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इसे अपराध नहीं कहा जा सकता है। यदि कोई समाज के बनाए नियम कायदों को मानने की बजाय स्वच्छंद जीवन जीना चाहता है तो आप उसकी यह आजादी छीन भी नहीं सकते हैं।

ऐसे फैसलों का विरोध मात्र इसलिए ज्यादा होता है कि महिलाओं को अपनी मनमर्जी से किसी के भी साथ रहने को बुरा माना जाता है। देश में करोड़ों महिलाएँ विवाह के बावजूद ऐसे बहुत से तथाकथित सामाजिक और नैतिक बंधनों का शिकार बनी रहती हैं, जिन्हें अनैतिक और असामाजिक कहा जा सकता है, लेकिन इनका विरोध इसलिए नहीं होता है क्योंकि इनसे पुरुष के अहंकार या उसकी श्रेष्ठता को चुनौती नहीं दी जाती है।

दरअसल हम समाज में पाखंड पालने के आदी हो गए हैं। पुरुषों के लिए वेश्यालय तो बन सकते हैं या ऐसी ही अन्य तरह की व्यवस्था हो सकती हैं, लेकिन हम महिलाओं को वेश्यावृत्त‍ि करने का अधिकार भी नहीं देना चाहते हैं? सामा‍ज‍िक और नैतिक मूल्यों की बराबरी का देश में यह आलम है कि पुरुष को तो किसी भी आयु में किसी भी महिला से पत्नी के अतिरिक्त यौन संबंध बनाने की छूट मिलती है और वह चाहे तो वेश्यालय भी जा सकता है, लेकिन जब बात औरतों की आती है तो हमारे सारे संस्कार, धार्मिक विश्वास और संस्कृति‍ चीखने-चिल्लाने लगती है कि महिलाओं को ये अधिकार नहीं मिलने चाहिए? हम यह मानकर चलते हैं कि केवल महिलाओं की नै‍तिकता रक्षा करना जरूरी है पुरुष की नैतिक रक्षा करने की जरूरत ही नहीं है।

आज के समय में महिलाओं ने भी अपनी क्षमताएँ जाहिर की हैं और सिद्ध किया है कि वह किसी भी दृष्टि से पुरुषों से कम नहीं है, लेकिन वे आज भी वे कदम-कदम पर प्रताड़ित होती हैं, अपमानित होती हैं और यदि हम नैतिकता की बात करते हैं तो घरों के अंदर भी लड़कियाँ सुरक्षित नहीं हैं। लड़कियों, महिलाओं के परिजन, संबंधी घरों में ही उनसे बलात्कार तक कर डालते हैं तब उन्हें किसी नैतिकता या सामाजिक मूल्यों की याद नहीं रहती है, लेकिन अगर कोई औरत कह दे कि वह विवाह पूर्व यौन संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं देखती है तो इस पर बवाल मच जाता है। हमें लगने लगता है कि एक औरत की ऐसी बातों से हमारी पूरी सभ्यता और संस्कृति नष्ट हो जाएगी। मर्यादाओं का पतन होगा और नैतिक मूल्य रसातल में समा जाएँगे।

इसका कारण यह है कि हम यह मानने को तैयार ही नहीं है कि लड़कियों और महिलाओं में आज किसी तरह की कमी नहीं है। वे भी सही समय पर सही ‍‍‍न‍िर्णय ले सकती हैं और उनमें भी अपना अच्छा भला पहचानने की क्षमता है। इसके बावजूद 3.3 फीसदी महिलाएँ अपने पेशेवर करियर के शीर्ष पर पहुँच ही जाती हैं। 17.8 प्रतिशत महिलाएँ मध्यम दर्जे तक सीमित रहती हैं और 78.9 फीसदी महिलाएँ सुविधाओं के अभाव में निम्न स्तर का ही जीवन गुजारती हैं।

आज भी पुरुषों को अधिकार जहाँ अपने आप मिल जाते हैं वहीं महिलाओं को अपने हकों के लिए लड़ना पड़ना है। कभी समाज, कभी धार्मिक मान्यताओं, कभी सभ्यता-संस्कृति और कभी अन्यान्य कारणों से महिलाओं को पुरुषों से नीचे रखने की संस्थाबद्ध तरीके से कोशिश की जाती रही है। महिला अगर कम कपड़े पहने तो अश्लीलता और पुरुष अगर नंगा घूमे तो फैशन। लड़कों की चार-चार गर्लफ्रेंड हों तो गर्व करने लायक बात होती है, लेकिन लड़की का एक भी बॉयफ्रेंड होना शर्म की बात है।

यदि गे समाज कानूनी मान्यता के लिए लड़ रहा है, तो ऐसे में लिव इन रिलेशन में क्या बुराई है? हमें यह बात भी देखना चाहिए कि अगर पश्चिमी देशों के समाजों में इस तरह की छूट है तो वहाँ परिवार का भी पूरी तरह से अस्तित्व समाप्त नहीं हो गया है। इस बात को समझा जाना चाहिए कि जिस समाज और काल में जिस तरह के विचारों की उपयोगिता रहेगी उसे आप नकार नहीं सकते हैं भले ही आप उसे पसंद करते हों या नहीं।

भारतीय समाज का एक विरोधाभास यह भी है कि वह औरत को देवी का दर्जा देता है लेकिन जब उन्हें अधिकार और सुविधाएँ देने की बात आती है तो हमें लगता है कि वे पुरुषों से आगे निकल जाएँगी और वह सब करने लगेंगी जोकि पुरुष करते रहे हैं। पुरुषवादी मानसिकता की यही समस्या है और इसलिए कोर्ट को भी ऐसे निर्णय देकर हमें बताना पड़ता है कि पुरुष और महिला बराबरी की हद तक स्वतंत्र हैं।

जो कोई बात महिलाओं के लिए गलत है वह जरूरी नहीं है कि वह पुरुष के लिए ठीक हो लेकिन हम तो हम मान बैठे हैं कि महिलाओं को संभालना या काबू में रखना पुरुष का विशेषाधिकार है और उसे यह अधिकार किसी भी सूरत में महिलाओं को नहीं सौंपना है क्योंकि महिलाओं में समाज, देश, काल, सभ्यता, संस्कति और नैतिकता की समझ कम होती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi