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होली के रंग में रंगी ब्लॉग दुनिया

ब्लॉग-चर्चा में कुछ रंग-बिरंगे ब्लॉग की बातें

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हमें फॉलो करें होली के रंग

रवींद्र व्यास

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चारों और होली का उल्लास अब भी बाकी है। खुमारी उतरी नहीं है। न रंग की और न ही भंग की। होली का रंग ही ऐसा होता है। गहरे उतरता है, गहरे चढ़ता है। लेकिन आसानी से छूटता नहीं है। जाहिर है उमंग और तरंग पर सवार होकर यह त्योहार हर रंग में रंग देता है। कहने की जरूरत नहीं कि ब्लॉग दुनिया में इसके रंग में रंगी हुई थी। लिहाजा इस बार ब्लॉग चर्चा में कुछ ब्लॉग पर बिखरें होली के रंगों की छटा देखते हैं, महसूसते हैं।

यहाँ रंग है, भंग है, कार्टून है, ग्रीटिंग हैं और हैं वाल पेपर्स। होली पर प्रेम कविताएँ हैं, परंपराएँ हैं। नशे की लत से विकृत होती परंपराएँ हैं तो उन पर टिप्पणियाँ भी हैं। जरा एक नजर मारिए। पृथ्वी अपने ब्लॉग कांकड़ पर होली के मौके पर बहुत ही खूबसूरत बात लिखती हैं। वे कहती हैं कि जीवन में रंगों का कोई विकल्‍प नहीं है। शुक्र है! यह बहुत बड़ी बात है। रंगों का कोई विकल्‍प नहीं होता।

रंग के साथ भंग (भांग) हो तो दुनिया नशीली हो जाती है। नशा रंग का होता है या भांग का, पता नहीं लेकिन यह सच है कि रंग अपने आप में बड़ा नशा है। होली पर धमाल गाने वाले हर किसी ने भंग नहीं पी होती। वे तो रंग रसिया होते हैं। रंगों के रसिया, झूमते हुए। उनके नशे की मादकता के आगे क्‍या भंग और क्‍या और. ..

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कहने की जरूरत नहीं कि रंग का ही यह नशा है कि लोग पानी की तमाम किल्लतों के बीच होली खेलने से अपने को रोक नहीं पाते। हर कहीं गुलाल उड़ती है, रंग उड़ता है और आपको भीतर तक रंग जाता है। यही कारण है कि लोग इस रंग में अपनों को नहीं भूलते। अपना पहर के ब्लॉगर होली पर अपनी माँ को याद करते हुए कहते हैं कि-फिर बैठक होली के दिन भी माँ ढेर सारे काम हम पर थोप देती।

साफ-सफाई..... रंग घोलना..... बर्तन साफ करना..... मेहमानों के लिए बनने वाली सब्जी साफ करना आदि-आदि। ......... इन सब कामों में मेरी दिलचस्पी कम ही हुआ करती थी। जाहिर है फिर माँ से बहस होती.... और कभी-कभी माँ की गाली भी खानी पड़ती।...... लेकिन अब जब ये सब देखने को नहीं मिलता.... तो सोचता हूँ कि वो दिन ही अच्छे थे। माँ की गाली में भी एक रंग था। ..... ये रंग काफी देर तक मुझ पर असर करता था।..... अब मैं बड़ा हो गया हूँ..... माँ मुझे नहीं डाँटती।..... पता नहीं वो क्यों बदल गई है?.... अब वो गाली भी नहीं देती। ... शायद सोचती होगी कि मैं शहर में रहता हूँ ..... और ज्यादा सभ्य हूँ

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होली के तमाम रंगों में यहाँ आप खास इलाकों की होली परंपरा्ओं को जान-समझ सकते हैं। लेकिन होली पर यही नहीं है। बहुत कुछ है। विविधता भरा है। खूबसूरत है। कला जगत ब्लॉग पर सुंदर होली के ग्रीटिंग है, हे प्रभु तेरा ये पंथ ब्लॉग पर कविताएँ पढ़ी जा सकती हैं। इसमें मय फोटो के कवियों-कवयित्रियों की कविताएँ सुंदर लेआउट के साथ लगाई गई हैं। शंकर फुलारा अपने ब्लॉग टेंशन प्वाइंट में कविता के जरिये होली के बिगड़ते दृश्य पर अंगुली रखते हैं और कहते हैं- "सखी री होरी कैसे खेलूँ, मैं, शराबी, साँवरिया के संग"।

कैसी बदबू आवे मुँह से, कैसे लगाऊँ प्यार से अंग। इसी तरह डॉ. भावना अपने ब्लॉग दिल के दरमियान में कविता देती हैं और होली की शुभकामनाएँ। वे अपनी भावनाएँ कुछ इस तरह व्यक्त करती हैं कि - आओ मनाएँ होली... रंग चुरा लें... तितलियों से... और मधुर सुर चिड़ियों से... फूलों पर छिटकती किरणों से... लेकर चमक, दूब पर फैली ओस कण को... भर मुट्ठी में, वादियों में बिखरे रंगों को... प्रीत संग घोल आज रंग दें...

जोगेश्वर गर्ग अपने ब्लॉग पर यह मजेदार कविता पोस्ट करते हैं-

सूरज लाल चाँद ले पीला आए मेरे द्वार।
बोले आओ यार मनाएँ होली का त्योहार।
मैंने बोला यह आमंत्रण मुझे नहीं स्वीकार।
जाओ पहले लेकर आओ संग में मेरा यार

कविता के रंगों के साथ ही अन्य रंग भी मौजूद हैं। जैसे ग्रीटिंग और वाल पेपर्स। अंकुल गुप्ता अपने ब्लॉग अंकुर थॉट्स पर होली के वॉल पेपर लगाते हैं। इन्हें देखना होली के रंग को महसूस करना ही है। खूबसूरत रंगों-रूपाकारों के ये वाल पेपर्स मन मोह लेते हैं। इनके शुभकामना संदेश भी मन को छू जाते हैं। लेकिन होली हो और व्यंग्य न हो यह कैसे हो सकता है। लिहाजा अगड़म-बगड़म ब्लॉग पर आलोक पुराणिक ने मजेदार होली राइट अप लिखा है।

वे लिखते हैं- एक सीनियर गोपी कह रही है-पासवर्ड लेकर आओ। पहले लोगिन पासवर्ड और फिर टांजेक्शन पासवर्ड डालना पड़ेगा, तब हमारे होली खेलने का फंक्शन शुरू होगा। गोपियाँ अब पासवर्ड प्रोटेक्टेड हैं, जिसका मन करे, वो होली नहीं खेल सकता।

लेकिन इन वाल पेपर्स और व्यंग्य बाणों के साथ ही मस्ती के साथ ज्ञान का रंग भी देखने को मिलता है। शब्द वाणी के अजित वडनेरकर होली के बहाने मस्त, मस्ताना शब्द की सैर भी करा देते हैं। मस्ती की मस्ती और ज्ञान का ज्ञान। लिहाजा वे लिखते हैं कि हिन्दी में मस्त शब्द फारसी से आया है और यह इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है। फारसी में मस्तम, मस्तान, मस्ताना और मस्ती जैसे रूप मिलते हैं जो सभी उर्दू-हिन्दी में भी मौजूद हैं।

फारसी का मस्त शब्द बरास्ता अवेस्ता संस्कृत के मत्त से रिश्ता रखता है जिसका अर्थ होता है आनंदातिरेक, नशे में चूर आदि। इस नशे की व्याख्या यहां नहीं है कि नशा मादक पदार्थ का है अथवा आध्यात्मिक है मगर यह साफ है कि मत्त वही व्यक्ति है जो अपने आपे में नहीं है, जो दुनिया के सामान्य क्रिया-कलापों से अनभिज्ञ है। जो खुद में गाफिल है।

और कार्टून भी आपको हँसाने के लिए मौजूद हैं। कोबला अपने ब्लॉग पर होली को लेकर कुछ दिलचस्प राजनीतिक कार्टून पोस्ट करते हैं। तो होली के रंगों से खेलते थक गए हों तो यहाँ आकर फिर से तरोताजा हो सकते हैं और होली के दूसरे अन्य रंग भी महसूस कर सकते हैं। ये रहे कुछ पते-

http://kankad.wordpress.com/

http://apana-pahar.blogspot.com/

http://tensionpoint.blogspot.com

http://kobrapost.blogspot.com

http://dilkedarmiyan.blogspot.com

http://jogeshwargarg.blogspot.com

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