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रक्तदान करें और स्वस्थ रहें...

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रक्तदान महादान- रक्तदान से बड़ा कोई दान नहीं होता है। आपके खून की चंद बूंदों से किसी घर का चिराग बुझने से बच सकता है। परोपकार करना वीरों का गहना है। 


 

मनुष्य जीवन भगवान का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ उपहार है। यह भी एक शाश्वत सत्य है कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। मनुष्य शरीर नश्वर व क्षणभंगुर है। इस नश्वर मानव शरीर से दिया हुआ रक्त अगर किसी व्यक्ति की अंधेरी जिंदगी में उजियारा लेकर आता है तो इससे बड़ा पुण्य और परोपकार की बात क्या हो सकती है?
 
महर्षि वेदव्यासजी ने 18 पुराणों में 2 ही वचन कहे हैं : प्रथम- परोपकार से बढ़कर पुण्य नहीं और द्वितीय- दूसरों को दुख पहुंचाने से बढ़कर पाप नहीं है।
 
महर्षि दधीचि ने भगवान इन्द्र के मांगने पर अपने शरीर की हड्डियां तक दान कर दी थीं। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र का निर्माण हुआ और वृत्रासुर मारा गया।
 
राजा शिवि कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर का मांस तक काटकर तराजू में रख देते हैं तो भगवान श्रीराम के पूर्वज राजा दिलीप गाय की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान करने को तत्पर हो जाते हैं।
 
राजा मेघरथ ने अपने शरीर का मांस-दान करके बाज के हाथों कबूतर की प्राण रक्षा की तो दानवीर कर्ण अपने पिता भगवान सूर्य द्वारा इन्द्र की मंशा का रहस्य जानते हुए भी अपने शरीर पर चिपके कवच कुंडल तक उतारकर दान कर देता है।
 
वीर बर्बरीक कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में भगवान श्रीकृष्ण को अपने शीश का दान देता है। भगवान श्रीकृष्ण ने वीर बर्बरीक को वरदान दिया कि तुम 'श्री श्याम' नाम से प्रसिद्ध होगे। 
 
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जब हमारे पूर्वजों महर्षि दधीचि, राजा मेघरथ, वीर बर्बरीक, राजा दिलीप, राजा शिवि, दानवीर कर्ण की परोपकारिता और दानवीरता के कारण आज भी उनका नाम बड़े गर्व के साथ लिया जाता है, तब आइए आप और हम भी अपने पूर्वजों की परोपकारिता और दानवीरता के मार्ग पर बढ़ते हुए रक्तदान करें ताकि आपका और हमारा खून किसी की रगों/नसों में जिंदगी बनकर दौड़े।
 
यह सार्वभौमिक सत्य है कि चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में तमाम तरक्की के बावजूद रक्त को किसी लैब, फैक्टरी या संस्थान में तैयार नहीं किया जा सकता है और न ही मनुष्य को जानवर का खून दिया जा सकता है। रक्तदान करने से लोग कुछ हिचकते हैं, जो गलत है।
 
प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति को अवश्य रक्तदान करना चाहिए। रक्तदान करना एक शुभ कार्य है। सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोविन्दसिंहजी ने कहा था कि 'देहि शिवा वर मोहि इहै शुभ करमन ते कबहूं न टरूं' अर्थात् 'हे भगवान शिव, मुझे यही वरदान दीजिए कि मैं शुभ कार्यों को करने से कभी पीछे न हटूं, उन्हें कभी न टालूं।'  
 
मानव सेवा ही ईश्वर की सच्ची पूजा है। किसी ने ठीक ही कहा है- 'जननी जने तो भक्तजन या दाता या शूर/ नहीं तो जननी बांझ रहे, काहे व्यर्थ गंवाए नूर' अर्थात 'हे जननी या तो भक्त को जन्म दे या फिर दानवीर या शूरवीर संतान को जन्म देना/ अगर संतान में इनमें से कोई भी गुण नहीं हो तो हे जननी, तुम बांझ रहना, किसी गुणहीन संतान को जन्म देकर अपने सौंदर्य को व्यर्थ नष्ट नहीं करना।'
 
रक्तदान करने के लाभ-
 
'जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन' ने अपने शोध में पाया कि रक्तदान करते रहने से हार्टअटैक का खतरा 80 प्रतिशत कम हो जाता है। नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र में बताया गया है कि शरीर में आयरन का उच्च स्तर कैंसर को जन्म देता है।
 
रक्तदान करने से आयरन का लेवल कम हो जाता है और कैंसर का खतरा 95 प्रतिशत कम हो जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी की कुंडली में मंगल दोष है या तरक्की में यह आड़े आ रहा है तो आप रक्तदान कर मंगल दोष से शांति/ मुक्ति पा सकते हैं। 
 
कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जिसकी आयु 18 से 60 वर्ष है, 45 किलो से अधिक वजन है और हीमोग्लोबिन 12.5 से ज्यादा है, तो रक्तदान कर सकता है। 
 
आइए अगर-मगर, किंतु-परंतु कहना छोड़िए और रक्तदान कीजिए, जीवनरक्षक बनिए। 
 
'रक्तदान से बढ़कर, कोई बड़ा न दान। जीवनदाता बनकर, बन जाता भगवान।।' 
 
लेखक : युद्धवीर सिंह लांबा भारतीय,
हरियाणा इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली-रोहतक रोड (एनएच-10) आसोदा, तहसील बहादुरगढ़, जिला झज्जर (हरियाणा) में प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं।

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