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ब्रिटिश संसद में कुछ 'लॉर्ड्‍स स्प्रिचुअल' हिंदू भी होने चाहिए

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ब्रिटेन की संसद के उच्च सदन को हॉउस ऑफ लॉर्ड्‍स कहा जाता है। इसमें निर्वाचित या मनोनीत होने वाले सांसद एक जानी मानी हस्ती होते हैं, जिन्हें अपनी बात संसद में रखने की पात्रता होती है। इसी हॉउस ऑफ लार्ड्‍स में धर्माधिकारियों या धर्म से जुड़े लोगों को 'लॉर्ड स्प्रिचुअल' के तौर पर चुना जाता है। फिलहाल हॉउस ऑफ लॉर्ड्‍स जैसे सदन के 26 पादरी ऐसे सदस्य हैं जोकि चर्च ऑफ इंग्लैंड से सम्बद्ध हैं। इन लोगों में ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मस्थल 'ऑर्कविशप ऑफ कैंटरबरी एंड यॉर्क', लंदन डरहम, विंचेस्टर के पादरी भी शामिल हैं।  
इन लोगों का प्रमुख कार्य संसद या सदन की दैनिक बैठक से पहले प्रार्थनाएं करना होता है। बाद में, ये उच्च सदन के कामकाज और इसके जीवन में एक सक्रिय और पूरी भूमिका निभाते हैं। अब अमेरिका के नेवादा के प्रसिद्ध हिंदू राजनीतिज्ञ राजन जेद ने मांग की है कि ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ लार्ड्‍स मे कुछ हिंदू धार्मिक नेता भी बतौर सांसद शामिल होना चाहिए। 
 
उनका कहना है कि ब्रिटेन के बदलते जनसांख्य‍िकीय परिदृश्य में संसद में समूचे ब्रिटिश समाज का प्रतिबिम्ब होना चाहिए और चूंकि ब्रिटेन में हिंदुओं की संख्या भी बहुत अधिक मात्रा में है। इसलिए ब्रिटिश संसद में हिंदू 'लॉर्ड्‍स स्प्रिचुअल' भी होने चाहिए।  
 
विदित हो कि राजन जेद, हिंदुइज्म के सार्वभौमिक समाज (यूनिवर्सल सोसायटी ऑफ हिंदूइज्म) के अध्यक्ष हैं। उन्होंने सात दिसंबर को जारी की गई रिपोर्ट ऑफ द कमीशन ऑन रिलिजन एंड बिलीफ इन ब्रिटिश पब्लिक लाइफ का हवाला देते हुए कहा कि एक आधुनिक समाज का बहुलवादी चरित्र हाउस ऑफ लॉर्ड्‍स जैसे राष्ट्रीय मंच पर भी दिखाई देना चाहिए। 
 
उन्होंने यह भी कहा कि हिंदुओं के धार्मिक नेताओं को ब्रिटेन सरकार के सभी बड़े समारोहों जैसे राज्यारोहणों में भी भूमिका निभानी चाहिए। हिंदुओं ने ब्रिटेन को एक देश और समाज को बनाने में बहुत अधिक योगदान किया है इसलिए राष्ट्रीय संस्थाओं और समारोहों में उन्हें समुचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। 
 
उन्होंने कहा कि ब्रिटिश समाज को भी विभिन्नताओं के साथ रहना और समझना सीखना चाहिए। जेड का यह भी कहना है कि ब्रिटेन के स्कूलों में सामूहिक पूजा, प्रार्थनाओं को और अधिक समावेशी और चरित्र में बहुलवादी होना चाहिए जोकि सभी धर्मों और आस्थाओं और नास्तिकों का भी प्रतिनिधित्व करे। 
 
उन्होंने मांग की कि यूनिवर्सिटीज, कॉलेजों, जेलों और अस्पतालों आदि में हिंदू पुजारियों, धर्माधिकारियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। इतना ही नहीं, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और हवाई अड्‍डों पर भी हिंदू पूजा स्थल होने चाहिए।
 
राजन जेद ने इंगित किया कि ब्रिटेन में धर्मों के बीच परस्पर विश्वास बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा किए जाने की सख्‍त जरूरत है और इसमें भी हिंदुओं की महत्वपूर्ण भूमिका होना चाहिए। इससे पहले सितम्बर, 2013 में पूर्व हाई कोर्ट जज बैरोनेस एलिजाबेथ बटलर-स्लॉस की अध्यक्षता में रिपोर्ट 'लिविंग विद डिफरन्स : कम्युनिटी, डाइवर्सिटी एंड द कॉमन गुड' कमीशन की रिपोर्ट जारी की गई थी। 
 
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि - ब्रिटिश होने का क्या अर्थ है यह तय और अंतिम नहीं है। अधिक संख्या में धर्मों और आस्थाओं की जानकारी आवश्यक है। समूचे ब्रिटेन के अधिकतर स्कूलों में इस बात की जरूरत है कि धार्मिक शिक्षा दी जाए और यह ईसाइयत होना चाहिए। लेकिन मीडिया आदि में अन्य धर्मों जैसे हिंदुइज्म, सिख और बौद्ध धर्म की बहुत कम चर्चा होती है। 
 
ब्रिटेन के धर्म और इसकी आस्था में लोगों को अलग-थलग करने, हाशिए पर डालने, प्रताड़ित करने और नास्तिक अल्पसंख्यकों का धार्मिक आधार पर दमन भी शामिल रहा है। जो लोग इन बातों से प्रभावित हुए हैं, उनमें कैथोलिक, यहूदी, रॉमा जिप्सी और मूर्तिपूजा करने वाले भी शामिल रहे हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि हाल ही में बहाई, बौद्ध, हिंदुओं, जैनों, मुस्लिमों, रस्ताफारियंस, सिख और पारसी भी शामिल रहे हैं। 

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