दीपावली पर्व कई मायनों में असाधारण होता है, क्योंकि यह एक ऐसा दिव्य और अनोखा दिन है जिसके साथ अनेक आध्यात्मिक आस्थाएं, ऐतिहासिक घटनाएं एवं सामाजिक परंपराएं जुड़ी हैं। उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण परंपरा है जिसमें व्यापारी वर्ग विगत वर्ष का लेखा-जोखा करते हैं और आने वाले वर्ष के लिए नए बही-खाते खोलते हैं।
चूंकि कुछ दशकों पूर्व तक व्यवसाय की भौगोलिक सीमाएं सीमित होती थीं इसलिए व्यापारी अपने स्वयं के व्यापार के बारे में ही सोचता था किंतु आज हर बड़े-छोटे व्यापार के तार देश एवं विश्व की व्यापक अर्थव्यवस्था से जुड़ चुके है अत: आने वाले वर्ष के बारे में नक्षत्रों से जानने के अतिरिक्त आवश्यक है कि व्यापारी तथा उद्योगपति आगामी वर्ष में देश तथा विश्व की अर्थव्यवस्था का आकलन करें ताकि अपने व्यापार व उद्योग को यथोचित दिशा दे सकें।
इसमें कोई संदेह नहीं कि विश्व की अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान तेजी से बढ़ रहा है बावजूद इसके कि वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्तमान में नाजुक दौर से गुजर रही है। हमारे आकलन के अनुसार वैश्विक अर्थव्यवस्था में कमजोरी के मुख्य कारण विश्व में तेजी से हो रही राजनीतिक उथल-पुथल, राष्ट्रों के बीच बनते-बिगड़ते समीकरण, इंग्लैंड का ब्रेक्झिट, विश्वव्यापी आतंकी घटनाएं, अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव, चीन की धीमी पड़ती चाल आदि हैं। इन वैश्विक परिस्थितियों में आने वाले वर्ष में भारत की भूमिका क्या और कैसी होगी? यह एक विचारणीय प्रश्न है।
भारत इस समय विश्व की 7वें नंबर की अर्थव्यवस्था है। अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, इंग्लैंड और फ्रांस, भारत से आगे हैं। भारत इस सीढ़ी पर आगे बढ़ने के प्रयासों में लगा है और इसे ऊपर ले जाने में भारत के हर कृषक, श्रमिक, उद्योगपति, व्यवसायी और सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है।
भारत की आर्थिक प्रगति की गति जो आज विश्व में सबसे तेज है, यदि इसी तरह से आगे बढ़ी तो अगले 1 या 2 वर्षों में भारत, फ्रांस और इंग्लैंड को पीछे छोड़ देगा और 2020 तक जर्मनी को भी। इस तरह वह चौथे पायदान पर आ जाएगा। जापान तक पहुंचने में समय लगेगा। चीन और अमेरिका तो अभी दूर की कौड़ी हैं।
अब देखें विश्व के उन राष्ट्रों में क्या हो रहा है, जो हमसे आगे हैं या साथ हैं। वर्तमान में अमेरिकी अर्थव्यवस्था कछुए की चाल से चल रही है, क्योंकि वहां निवेश नहीं हो रहा है। बीच- बीच में उतार-चढ़ाव आते हैं। यूरोप में उत्पादों की बढ़ती लागतें एशियाई उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रही हैं। जर्मनी के उद्योग कोरिया और चीन के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे हैं। तेल के गिरे हुए भावों के कारण खाड़ी के अधिकांश देश, लेटिन अमेरिकी देश विशेषकर ब्राजील तथा रूस आदि राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक आईसीयू में हैं। मध्य-पूर्व आतंक के साये में है। ईरान पर प्रतिबंध हटने के बाद उसकी अर्थव्यवस्था को उठने में समय लग रहा है। चीन की निर्यात पर आधारित अर्थव्यवस्था को झटका लग चुका है। ब्रिटेन ब्रेक्झिट की ऊहापोह में फंसा हुआ है। जापान भी कोरिया, ताईवान और सिंगापुर जैसे छोटे राष्ट्रों के उत्कृष्ट एवं सस्ते उत्पादों से परेशान है।
हमें, अपने से नीचे पायदान वाले देशों की ओर देखने का तो कोई लाभ नहीं, विशेषकर पाकिस्तान जैसे देश को। यह तो एक ऐसे राष्ट्र की मिसाल है जिसकी अर्थव्यवस्था में कोई आधार है ही नहीं। जहां से भीख लेता है उसी की थाली में छेद करने से नहीं चूकता। यहां इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड अपनी सारी उम्मीदें छोड़ चुका है और अपना बोरिया-बिस्तर बांधने की तैयारी में है। किंतु पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर चर्चा फिर कभी।
जाहिर है कि वर्तमान समय, भारत के लिए सुनहरा अवसर है अपनी अर्थव्यवस्था में पर लगाने का। सरकार द्वारा कालेधन पर लगाम कसे जाने से सोने की खरीदी में गिरावट आएगी। ब्याज की दरें कम होने से निवेशक स्टॉक मार्केट की ओर रुख करेंगे। उम्मीद से अच्छी बारिश होने से फसल अच्छी आने की संभावना है, जो बाजार में पैसों का प्रवाह करेगी। इस तरह देश की वर्तमान घरेलू अर्थव्यवस्था अभी किसी भी दबाव में नहीं दिखती।
भारत की यही आर्थिक मजबूती एवं राजनीतिक स्थिरता निवेशकों को आकर्षित तो करेगी किंतु मोदी सरकार के प्रयत्नों के बावजूद जमीनी स्तर पर उद्योगों के लिए बुनियादी सुविधाओं का ढांचा खड़ा करने में अभी बहुत काम शेष है। भारत को इस समय बाह्य तथा आंतरिक निवेशकों की सख्त जरूरत है, क्योंकि विकास के दौड़ते इंजन को ईंधन यही प्रदान कर सकता है।
इन परिस्थितियों से तो विश्वास है कि यह वर्ष कृषकों, व्यापारियों एवं उद्योगों के लिए बेहतर होगा। मेहनत का परिणाम मिलेगा। श्रमिकों में उत्साह रहेगा। भारतवर्ष पर लक्ष्मीजी की कृपा रहेगी।
यह विश्वास सत्य हो, इसी कामना के साथ इस महापर्व की अनेकानेक शुभकामनाएं...!