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हालात कहीं और गम्भीर तो नही हो रहे हैं?

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श्रवण गर्ग

, बुधवार, 1 अप्रैल 2020 (11:34 IST)
कोई भी बंदा भविष्यवाणी करने की जोखिम उठाने को तैयार नहीं है कि जो कुछ भी भयानक अभी चल रहा है उसका कब और कैसे अंत होगा? और यह भी कि समाप्ति के बाद पैदा होने वाले उस संकट से दुनिया कैसे निपटेगी जो और भी ज़्यादा मानवीय कष्टों से भरा होसकता है?

स्वीकार करना होगा कि पश्चिमी देशों में जिन मुद्दों को लेकर बहस तेज़ी से चल रही है उन्हें हम छूने से भी क़तरा रहे हैं। पता नहीं हम कब तक ऐसा कर पाएंगे क्योंकि उनके मुक़ाबले हमारे यहां तो हालात और ज़्यादा मुश्किलों से भरे हैं।

पश्चिम में बहस इस बात को लेकर चल रही है कि प्राथमिकता किसे दी जाए—तेज़ी से बर्बाद होती अर्थव्यवस्था बचाने को या फिर संसाधानों के अभाव के साथ लोगों को बचाने को? अमेरिका में जो लोग उद्योग-व्यापार के शिखरों पर हैं वे आरोप लगा रहे हैं कि सरकार अर्थव्यवस्था को जो नुक़सान पहुंचा रही है उसकी भरपाई नहीं हो सकेगी।

अगर समूचा तंत्र लोगों को बचाने में ही झोंक दें तो भी पर्याप्त चिकित्सा संसाधन और दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। और यह भी कि सभी लोगों को बचाए जाने तक तो आर्थिक स्थिति पूरी तरह से चौपट हो जाएगी। लाखों-करोड़ों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे। आज भी स्थिति यही है कि जो लोग चिकित्सीय जिम्मेदारियां निभाने, आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन और आपूर्ति आदि के कामों में लगे हैं रोज़गार केवल उन्हीं के पास बचा है। अतः आर्थिक गतिविधियां तुरंत चालू हों।

महामारी से प्रभावित लोगों को बचाने के मामले में भी बहस इसी बात को लेकर है कि प्राथमिकता किसे दी जाए? उन बूढ़े बीमारों को जो अब किसी भी तरह का उत्पादक काम करने की उम्र पूरी कर चुके हैं और बचा लिए गए तो भी अर्थव्यवस्था पर भार बनकर ही रहेंगे, या फिर उन लोगों को जिनके पास अभी उम्र है और उनका जीवित रहना देश को फिर से आर्थिक पैरों पर खड़ा करने के लिए आवश्यक है?
 
यह बहस सबसे पहले इटली में डॉक्टरों की ओर से शुरू हुई थी, जहां कि मरने वालों की संख्या अब दुनिया में सबसे ज़्यादा यानी कि बारह हज़ार से ज्यादा पहुंच गई है। इनमें भी अधिकांश बूढ़े बताए जाते हैं।
 
 भारतीय आस्थाओं, मान्यताओं और चलन में पश्चिम की तरह के सोच के लिए चाहे अभी स्थान नहीं हो पर जो लोग फ़ैसलों की जिम्मदारियों से बंधे हैं उन्हें भी कुछ तो तय करना ही पड़ेगा। वह यह कि क्या जनता के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियां भी ‘लॉकडाउन’ में रहें? और कि अगर 1826 लोगों के बीच अस्पताल का केवल एक पलंग उपलब्ध हो तो किसी बूढ़े व्यक्ति को पहले मिले कि जवान को?

हमने नए अस्पताल बनाने का काम तेज़ी से शुरू कर दिया है और वेंटिलेटर ख़रीदने के ऑर्डर भी जारी कर दिए हैं। पर क्या तब तक सब कुछ रुका रह सकता है? हां, वे रेलगाड़ियां अवश्य थमी रह सकती हैं जिनकी कि बोगियों को 'आयसोलेशन वॉर्ड्स’ में बदला जा रहा है। हालात कहीं और गंभीर तो नहीं हो रहे हैं? (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में संपादक और समूह संपादक रह चुके हैं।

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