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एक अजब राष्ट्र की गजब कहानी

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शरद सिंगी

पश्चिमी एशिया और पूर्वी यूरोप रूस को जोड़ता एक खूबसूरत देश है जॉर्जिया, जो रूस के दक्षिण में स्थित है। तुर्की की उत्तरी सीमा से लगा है और पश्चिम में काला सागर (ब्लैक सी ) है। व्यवसाय के सिलसिले में पिछले सप्ताह  वहाँ जाना हुआ। जॉर्जिया की राजधानी त्बिलिसी का एयरपोर्ट बहुत छोटा था किन्तु सैलानियों से भरा दिखा। व्यवस्थाएँ छोटी किन्तु दक्ष होने से छोटे होने का अहसास नहीं होने देती। त्बिलिसी सुरम्य पहाड़ियों के बीच एक  सुन्दर नगर है। नगर को विभाजित करती मतकवरी नदी पूरे नगर को रमणीक बनाती है। सोवियत युग की भव्य ऐतिहासिक इमारतें नगर को लालित्य प्रदान करती हैं।  
यहाँ का मध्यम तापमान गर्मियों में उष्ण देशों से सैलानियों को आकर्षित करता है। त्बिलिसी से काले सागर (ब्लैक सी) तक का सफर काकेशस पर्वतमाला की  घने जंगलों वाली सुरम्य घाटियों में सर्पाकार सड़कों से गुजरते हुए लगभग पांच घंटे में पूरा होता है। इसी मार्ग पर एक नगर 'गोरी' स्थित है जहाँ सोवियत संघ के महानायक और क्रूर  तानाशाह जोसेफ स्टालिन का जन्म हुआ था। महानायक इसलिए कि इस तानाशाह ने  कृषि आधारित रूस को एक सैन्य और औद्योगिक महाशक्ति  में परिवर्तित कर दिया था। रुसी शब्द स्टालिन का अर्थ 'लौह पुरुष' होता है। स्टालिन का नाम सुनते ही इस राष्ट्र के इतिहास और राजनैतिक व्यवस्था के बारे में जानने की जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। 
 
20 वर्षों से जॉर्जिया में बसे मेरे भारतीय मित्र श्री अरविन्द शर्मा बताते हैं कि  जिस सुशासित राष्ट्र को आप देख रहे हैं, वह पंद्रह वर्षों पूर्व एक सम्पूर्ण रूप से एक भिन्न राष्ट्र था। सोवियत संघ से अलग होने के बाद  उद्योग चौपट हो गए थे । प्रशासन ठप  हो गया था। सरकार दिवालिया हो चुकी थी। कानून व्यवस्था की स्थिति बुरी तरह बिगड़ गयी थी और पूरे देश में अराजकता फ़ैल गयी थी। यातयात व्यवस्था चरमरा गई। सड़कें बदहाल थी। कर्मचारियों को  वेतन न मिलने से सारा राष्ट्र जैसे कूड़ा घर हो गया था। चारों ओर भ्रष्टाचार और माफिया का अड्डा था। थोड़े से पैसों के लिए मर्डर करना आम बात थी। राष्ट्र अराजकता के काले अंधियारे में डूब गया था। 
 
तभी एक चमत्कार हुआ। सन् 2003 के चुनावों में मात्र 35 वर्षीय एक चमत्कारी युवा नेता मिखाइल साकाशविली का आविर्भाव हुआ और वे राष्ट्रपति बने। उनके आते ही जॉर्जिया के मानो दिन फिर गए। उनकी सरकार के सख्त प्रशासन और सुदृढ़ आर्थिक नीतियों ने रसातल में जा रहे जॉर्जिया को पुनः अपने पैरों पर खड़ा कर दिया।

मात्र दो वर्षों में ही जॉर्जिया को एक अराजक और भ्रष्ट राष्ट्र की श्रेणी से निकालकर अनुशासित राष्ट्र के रूप खड़ा दिया। सम्पूर्ण जॉर्जिया के यतायात का आधुनिकीकरण किया गया। कानून व्यवस्था को सख्त किया तथा दण्ड देने में किसी तरह का भेदभाव नहीं रखा गया और नहीं कोई क्षमा का प्रावधान था। साकाशविली दस वर्षों तक राष्ट्रपति रहे।  
 
राजनैतिक षड्यंत्रों के चलते साकाशविली सन् 2013 के आम चुनाव हारे तो वे यूक्रेन चले गए। इस तरह जॉर्जिया ने एक विश्वसनीय और सम्मानित नेता खो दिया। वर्तमान में  वे यूक्रेन के ओडेसा प्रान्त के गवर्नर हैं और आज यूक्रेन के सर्वाधिक लोकप्रिय  राजनेताओं में से एक हैं। यहां उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं प्रबल हैं। जॉर्जिया की हानि यूक्रेन का लाभ बन गई। जॉर्जिया के अधिकांश लोग उनके प्रशासन की तारीफ करते नहीं थकते और अगले चुनावों में वर्तमान सरकार को बाहर का रास्ता दिखाना चाहते हैं।   
 
इस राष्ट्र के  इतिहास में अँधेरे और उजाले का चक्र दिन और रात की तरह चलता दिखता है। हर  अंधकार के बाद उजियारा और हर उजियारे के बाद अँधेरा। दुर्भाग्य से यह राष्ट्र शताब्दियों तक तीन महाशक्तियों रूस, तुर्की और ईरान के बीच शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा बना रहा। सोवियत संघ, तुर्की और ईरान के बीच पिसते इस राष्ट्र पर  अंततः 19 वीं सदी में सोवियत संघ ने कब्ज़ा कर लिया।

सोवियत संघ के टूटने के बाद सन् 1991 में यह आजाद हुआ।  स्टालिन के नेतृत्व में औद्योगीकरण हुआ किन्तु  सोवियत संघ से टूटने के बाद स्थितियों में रातों रात परिवर्तन हो गया। उद्योग चौपट हो गए। सम्पूर्ण जॉर्जिया में बड़ी बड़ी मिलें और कारखाने खँडहर में बदल चुके हैं। 
 
निरंतर बदलती राजनैतिक व्यवस्था किस तरह किसी राष्ट्र को बना और बिगाड़ सकती है यह देश उसका प्रत्यक्ष  उदाहरण है। दोष जब स्वयं का न होकर बाहरी शक्तियों का हो तो इसे देश के नागरिकों का दुर्भाग्य ही समझा जाना चाहिए। यूक्रेन और  जॉर्जिया मिलकर एक युति बनाते हैं रूस के विरुद्ध। रूस की समस्या है कि चूँकि ये देश रूस की सीमा पर हैं अतः वह उन्हें अमेरिका के हाथों में नहीं देखना चाहता वहीँ क्योंकि ये देश रूस की सीमा पर हैं अतः अमेरिका इन्हें सहायता देकर रूस के विरुद्ध नाटो का सदस्य बनाकर अपने हाथों में रखना चाहता है। 
 
महाशक्तियों की इस लड़ाई का परिणाम देश की जनता को भुगतना पड़ रहा  है। यदि ये बंदरबाँट का खेल समाप्त हो तो इस राष्ट्र को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आने में समय नहीं लगेगा क्योंकि उद्योगों  लिए यहाँ सारी आधारभूत सुविधाएँ तैयार खड़ी हैं। बिजली, पानी की कोई किल्लत नहीं है। अनुशासन की कमी नहीं।

कुशल कारीगर सोवियत संघ के समय से प्रशिक्षित हैं। शिक्षा का स्तर उच्च है। देखना अब यह है कि इस वर्ष होने वाले चुनावों में कौनसे दल की सरकार बनती है और वह उसे उजियारे की ओर ले जाने  सफल होती है या इतिहास की उक्त घटनाओं ने अंधियारों में रहना ही इस राष्ट्र की नियति में लिख दिया गया है।     


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