Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

आनंद मंत्रालय की चुनौतियां

हमें फॉलो करें आनंद मंत्रालय की चुनौतियां
-प्रो. बृजकिशोर कुठियाला 
 
राजनीतिज्ञों की सोच में अत्यंत शुभ परिवर्तन का संकेत है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा आनंद मंत्रालय का निर्माण। पहली पंचवर्षीय योजना से लेकर और वर्तमान की बारहवीं योजना तक सभी में भारतीय समाज की भौतिक उन्नति के अनेक सफल एवं कुछ असफल प्रयास हुए हैं। 
आज देश में सड़कें अधिक हैं, अधिक विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय हैं, गगन छूते भवनों की भरमार है। अन्न के उत्पादन में हम केवल आत्मनिर्भर ही नहीं है अपितु हमारे पास निर्यात करने के लिए और सड़कों पर जमा करके नष्ट करने के लिए काफी अनाज है, परंतु इस सब विकास और उन्नति से क्या समाज पहले से अधिक संतुष्ट, प्रसन्न, सुखी और आनंदित है? आंकड़ों का आधार लें या अनुभव का इस प्रश्न का उत्तर तो नहीं में ही है।
 
पूरे विश्व में इस तथ्य को सर्वमान्यता प्राप्त हो रही है कि न्यूनतम भौतिक उन्नति तो अनिवार्य है, परंतु केवल भौतिक उन्नति को मानव समाज के विकास का मानदंड नहीं माना जा सकता। जिनके पास धन-सम्पदा आवश्यकता से कहीं अधिक है, वे भी असंतुष्ट एवं अप्रसन्न हैं। मानसिक रोग, अवसाद व पारस्परिक कलह बहुत अधिक बढ़ चुका है। वर्तमान में सभी खुशी और सुख को ढूंढ रहे हैं। अत्यंत छोटे देश भूटान ने सबसे पहले इसके लिए रास्ता दिखाया था। 
 
पिछली सदी के छठे दशक में भूटान के नरेश ने संयुक्त राष्ट्र संघ में मानव विकास सूचकांक के साथ-साथ ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ की बात की थी। मध्यप्रदेश सरकार ने आनंद मंत्रालय बनाकर एक ऐसा राजनीतिक कदम उठाया है, जो सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से वर्तमान की पूरी मानवता के लिए प्रासंगिक एवं अनिवार्य है।
 
अंग्रेजी का शब्द ‘हैप्पीनेस’ उस स्थिति की व्याख्या नहीं करता है, जिसमें कहा जा सकता हो कि मनुष्य आनंदित है। हिन्दी के शब्दों के माध्यम से आनंदित होने के विकास क्रम को समझा जा सकता है। भौतिक आवश्यकताएं पूर्ण होने पर व्यक्ति का संतुष्ट होना इस विकास मार्ग का पहला कदम है। इसके लिए जनसाधारण को यह समझना-समझाना होगा कि कितनी धन-सम्पदा और संसाधन जीवन के लिए पर्याप्त हैं। 
संतुष्ट होने पर मनुष्य प्रसन्न होने की स्थिति में आ सकता है। वह जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं को सहजता से पूर्ण करके मन से खुशी महसूस करता है। संतुष्टि और प्रसन्नता का वातावरण बनने से मनुष्य को सुखी होने की अनुभूति हो सकती है। इसी विकास की यात्रा का अंतिम पड़ाव है आनंदित होने का। यह वह स्थिति है जब मनुष्य का मन स्थिरप्रज्ञ हो जाता है अर्थात विपरीत या संकट की स्थितियों में भी व्यक्ति सुखी और आनंदित ही अनुभव करता है।
 
किसान के लिए खेती लाभकारी धंधा हो यह तो अत्यंत आवश्यक है, परंतु ये सब होने पर क्या किसान प्रसन्न है या वह और अधिक की कामना करता हुआ पहले से अधिक असंतुष्ट और अप्रसन्न है। समाज की इसी मनःस्थिति को संभालना ही आनंद मंत्रालय की मुख्य चुनौती है। 
 
विभिन्न प्रकार की लाडली योजनाएं समाज में महिलाओं को सुरक्षित एवं समान अधिकार की स्थितियों में ला सकती हैं परंतु यदि ये प्राप्त हो जाता है तो समाज को सम्पूर्ण रूप से सुख की अनुभूति भी अनिवार्य है। समझना यह होगा कि ये मात्र अध्यात्म का विषय नहीं है। यह तो भौतिक विकास के साथ समानांतर मानसिक विकास का विषय है और इसके लिए भी अत्यंत सावधानी एवं विराट दृष्टि रखकर योजनाएं बनाने की आवश्यकता है।
 
वैश्विक स्तर पर योग को स्वीकार्यता व मान-सम्मान मिलना भी इसी दिशा में एक कदम है, परंतु डर यह है कि योग कहीं केवल मात्र शारीरिक व्यायाम बनकर न रह जाए। योगाभ्यास से ध्यान और फिर साधना और समाधि इन सबको भी आमजन में प्रचलित करने से ही व्यापक रूप से आनंद की अनुभूति होगी, परंतु ये भी अपने-आपमें पर्याप्त नहीं है। 
 
इस सृष्टि की मूल प्रकृति में सह-योग सह-अस्तित्व एवं सहभागिता के सिद्धांत हैं। सामाजिक जीवन में जब मनुष्य को यह समझ में आएगा कि वह इस सृष्टि की हर वस्तु से, जीव-निर्जीव से, पूर्ण रूप से जुड़ा हुआ है और केवल जुड़ा हुआ ही नहीं है वह शेष सभी पर निर्भर भी है। 
 
नागार्जुन के इस दर्शन को समझकर यदि समाज जीवन में व्यापक रूप से क्रियान्वित किया जाता है तो न केवल धन-संपदा अधिक से कम की तरफ गतिमान होगी, परंतु सुख और दुःख भी आपस में बंटेंगे और बंटा हुआ सुख कई गुना बढ़ जाता है और बंटा हुआ दुःख कई गुना कम हो जाता है।
 
इसलिए प्रस्तावित आनंद मंत्रालय का कार्य अन्य मंत्रालयों से भिन्न होने वाला है, जिसके लिए पर्याप्त बौद्धिक विमर्श एवं समयबद्ध उद्देश्य निश्चित करने होंगे। इस कार्य में यूरोप के कुछ देश जैसे स्वीडन, स्विटजरलैंड, नार्वे आदि से कुछ सीख ली जा सकती है। इन देशों ने भौतिक उन्नति की अंधी दौड़ में दौड़ना कुछ कम कर दिया है और पूर्ण समाज में सुरक्षा एवं सहयोग अधिक-से-अधिक बने ऐसा प्रयास उनकी योजनाओं में होता है। 
 
भूटान में तो एक विभाग ही ऐसा बनाया है, जो हर छोटी-बड़ी योजना का मूल्यांकन करके इस बात के आधार पर अनुमोदन करता है कि किस योजना से सकल सामाजिक आनंद बढ़ेगा या प्रति-व्यक्ति प्रसन्नता का सूचकांक बढ़ेगा। मध्यप्रदेश राज्य के राजनीतिक कार्यकर्ताओं, प्रबंधकों एवं विद्वानों से आज पूरा भारतीय समाज ही नहीं, वैश्विक समाज नवाचारी कार्य योजनाओं की अपेक्षा कर रहा है। एक नई पहल है इसकी सफलता पूरे मानव समाज के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकती है। 
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति हैं।)


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रात में इस्लामाबाद पर होता है सूअरों का राज