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हिन्दुओ! जरा, ईमानदारी से अपने गिरेबान में झांको...

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- डॉ. मनोहर भंडारी
 
बड़ी अजीब बात है कि फेसबुक के साथी लोग, साहित्य और अन्य क्षेत्रों के कथित सम्मानितों, मीडिया और अन्यों को बार-बार कोसते रहे हैं, मैं भी कुछ हद तक शामिल रहा हूं, परन्तु अपने ही समाज के भाइयों के साथ हुए अत्याचार के खिलाफ क्या हम हाथ से हाथ मिलाकर कभी खड़े हुए हैं? नहीं, कभी नहींI और तो और संघ जैसे हिन्दू रक्षक संगठन को भी सामने आकर या कभी चुपचाप सहयोग करने की कोशिश नहीं की हैI
 
अपने गिरेबान में ईमानदारी से झांकेंगे तो सबसे बड़े गुनाहगार हम स्वयं नजर आएंगेI यदि याकूब जैसे आतंकवादी के जनाजे में लाखों लोग हो सकते हैं तो भी हमारी नींद नहीं खुलती हैI अपने दायित्व का प्रामाणिकता और निष्ठा से निर्वहन कर रहे पुलिस अधिकारी, सैन्य अधिकारी या सैनिक या गोभक्त या विश्व हिन्दू परिषद् या संघ के स्वयं सेवक जो कि समाज के रक्षक के रूप में सेवा करते हुए मार दिए जाते हैं तो हम यह मान लेते हैं कि यह उनका निजी मामला थाI
 
क्या साधु-संत या बड़े हिन्दू नेता उनके घर जाकर सांत्वना नहीं दे सकते हैं? क्या हर ऐसी हत्या या शहादत के बाद, सरकारें न भी दें क्या, हम 15-20 हजार लोग ही सही, सौ-सौ रुपए की राशि एकत्रित कर पीड़ित परिवार को एक किस्म की आश्वस्ती नहीं दे सकते या एक फंड ही हमेशा के लिए बना लिया जाए, जिसके लिए मंदिरों, साधु-संतों, उद्योगपतियों और दानदाताओं के साथ ही आम नागरिक से भी सहयोग लिया जाएI  
 
मैं तो कहता हूं हिन्दूवादी लोग शिकायतें छोड़ेंI क्योंकि सभी सेक्यूलर लोग जानते हैं कि देश के सारे हिन्दू भी मारे जाएंगे तो केवल उनके परिवारों को ही परेशानी होना हैI हिन्दू समाज में किसी दूसरे हिन्दू को फर्क पड़ता होता तो देश के हिन्दुओं की इतनी दुर्गति कदापि नहीं होतीI पैसा देकर धर्मांतरण, पैसे देकर गरीबों को शिक्षा और उपचार और फिर उनको भावनात्मक रूप से अपना गुलाम सा बना लेना, क्या इनको हमने नजरअंदाज नहीं किया है?
 
क्या संतों को सकल हिन्दू समाज के विकास और उत्थान के बारे में नहीं सोचना चाहिए? हम दान देकर भूल जाते हैं और दुखद सत्य है कि साधु-संत लेकर भूल जाते हैं कि हिन्दुओं की रक्षा, उत्थान उनका महत्वपूर्ण और प्राथमिक नैतिक कर्तव्य है। क्या उनका कोई कर्तव्य नहीं है? वे पादरी और मौलवी को देखकर ही कुछ सोचते, नहीं सोचा, कभी नहीं सोचाI 
 
क्या जो सम्मान साधु-संतों को समाज देता है, क्या उस सम्मान के प्रतिसाद का हकदार समाज नहीं हैI दलितों का उत्थान होI छुआछूत समाप्त करेंI आरक्षित जाति के ग्रामीण और वनवासी बच्चों को बचपन से ही गोद लेकर पढ़ाने का दायित्व साधु-संत लें या उनके मार्गदर्शन में समाज करे। 
 
आज तो यह हालत है कि जो हिन्दू हित की बात करेगा, हिन्दू समाज उस पर ही जोरदार आघात करेगाI 

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