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महापुरुषों पर योगी की नई सोच

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विवेक त्रिपाठी

महापुरुषों ने देश बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसे भुलाया नहीं जा सकता है। हमारी आने वाली पीढ़ी भी उन्हें समझे। इस बात की व्यवस्था होनी चाहिए। अभी तक सरकारों ने महापुरुषों को वोट बैंक के आधार पर सेट किया है, जिस जाति का नेता उस जाति का महापुरुष बनाने का प्रावधान तो पहले से ही रहा है। उस पर उतने अवकाश भी घोषित होने लगे। सपा-बसपा सरकारों ने वोट बैंक के चक्कर में अवकाश बढ़ाने का काम किया। 
 
सच यह है कि सरकारी स्कूल के छात्रों को जिस महापुरुष की छुट्टी होती है। उस बारे में पता नहीं होता है। यह एक बहुत बड़ी विडम्बना है। इसी प्रकार सरकारी कर्मचारियों की मौज रहती है। क्या यह भावी पीढ़ी के साथ इंसाफ है। या उस महापुरुष के साथ जिसके नाम पर छुट्टी हुई है। इस बारे में किसी का ध्यान नहीं गया। जो सरकार आई, बस उसने वोट बैंक सहेजने के नाम पर जाति विशेष को बढ़ावा देने के लिए अवकाश घोषित कर दिया। यह एक खराब प्रथा थी। सपा-बसपा सरकारों ने छुट्टी देने की भरमार कर दी थी। 
 
उत्तर प्रदेश में पिछली सरकारों ने 17 छुट्टियां सीधे तौर पर जातीय गणित साधने के लिए की थीं। अब 42 छुट्टियां घोषित की जा चुकी हैं। उप्र महापुरुषों के नाम पर अवकाश के लिए नम्बर वन है। सियासी संतुलन साधने के लिए अपने हिसाब से छुट्टी बना ली गई। ब्राह्मण के नाम परशुराम जयंती, क्षत्रियों के नाम पर चंद्रशेखर जयंती, महाराणा प्रताप जयंती, पिछड़ा वर्ग जननायक कर्पूरी ठाकुर जयंती, महर्षि कश्यप एवं महाराज गुह्य जयंती, सरदार वल्लभ भाई पटेल जयंती, ऊदा देवी शहीद दिवस, वैश्य महाराजा अग्रसेन जयंती, मुस्लिम हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी गरीब नवाज का उर्स, सिंधी चेटीचंड, दलितों को आकर्षित करने के लिए वाल्मीकि जयंती, संत रविदास जयंती, अम्बेडकर परिनिर्वाण दिवस, अम्बेडकर जयंती, पूर्वांचली छठ पूजा जाटों के चौधरी चरण सिंह जयंती के नाम पर अवकाश दिए जाते रहे हैं। पूर्ववर्ती सपा सरकार ने सात से ज्यादा अवकाश घोषित किए थे। छुट्टियों की ऐसी ही परंपरा चलती रही तो एक दिन ऐसा आएगा कि स्कूलों के लिए कोई कार्य दिवस ही नहीं बचेगा।
 
महापुरुषों के नाम पर छुट्टी की परिपाटी चल रही थी। शायद इस परिपाटी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक महापुरुष के जयंती पर खत्म करने का साहस दिखाया है। उन्होंने कहा कि महापुरुषों की जयंती और निर्वाण दिवस पर अब दो घंटे के कार्यक्रम आयोजित होंगे, ताकि बच्चे उनके संघर्ष और व्यक्तित्व के बारे में भावी पीढ़ी जान सके। मुख्यमंत्री ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि कई बार गांवों में छात्रों से पूछा कि स्कूल क्यों नहीं गए, तो उनका उत्तर होता था कि आज रविवार है। उन्हें छुट्टियों के बारे में कुछ पता नहीं होता था। ऐसी छुट्टी किस काम की। यह कैसी विडंबना है कि 220 दिन विद्यालय चलने चाहिए, लेकिन 120 दिन से ज्यादा नहीं चल पा रहे हैं। इस निर्णय का प्रदेश में बहुत सारे लोगों ने स्वागत किया।
 
वैसे भी छुट्टी के नाम पर सरकारी कर्मचारी पहले ही आधे दिन ही काम करते थे। हर सप्ताह शनिवार और रविवार अवकाश मिलता रहा है। इसके अलावा 14 कैजुअल, 15 अन्‍य छुट्टी, चिकित्सीय अवकाश, करीब 190 दिन सरकार कार्यालयों में अवकाश रहता है। शिक्षण संस्थानों में ग्रीष्म और शरद अवकाश को अगर शामिल कर दें तो 250 से ज्यादा अवकाश हो जाते हैं। 
 
ज्यादातर शिक्षण संस्थानों में समय पर पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाता, इसका मुख्य कारण ज्यादा अवकाश होता है। सरकारी कार्यालयों में बहुत सारे काम लम्बित पड़े रहते हैं। उसका भी यही कारण होता है। आम जनमानस इस वजह से प्रभावित होता है। महापुरूषों के योगदान के बारे में ज्यादा से ज्यादा विचारों के बारे में जानने की आवश्यकता है। उनके बखानों और संघर्षों से हर पीढ़ी को सीख लेने की जरूरत है। यह अवकाश में नहीं हो सकता है। इस ओर ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता है। 
 
निजी संस्थानों में अवकाश कम होने की वजह से काम की रफ्तार दोगुनी होती है, जबकि सरकारी संस्थानों में ठीक इसके उलट देखने को मिलता है। सरकार को सरकारी कर्मचारियों से काम कराने की संस्कृति विकसित करनी होगी। इसके लिए एड़ी-चोटी एक करनी करनी होगी। स्कूलों में शिक्षा का वातावरण बनाना होगा। शिक्षकों को काम के प्रति जागरूक करना होगा, जिससे छात्र पढ़ सकें। उनको अवकाश के हानि-लाभ बताने पड़ेंगे, जिससे वह अपने भीतर कार्यसंस्कृति को जगा सकें। महापुरुषों के बारे में ज्यादा से ज्यादा छात्रों को बताने की जरूरत है। इस कार्य में समाज और सरकार दोनों को सजग होने की जरूरत है।

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