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धारा 498a क्या है और इसके दुरुपयोग का जवाब कैसे दें?

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हमें फॉलो करें धारा 498a
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शराफत खान

, गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017 (13:10 IST)
आए दिन हम ख़बर पढ़ते हैं कि दहेज़ प्रताड़ना का केस झूठा साबित हुआ। भारत में दहेज़ हत्या एवं प्रताड़ना से महिलाओं को बचाने के लिए 1983 में भारतीय दंड संहिता में धारा 498 अ को जोड़ा गया। इसका उद्देश्य दहेज जैसी सामाजिक बुराई एवं ससुराल में होने वाले अत्याचारों से महिलाओं को संरक्षण देना था। इस धारा के अंतर्गत महिला की केवल एक शिकायत पर बिना किसी अन्य विवेचना के पुलिस पति सहित अन्य ससुराल वालों पर कार्रवाई कर देती है। कुछ प्रकरणों में यह धारा महिलाओं के लिए ससुरालों वालों को ब्लैकमेल करने का भी जरिया साबित हुई। 
 
अदालतों में आज भी 498अ के कई मुकदमे लंबित हैं और कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिनमें यह माना गया कि इस धारा का महिला पक्ष द्वारा दुरुपयोग हुआ है। यह कानून आपराधिक है परन्तु इसका स्वरूप पारिवारिक है। पारिवारिक किसी भी झगड़े को दहेज़ प्रताड़ना के विवाद के रूप में परिवर्तित करना अत्यंत ही सरल है। एक विवाहिता की केवल एक शिकायत पर यह मामला दर्ज़ होता है। परिवार के सभी सदस्यों को अभियुक्त के रूप में नामज़द कर दिया जाता है और सभी अभियुक्तों को जेल में भेज दिया जाता है क्योंकि यह एक गैर ज़मानती, संज्ञेय और असंयोजनीय अपराध है।
 
कई पुरुष इस धारा में मुकदमे लड़ रहे हैं और अदालतों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें राहत नहीं मिल पा रही है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ प्रकरणों में धारा 498अ के दुरुपयोग की बात कही है। सुशील कुमार शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य 2005 के मुकदमे में सर्वोच्च अदालत ने 498अ के दुरुपयोग को लीगल टेरेरिज्म भी कहा है। 
 
यह बात सच है कि महिला उत्पीड़न और दहेज़ के खिलाफ एक सख्त कानून की ज़रूरत हमें है, लेकिन इस कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए भी कुछ कदम उठाए जाने चाहिए। आज कितने ही पुरुष इस धारा का शिकार हुए हैं और उनका जीवन खराब हुआ है। कई संगठन इस धारा के दुरुपयोग के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। 
 
भारत सरकार ने भी फर्जी मुकदमों की बढ़ती संख्या देखते हुए धारा 498अ में संशोधन की आवश्यकता को समझा है, लेकिन फिलहाल इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। हालांकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा के अंतर्गत सीधे गिरफ्तारी पर रोक लगाई है। इस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना निरोधक कानून की धारा 498 ए के हो रहे दुरुपयोग को रोकने के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए। अब दहेज प्रताड़ना के मामले पुलिस के पास न जाकर एक मोहल्ला कमेटी के पास जाएंगे, जो उस पर अपनी रिपोर्ट देगी। कमेटी की रिपोर्ट के बाद ही पुलिस देखेगी कि कार्रवाई की जाए या नहीं।
 
शीर्ष अदालत द्वारा जारी इन निर्देशों के लागू होने के छह माह बाद 31 मार्च 2018 को विधिक सेवा प्राधिकरण परिवर्तन करने के लिए सुझाएगा। मामले की सुनवाई अप्रैल 2018 में होगी।  सुप्रीम कोर्ट ने दो वर्ष पूर्व एक फैसले में आदेश दिया था कि दहेज प्रताड़ना के मामले में पुलिस आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार नहीं करेगी। 
 
जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने उत्तरप्रदेश के एक मामले में दिए फैसले में कहा कि धारा 498ए को कानून में रखने का (1983 संशोधन) मकसद पत्नी को पति या उसके परिजनों के हाथों होने वाले अत्याचार से बचाना था। वह भी तब जब ऐसी प्रताड़ना के कारण पत्नी के आत्महत्या करने की आशंका हो। 
 
अदालत ने कहा कि यह चिंता की बात है कि विवाहिताओं द्वारा धारा 498ए के तहत बड़ी संख्या में मामले दर्ज कराए जा रहे हैं। स्थिति को हल करने के लिए हमारा मत है कि इस मामले में सिविल सोसाइटी को शामिल किया जाए, ताकि न्याय के लिए प्रशासन को कुछ मदद मिल सके। यह भी देखना होगा कि जहां वास्तव में समझौता हो गया है, वहां उचित कदम उठाया जाए। इससे पक्षों को इसे समाप्त करने के लिए हाईकोर्ट न जाना पड़े।
 
हमारे आसपास का समाज 498 अ के दुरुपयोग के किस्से-कहानियों से भरा पड़ा है। जो परिवार इसमें उलझे हुए हैं, वे अपना दर्द खुद ही समझते हैं। कई पुरुष अपनी नौकरी छोड़कर इस उम्मीद में कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रहे हैं कि एक दिन उन्हें इंसाफ मिलेगा। इस धारा में फर्जी मुकदमों का आलम यह है कि न्यायालय भी सबसे पहले यह जानने का प्रयास करते हैं कि कहीं आरोप मनगढ़ंत तो नहीं? 
 
किसी भी तरह की कानूनी लड़ाई लड़ने में बहुत धैर्य रखना पड़ता है और अगर कोई व्यक्ति 498अ जैसी धारा में केस का सामना कर रहा है तो उसे और भी अधिक सहनशक्ति दिखानी होगी। अब तक 498अ के जिन पीड़ित पुरुषों ने केस जीते हैं, उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और खुद को निर्दोष साबित किया। 
 
धारा 498 अ के केस में आरोप के बिंदु अलग अलग हो सकते हैं। अपने वकील के माध्यम से सबूत सहित खुद पर लगे सभी आरोपों को झूठा साबित कीजिए। ‍जब तक कि इस कानून में पुरुषों के पक्ष को देखते हुए संशोधन नहीं होते, तब तक इस लंबी प्रक्रिया के तहत अपना पक्ष मज़बूती से रखें और धैर्य रखते हुए खुद को निर्दोष साबित करें।  

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