पिघलते ग्लेशियर, दहकती ग्रीष्म, दरकती धरती, उफनते समुद्र, घटते जंगल, फटते बादल प्रकृति के अंधाधुंध दोहन के परिणाम हैं। प्रकृति के अनैतिक और अनुचित दोहन से पृथ्वी की जलवायु पर निरंतर दबाव बढ़ता जा रहा है और यही कारण है विश्व में चक्रवातों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है।
हाल ही के अमेरिका के दो तूफानों में से एक ने ह्यूस्टन तो दूसरे ने फ्लोरिडा में ऐसा बवण्डर मचाया कि अनेक लोग तो जान से गए और खरबों में संपत्ति का नुकसान कर गए। हजारों में लोग बेघर हो गए।
हार्वे नामक तूफान ने चार दिनों तक अमेरिका के ह्यूस्टन और टेक्सास में तबाही मचाई। कई प्रभावित क्षेत्रों में 40 इंच से अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई। इस तूफान से आई बाढ़ ने 30000 से अधिक लोगों को विस्थापित कर दिया, दर्जनों की मौत हो गई और हजारों लोगों की जान को बचाया गया।
अभी अमेरिका हार्वे से उबरा भी नहीं था कि नए तूफान 'इरमा' ने अमेरिका के फ्लोरिडा में दस्तक दे दी। इरमा, इतिहास का बड़ा तूफान था और इसने जान-माल का इतना नुकसान किया कि फ्लोरिडा को वापस समान्य होने में कई सप्ताह लगेंगे।
चक्रवात एक ऐसा हिंसक समुद्री दानव है जो अपनी ऊर्जा समुद्र से ग्रहण करता है फिर पृथ्वी की ओर लपकता है अपने प्रचंड वेग और ऊर्जा के साथ। 150 से 250 किमी के वेग से जब पृथ्वी की सतह से टकराता है तो भीषण आंधी और तूफान के साथ धरती को जलप्लावित कर देता है।
अट्हास करती तूफान की आंधी जब शीशों की अट्टालिकाओं के बीच से गुजरती है तो शीशों के भवन थरथराने लगते है। दरख्त अपनी जमीन छोड़कर उसे मार्ग दे देते हैं। वस्तुएँ तिनकों की तरह उड़ती हैं और संपत्ति पानी में बह निकलती है। प्रकृति का रौद्र रूप चारों दिशाओं में एक खौफनाक मंज़र बन कर पसर जाता है।
जिस तरह आँच पर रखा दूध तापमान बढ़ते ही पतीले से बाहर आने का यत्न करता है, वैसे ही समुद्र का तापमान बढ़ते ही उसका आयतन बढ़ता है और वह किनारों को तोड़ने की कोशिश करता है। बढ़े तापमान से समुद्र की सतह भाप में परिवर्तित होती है और यह भाप एक भँवर या बवंडर के रूप में सीधे आकाश की ओर रुख करती है।
ठीक उसी तरह जिस तरह हम गर्मी के मौसम में छोटे छोटे धूल के बवंडर देखते हैं जो एक गोलाकार स्तम्भ बनाते हैं। इस बवंडर से समुद्र की सतह पर कम दबाव का क्षेत्र बनता है जिससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया और तेज हो जाती है। हवा गरम होकर जैसे ही ऊपर उठती है आस पास की ठंडी हवा खाली जगह भरने को आ जाती है। यह हवा भी गरम हो जाती है और अपने साथ पानी लेकर ऊपर उठती है।
इस तरह लगातार ऊपर उठती हवाएं पानी के बादलों का कुंडली की तरह एक वृत्त बना लेती हैं जो एक चक्र की तरह घूमने लगता है। इस तरह बने ये चक्रवात एक बड़े इंजन की तरह होते हैं जिनके लिए गरम और नम हवाएँ ईंधन का काम करती है। चक्रवात के केंद्र में एक नेत्र का निर्माण हो जाता है।
रोचक बात यह है कि भूमध्य रेखा से ऊपर बनने वाले चक्रवात, घड़ी की विपरीत दिशा में घूमते हैं वहीं भूमध्य रेखा से नीचे बनने वाले चक्रवात घड़ी की दिशा में घूमते हैं। इसकी वजह पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना है। विज्ञान में इनका नाम उष्णकटिबंधीय चक्रवात है (ट्रॉपिकल साइक्लोन ) लेकिन बोलने की भाषा में इसके दो नाम हैं। जो अटलांटिक या पूर्वी प्रशांत महसागर से उठते हैं उन्हें हरिकेन (तूफान) कहा जाता है और हिन्द महासागर से उठने वाले चक्रवातों को चक्रवात के नाम से ही बुलाया जाता है।
चक्रवात बनने की प्रक्रिया तो स्पष्ट है किन्तु इसके पीछे जो मूल समस्या है वह है समुद्र के पानी का तप्त होना, कारण है पृथ्वी पर बढ़ता प्रदूषण। जलवायु में परिवर्तन अब एक बहस का विषय नहीं किन्तु एक वास्तविकता बन चुकी है। अमेरिका के कुछ प्रान्त जलप्लावित हैं तो कुछ भयानक सूखे से ग्रस्त और कहीं पर रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ रही है।
वातावरण में बढ़ते प्रदूषण से पृथ्वी की गर्मी, कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों की वजह से बाहर नहीं निकल पा रहीं है। डीजल, पेट्रोल जैसे खनिज तेलों का अत्यधिक उपयोग और उद्योगों द्वारा फैलाया जा रहा प्रदूषण इनके मुख्य कारण हैं। जब मनुष्य अपनी मर्यादाएँ तोड़ता है तो प्रकृति अपनी सीमाओं का उल्लंघन करती है और समुद्र अपने किनारों को। क्रूरता का जवाब क्रूरता से ही मिलेगा। एक दूसरे से आगे निकलकर धन अर्जित करने की स्पर्धा में इस समस्या पर कोई ध्यान नहीं देना चाहता।
राष्ट्रपति ट्रम्प ने इसे समस्या मानने से ही इंकार कर दिया है, किन्तु समय रहते नहीं सम्भला गया तो ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए मनुष्य समाज को तैयार रहना होगा। इनकी निंरतरता में तो कमी नहीं आएगी किन्तु इनकी उग्रता बढ़ती जाएगी।