भारत सरकार और भारतीय प्रधानमंत्री की गत महीनों की कूटनीतिक सक्रियता ने पाकिस्तानी मीडिया में भूचाल ला दिया है। पाकिस्तानी मीडिया स्वयं अपने देश की सरकार को जितना कोस रहा है शायद ही आज तक उसने इतना कोसा होगा। अभी तक पाकिस्तानी सेना की आलोचना से बचने वाले मीडिया ने अपनी सेना पर भी तंज कसने आरंभ कर दिए हैं।
भारतीय कूटनीति ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय जगत में पूरी तरह तन्हा कर दिया है यह हम या हमारा मीडिया नहीं बोल रहा है, पाकिस्तानी विशेषज्ञ और पाकिस्तानी मीडिया स्वयं इस दर्द से चीख रहा है। वर्तमान पाकिस्तानी सरकार की रणनीति से बुरी तरह झुंझलाया मीडिया अपने पैर पटक-पटक कर शोर कर रहा है कि एक-एक कर पाकिस्तान के सारे मित्र देश उसके हाथ से फिसलते जा रहे हैं और इसकी न तो सरकार को परवाह है और न ही सेना को।
कहानी प्रारंभ हुई भारतीय प्रधानमंत्री के यूएई दौरे से जहां उनका भव्य सत्कार हुआ था। दुबई द्वारा प्रधानमंत्री को स्टेडियम में जलसे की अनुमति देना पाकिस्तान को नागवार गुजरा। बाद में सऊदी अरब ने जब मोदीजी को अपने देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया, तो पाकिस्तान के पैरों तले जमीं खिसक गई क्योंकि अभी तक पाकिस्तान सऊदी को बड़ा भाई और यूएई को छोटा भाई समझता आया है।
भारत के प्रति इन देशों का अनुराग हज़म नहीं कर पाया। मोदीजी की यात्राओं से पहले पाकिस्तान और दोनों अरब देशों के बीच यमन को लेकर मनमुटाव तो था ही, क्योंकि यमन के मुद्दे को लेकर पाकिस्तानी मीडिया और अरब मीडिया ने एक-दूसरे की निंदा करने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी, किंतु मोदीजी के यात्रा के पश्चात भारत को इन अरब देशों के निकट आते देख पाकिस्तान को अपने दाता देशों की सुध आ गई और तुरंत पैतरा बदला। अब पुनः यूएई और सऊदी से अपने बिरादराना संबंधों की दुहाई दी जाने लगी है।
इसके पश्चात हाल की विदेश यात्रा मे भारतीय प्रधानमंत्री को अफगानिस्तान, ईरान और कतर में मिले महत्व से पाकिस्तान पूरी तरह खिसिया चुका है। ईरान और अफगानिस्तान दोनों देशों से पाकिस्तान की सीमाएं सटी हैं और यदि ये दोनों ही देश पाकिस्तान के विरुद्ध और भारत के समर्थन मे खड़े हों तो स्वाभाविक है पाकिस्तान को अजीर्ण होगा ही।
अफगानिस्तान मे तालिबानियों को समर्थन देकर पाकिस्तान, अफगानियों को तो दुश्मन बना ही चुका है। उधर सऊदी अरब के भय से ईरान से भी दूरी बनाए रखना पड़ रही है। हाल ही में ईरानी राष्ट्रपति रोहानी ने जब पाकिस्तान की यात्रा की थी तब पकिस्तानी नेताओं के मूर्खतापूर्ण बयानों से उस यात्रा पर ईरानी मीडिया की तीखी प्रतिक्रिया हुई तथा बिना किसी विशेष नतीजे के यह राजनयिक यात्रा समाप्त हुई।
ईरान को अपना सहोदर देश बताने वाला पाकिस्तान आज उसकी गिनती अपने दुश्मन देशों में करने लगा है। अब चीन की बात लें। कुछ माह पूर्व तक भारत के साथ चीन के बढ़ते व्यापारिक और आर्थिक समझौतों को लेकर पाकिस्तानी मीडिया ने चीन को जी भर के कोसा था।
भारत के साथ विभिन्न परियोजनाओं पर सहयोग का हवाला देते हुए पाकिस्तान को झुनझुना पकड़ाने का आरोप चीन पर लगाया गया और पाकिस्तान को इस्तेमाल करने की बात कही, किंतु रातोंरात स्थिति बदली।
मोदीजी की तूफानी कूटनीतिक यात्राओं ने पाकिस्तान को हतप्रभ कर दिया और तुरंत चीन माई बाप बन गया क्योंकि न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) में भारत के प्रवेश को चीन ही रोक सकता है। शेष सभी देशों ने तो भारत को समर्थन दे रखा है।
इसमें शायद संदेह नहीं कि दक्षिण कोरिया में होने वाली 24 जून की बैठक में चीन, भारत के एनएसजी में प्रवेश को रोकने में सफल रहेगा, क्योंकि सदस्यता पाने के नियम पूरी तरह एक पक्षीय हैं जिसका लाभ चीन को मिलेगा। चीन के इस प्रतिरोध के कारणों की चर्चा हम अगले लेख में करेंगे।
विश्व की कूटनीति चौसर का खेल नही जहां पासे अपने पक्ष मे गिरने का इंतज़ार किया जाए। यह तो शतरंज का खेल है जहां आगे तक की व्यूहरचना की जाती है। कूटनीति कोई युद्ध की रणनीति भी नहीं जहां छल कपट जायज हो।
आधुनिक युग की कूटनीति में कपट का कोई स्थान नहीं है। दुनिया को यदि झूठ और कपट की कूटनीति से जीता जा सकता तो आज पाकिस्तान जैसे कुछ देश विश्व के सिरमौर होते। जितना स्वच्छ आप खेलोगे उतने ही अधिक मित्र बनाते जाओगे। भारत को भले ही एनएसजी की सदस्यता इस वर्ष न मिले, किंतु अनेक नए मित्रों को तो भारत जीत ही चुका है जो अधिक महत्वपूर्ण है, साथ ही पाकिस्तान और चीन को भारत ने अपने विश्वरूप के दर्शन भी करवा दिए हैं। हमारा यह भी विश्वास है कि संसार के सभी देशों के हार्दिक समर्थन के चलते एनएसजी में भारत के प्रवेश को अधिक समय तक रोक पाना संभव नहीं होगा।