जिस तरह दीपावली पर हम अपनी अर्थव्यवस्था का लेखा-जोखा करते हैं, उसी तरह दशहरा, शस्त्रपूजा और देश की सामरिक शक्ति का लेखा-जोखा करने का दिन है। इसे संयोग ही कहें कि इस वर्ष दशहरा और वायुसेना दिवस एक ही दिन पड़े। 8 अक्टूबर, दशहरे के दिन पहले राफेल लड़ाकू जहाज की पूजा देश के रक्षामंत्री ने की और अगले वर्ष में कम से कम 6 राफेल भारतीय सेना का हिस्सा बन जाएंगे।
वर्तमान युग में युद्ध की स्थिति में सबसे अधिक महत्व वायुसेना का होता है इसलिए सेना के इस अंग का सबसे मजबूत होना अति आवश्यक है। दुर्भाग्य से भारत इसके आधुनिकीरण में बहुत पीछे था। हमारे नेताओं को हर वर्ष कार का नया मॉडल चाहिए किंतु शर्म की बात है कि हमने हमारे हवाई प्रहरियों को दशकों पुराने लड़ाकू विमान दे रखे हैं।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 1996 में नरसिम्हाराव सरकार द्वारा रूस के साथ सुखोई समझौते के बाद पिछले 20 वर्षों से हमारी वायुसेना के पास कोई नया विमान नहीं आया और इन 20 वर्षों में तकनीक में युगांतरकारी परिवर्तन आ चुके हैं। इसीलिए हम अभिनन्दन के साहस को नमन करते हैं जिसने मिग-21 (जिसे दुनिया के लगभग सभी राष्ट्रों की वायुसेना ने वर्षों पूर्व रिटायर कर दिया है) से पाकिस्तान के अत्याधुनिक विमान एफ-16 को गिरा दिया।
स्मरण रहे चीन के साथ 1962 की जंग लाठियों से लड़ी गई थी। उसके बाद के युद्धों में भी भारतीय सेना के पास हथियारों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, हमने केवल शौर्य और पराक्रम से युद्ध जीते किंतु हमारे शहीदों की संख्या कम नहीं थी। अब यह तो नहीं कहेंगे कि पूर्व सरकारों द्वारा वायुसेना की अनदेखी किसी षड्यंत्र के तहत थी, किंतु यह जरूर है कि सरकारों की निरंतर लापरवाही के कारण भारत की वायु शक्ति चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुकी थी।
यदि सेना के पास आधुनिक हथियार न हों तो देश के पास कितनी ही बड़ी सेना क्यों न हो, दुश्मन का मुकाबला करने में वह अपना नुकसान भी उठाती है। सामना चाहे दुश्मन से हो या आतंकियों से, नए भारत की चैतन्य जनता की अपेक्षा तो यही रहती है कि सेना बिना जान-माल का नुकसान किए जंग जीते, किंतु आधुनिक हथियारों के बिना क्या यह मुमकिन है?
ऊपर से विडम्बना देखिए कि जब दो दशकों के बाद राफेल विमानों का सौदा हुआ तो उस पर भी विवाद खड़ा कर दिया गया। यद्यपि विवाद उसकी मारक क्षमता पर नहीं था, उसकी कीमत को लेकर था और भगवान का शुक्र है कि यह सौदा तुच्छ राजनीति की भेंट नहीं चढ़ा।
8 अक्टूबर, दशहरे के दिन पहले राफेल लड़ाकू जहाज की पूजा देश के रक्षामंत्री ने की और अगले वर्ष में कम से कम 6 राफेल भारतीय सेना का हिस्सा बन जाएंगे। पहले राफेल जेट को भारत को सौंपने के बाद, यूरोपीय मिसाइल निर्माता एमबीडीए ने कहा है कि राफेल को सबसे उन्नत मिसाइलों, जिनमें उल्का और स्कल्प मिसाइलें शामिल है से लेस किया गया है।
राफेल में लगी ये मिसाइलें दक्षिण एशिया में भारत को बेजोड़ मारक क्षमता और हवाई प्रभुत्व प्रदान करेंगी। राफेल के अतिरिक्त इस वर्ष चिनूक मॉल वाहक हेलिकॉप्टर और आक्रामक अपाचे हेलीकॉप्टरों की खेप भारत को मिल चुकी है। साथ ही भारत में ही निर्मित तेजस लड़ाकू विमान भी वायुसेना को मिलने आरंभ हो चुके हैं।
प्रतिरक्षा के लिए मिसाइल भेदी सिस्टम एस-400 का ऑर्डर भी रूस को जा चुका है। यानी इन सबके संचालन में आने के पश्चात रक्षा हो या आक्रमण भारत की आसमानी सामरिक क्षमता में कई गुना बढ़ोतरी होगी। इसके अतिरिक्त पहले से शामिल सुखोई विमानों में नए उन्नत सिस्टम लगाने की बात की जा रही है। वायुसेना, रूस के साथ 12 और सुखोई की खरीद को अंतिम रूप दे रहा है, जो दुर्घटनाओं में खोए विमानों की जगह लेंगे।
उधर थलसेना, अरुणाचल प्रदेश में अपने नए एम 777 अत्यंत हल्की होवित्जर तोपों को पर्वतीय क्षेत्र में तैनात करने की तैयारी कर रही है जो इस क्षेत्र में प्रभावी काम करेगी। हाल के वर्षों में सरकार द्वारा, भारतीय पनडुब्बी बेड़े की भी बुरी तरह उपेक्षा के कारण भारत को समुद्र में कई आपदाओं का सामना करना पड़ा है। इस क्षेत्र में भी भारत का निवेश गैरजिम्मेदाराना रहा और ऊपर से दलाली और भ्रष्टाचार के आरोप अलग। किंतु इस वर्ष सितंबर में भारतीय नौसेना ने अपने बेड़े में स्वदेश निर्मित कलवरी क्लास डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी खंडेरी को शामिल किया।
यह पनडुब्बी एक अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित है जो समुद्र के नीचे शोर कम करती है। चालक दल की संख्या कम होने से ऑक्सीजन की बचत होगी, जो पनडुब्बी को लंबे समय तक पानी के नीचे रहने की क्षमता को बढ़ाती है। आपको बता दें कि आईएनएस खंडेरी अपने दुश्मनों पर हमला करने के लिए पूरी तरह से हथियारबंद है। यह मिसाइलों और टॉरपीडो के एक सेट से लैस है जिसे दुश्मन के ठिकानों का पता लगने पर दागा जा सकता है। इन तमाम तैयारियों को देखकर इस वर्ष हमारा मस्तक गर्व से ऊपर उठा है और सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी कम हुई हैं।
यदि यही सिलसिला जारी रहा तो हमारी सेना शीघ्र ही अपने शौर्य के साथ अपने आयुधों की मारक क्षमता के आधार पर भी आंकी जाएगी जो आवश्यक है अन्यथा बिना सामरिक शक्ति के यदि हम आर्थिक शक्ति बन भी गए तो कुछ टुच्चे पड़ोसी हमें आंखें दिखाना नहीं छोड़ेंगे। सीमाएं सुरक्षित हों तो विकास के मार्ग पर निकले भारत की गति में कोई अवरोध नहीं बन सकेगा। निरंतर पराक्रमशील ही विजयते। विजय की प्रथम आवश्यकता है निरंतर चैतन्यता।