Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

इस्लाम के जानकारों से ज्यादा आतंकियों की क्यूं सुनते हैं मुस्लिम युवा?

हमें फॉलो करें इस्लाम के जानकारों से ज्यादा आतंकियों की क्यूं सुनते हैं मुस्लिम युवा?
webdunia

डॉ. प्रवीण तिवारी

रमजान का पाक महीना। जुमे का पाक दिन। विदेशियों से भरा रेस्टोरेंट। अल्लाहू अकबर के नारे लगाते हुए आतंकी रेस्टोरेंट में दाखिल हुए। वहां बंधक बनाए गए लोगों से कुरान की आयतें पूछीं। चश्मदीदों के मुताबिक, आतंकियों ने कहा सिर्फ विदेशियों को मारेंगे बांग्लादेशियों (मुसलमानों) को कुछ नहीं करेंगे। इसके बाद धारदार हथियारों से बेरहमी के साथ कई मासूमों को मौत के घाट उतार दिया।
इस्लाम के मानने वालों का भी दिल इस घटना से थर्रा गया। इस्लाम के मानने वाले भी इसकी निंदा करते दिखे। बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये लोग कौन हैं? कैसे इनके दिमाग में इतना जहर भरना मुमकिन हो पाता है? सवाल ये भी उठता है कि आखिर इनका मकसद क्या है? इस मामले पर राजनीति करने वालों ने आतंकी वारदातों और ISIS जैसे खतरनाक संगठनों के नामों का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल भी किया है। 
 
हैदराबाद में पकड़े गए हथियारों के बड़े जखीरे और ISIS के स्लीपर सेल ने ये भी साफ कर दिया है कि इसकी धमक भारत में भी हो चुकी है। इससे पहले भी युवाओं के ISIS में शामिल होने की खबर आती रही है लेकिन इस बार इन लोगों ने जिस तरीके से हथियार जुटाए वो इस ओर इशारा करता है कि ये एक बार फिर भारत को दहलाने का मंसूबा पाले हुए हैं। इस पर औवेसी जैसे लोगों का इन लोगों के समर्थन में उतर आना देश में कट्टरपंथी ताकतों को मिल रहे संरक्षण का गवाह है।
 
औवेसी जिन लोगों को कानूनी मदद मुहैया कराने की बात कर रहे हैं वो खतरनाक विस्फोटक TATP का पूरा जखीरा तैयार कर चुके थे। उनका मकसद किसी बड़ी वारदात को अंजाम देना था। औवेसी यदि ये सब मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए कर रहे हैं तो बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि क्या मुस्लिम मतदाता आतंकियों को बचाने से कभी भी खुश हो सकते हैं? 
 
बांग्लादेश में हुए आतंकी हमले ने ये भी साफ कर दिया कि आतंक की जमीन युवाओँ के दिमाग में पहले से ही तैयार रहती है बस उसे एक चिंगारी देने की जरूरत है। बांग्लादेश में मासूमों का कत्ल करने वाले कुछ दिन पहले तक अपने घर और समाज के लोगों के लिए खुद भी मासूम थे। ये सभी 20 साल से कम उम्र के थे। 
 
हैरान करने वाली बात ये है कि ये 26/11 मुंबई हमले के आतंकियों की तरह कचरा बीनने वाले या कमजोर आर्थिक परिस्थिति वाले नहीं थे। 26/11 मुंबई हमले के सभी आतंकी कमजोर आर्थिक परिस्थितियों वाले थे। इनकी इसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए इन्हें आतंक की ट्रेनिंग देते हुए ये वादा किया गया था कि उनके परिवारों को अच्छा पैसा मिलेगा और उन्हें मरने के बाद जन्नत में हूरें मिलेंगी। जिन्होंने कसाब के बयान को पढ़ा या सुना है वो अंदाजा लगा सकते हैं कि इनकी दिमागी हालत क्या थी।
 
बांग्लादेश के आतंकियों ने सिर्फ बांग्लादेश ही नहीं पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है खास तौर पर उन देशों को जहां मुस्लिम युवाओं की तादाद ज्यादा है। इनमें से ज्यादातर युवा बांग्लादेश के संपन्न परिवारों से थे और ये ढाका के एक महंगे अंग्रेजी माध्यम के प्राइवेट स्कूल के छात्र थे। इनमें से कुछ यहां की अच्छी यूनिवर्सिटी में भी पढ़ रहे थे। इन लोगों में एक सत्ताधारी दल अवामी लीग के नेता का बेटा भी था। इन लड़कों का आतंकी संगठन में शामिल होना और इस बेरहमी से लोगों का कत्ल करना सभी को चौंका रहा है। बांग्लादेश में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई है कि इस घटना ने मुस्लिम बहुल देश के बच्चों में कट्टरता के बढ़ने का इशारा किया है। 
 
इनके चंगुल से बचकर बाहर आ पाए एक बंधक ने बताया कि इन लोगों ने विदेशी बंधकों को सिर्फ गोलियां नहीं मारी बल्कि धारदार हथियारों से उन्हें बेरहमी से काटते हुए कहा कि वो इस्लाम की तरक्की में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। ISIS इन लोगों की तस्वीर जारी कर रहा है और लगातार हमले की जिम्मेदारी ले रहा है जबकि बांग्लादेश सरकार बार-बार इस बात को मानने से इनकार कर रही है। इसकी बड़ी वजह साफ है कि ISIS की विचारधार से और युवा प्रभावित न हों। बांग्लादेश सरकार जानती है कि युवाओं के बीच में कट्टरता औऱ बढ़ रही है जो आने वाले समय में घातक साबित हो सकती है।
 
इन लड़कों में से ही एक के पिता मीर हैयत कबीर एक ढाका स्थित एक विदेशी कंपनी में एक्जीक्यूटिव के तौर पर काम करते हैं। उन्हें पुलिस ने फोन कर अपने 18 साल के बेटे मीर सामी मुबाशीर की लाश की शिनाख्त करने के लिए बुलाया। मुबाशिर 29 तारीख से लापता था और उसके पिता लगातार पुलिस के संपर्क में थे। ये लड़का भी बांग्लादेश के एक महंगे और बड़े स्कूल स्कॉलास्टिका का छात्र था। उसके पिता ने कहा कि मस्जिद में या स्कूल में कट्टरपंथियों के संपर्क में आने के बाद शायद उसका ब्रेन वॉश कर दिया गया। मारे गए दो अन्य आतंकवादी भी इसी स्कूल से थे क्योंकि उनके भी लापता होने की रिपोर्ट पुलिस के पास लिखवाई गई थी।
 
कबीर ने न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि उनका बेटा गिटार बजाना पसंद करता था लेकिन पिछले तीन महीने से उसने गिटार बजाना बंद कर दिया था। जब उन्होंने उससे इसका कारण पूछा तो उसने कहा संगीत अच्छा नहीं होता है। इस्लाम के कट्टरपंथी नृत्य और संगीत का विरोध करते दिखाई देते हैं और कबीर का मानना है कि उनका बेटा भी ऐसे ही लोगों के संपर्क में था।
 
कौन हैं वो लोग जो इन बच्चों के दिमाग में जहर भर रहे हैं? इनके दिमाग में ऐसी क्या बातें पहले से मौजूद हैं जिसकी वजह से वो आतंक के इस फलसफे से जल्दी प्रभावित हो जाते हैं इस पर भी विचार किए जाने की सख्त जरूरत है। ISIS इन लोगों के पीछे है या नहीं इस बहस में पड़ने का कोई फायदा नहीं। इन्होंने उसका ही काम किया है चाहे फिर वो किसी भी संगठन के झंडे तले किया हो। ये मकसद है इस्लाम को दुनिया भर में स्थापित करने के लिए अन्य मान्यताओं और धर्मों के लोगों का कत्लेआम करना।
 
इस्लाम का कोई भी सच्चा जानकार इस बात को नहीं मानता लेकिन दुनिया भर के आतंकी इसी मकसद के साथ लगातार युवाओं को भटका रहे हैं। कुरान की आयतें बुलवाकर लोगों को छोड़ना, गैर इस्लामी लोगों को मारना बांग्लादेश के आतंकी हमले के मकसद को भी साफ करता है। इस्लाम के जानकारों को इस बात पर विचार करना होगा कि आखिर ऐसा क्यूं है कि उनकी बातों के बजाय आतंकी संगठनों की बातें इन युवाओं को प्रभावित कर जाती हैं। 
 
क्या इस्लाम के जानकारों को सामने आकर इसके लिए कोई अभियान चलाने की जरूरत नहीं है? क्या सोशल साइट्स पर इन मुद्दों को हिंदू मुस्लिम रंग देकर बहस करने वालों को एक सुर में इसके खिलाफ बोलकर एकजुटता बनाने की जरूरत नहीं है? क्या औवेसी जैसे लोगों को खारिज कर इस देश की राजनीति में मुस्लिम आतंकियों का समर्थन कर होने वाले फायदे के मिथक को तोड़ने की जरूरत नहीं है। यदि ऐसा नहीं होता है तो यही माना जाएगा कि ISIS का मकसद और इस पर राजनीति करने वालों का मकसद एक जैसा ही है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कानूनों को राजनीति की फुटबॉल न बनाया जाए