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विदेश मंत्रालय में बदलाव का अर्थ

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अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा खत्म होने के एक दिन बाद मोदी सरकार ने बुधवार देर शाम अचानक विदेश सचिव सुजाता सिंह के कार्यकाल में कटौती के साथ ही तत्काल प्रभाव से एस. जयशंकर को इस पद पर नियुक्त कर दिया है। रिटायर होने से 8 महीने पहले सुजाता को पद से हटाने को कहीं से भी साधारण कदम नहीं माना जा सकता। नए विदेश सचिव सुब्रमण्यम जयशंकर अमेरिका में राजदूत हैं और सुजाता से एक बैच जूनियर हैं।
 
विदित हो कि 28 साल पहले 1987 में राजीव गांधी ने भी एपी वेंकेटेश्वरण को विदेश सचिव से हटाया था। इसके बाद से सुजाता सिंह पहली विदेश सचिव हैं, जिन्हें इस तरह से कार्यकाल के बीच में हटाया गया। कहा जा रहा है कि सुजाता सिंह के काम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संतुष्ट नहीं थे। पिछले कुछ महीनों में उन्हें बदलने के लिए कई बार बात भी हुई लेकिन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज सुजाता सिंह को हटाने के खिलाफ थीं।
 
आखिरकार ओबामा की यात्रा के बाद यह फैसला ले ही लिया गया। इससे पहले मोदी को दोनों देशों के बीच सुर्खियां बटोरने वाली शिखर बैठक के लिए जमीन तैयार करने की  खातिर जयशंकर की वॉशिंगटन में जरूरत थी। जयशंकर की नियुक्ति विदेश मंत्रालय में बदलाव को रेखांकित करता है। पिछले 6 महीनों में सरकार ने राजदूत संबंधी कोई भी नियुक्तियां नहीं की थीं। विदेश मंत्रालय अपनी सिफारिशें भेजता था लेकिन पीएमओ उस पर मुहर नहीं लगाता था, क्योंकि प्रधानमंत्री मंत्रालय में आंशिक रूप से संचालन की बागडोर को बदलना चाहते थे।
 
जयशंकर गुरुवार से काम करना शुरू कर दिया है। वह फरवरी के पहले हफ्ते में एनडीए सरकार द्वारा बुलाई गई प्रमुखों की मिशन बैठक की अध्यक्षता करेंगे। माना जा रहा है कि वह विदेश मंत्रालय में मुक्त होकर काम करेंगे, क्योंकि पीएम को भरोसा है कि वह लीक से हटकर फैसले लेने में सक्षम हैं। जयशंकर ने 2008 में अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझौते में अहम भूमिका अदा की थी।
 
जयशंकर को 2013 में ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विदेश सचिव बनाना चाहते थे। हालांकि मनमोहन अपनी पसंद को जगह नहीं दिला पाए और सोनिया गांधी ने सुजाता सिंह पर आखिरी मुहर लगाई थी। सुजाता के पिता पूर्व आईबी चीफ टीवी राजेश्वर पुराने कांग्रेसी वफादर थे। इंडियन फॉरन सर्विस में 1977 बैच के जयशंकर रणनीतिक गुरु के. सुब्रमण्यन के बेटे हैं। के. सुब्रमण्यन टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व सलाहकार संपादक थे। जयशंकर चीन में भारतीय राजदूत से पहले सिंगापुर और चेक रिपब्लिक में हाई कमिश्नर रहे थे।
 
हैरानी की बात यह है कि जयशंकर ने जब पदभार संभाला तब वहां सुजाता सिंह मौजूद नहीं थीं, जबकि परंपरा के अनुसार पूर्व विदेश सचिव नए विदेश सचिव के कार्यभार संभालने के दौरान मौजूद रहते हैं। पदभार संभालने के बाद जयशंकर ने कहा कि सरकार की प्राथमिकताएं ही उनकी प्राथमिकताएं हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि मोदी, सुजाता सिंह के कामकाज से खुश नहीं थे और वे उनकी प्राथमिकताओं के अनुरूप काम करने करने वाली अफसर नहीं मानी जाती हैं। 
 
सूत्रों का कहना है कि विदेश मंत्रालय के सबसे बड़े अफसर के पद से सुजाता सिंह को हटाए जाने के फैसले से विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज पूरी तरह सहमत नहीं थीं, लेकिन प्रधानमंत्री ने इस मामले में सीधा फैसला सुना दिया और उन्होंने विदेश मंत्री की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया।
सुजाता को अचानक हटाने के फैसले की अहम वजह... पढ़ें अगले पेज पर....
 
 

सूत्रों के मुताबिक पीएम मोदी और सुजाता के बीच दूरी दो माह पहले ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान सामने आई थी और पीएम सुजाता के काम करने के तरीके से खुश नहीं थे। एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि सुजाता को पड़ोसी देशों में कामकाज का राजनयिक अनुभव नहीं था जबकि पीएम पड़ोसी देशों से बेहतर रिश्ते चाहते हैं। सुजाता के रिटायरमेंट में अभी आठ माह बाकी थे। जयशंकर अब दो साल तक भारत के विदेश सचिव का बेहद महत्वपूर्ण ओहदा संभालेंगे। हैरानी की बात यह है कि सुजाता की नई जिम्मेदारी का अब तक एलान नहीं किया गया है।
 
क्‍यों अचानक लिया गया फैसला : सूत्रों के मुताबिक बुधवार रात अचानक सुजाता सिंह को हटाने का फैसला पीएम मोदी ने ही लिया और जयशंकर को कमान सौंप दी गई। माना जा रहा है कि सितंबर में मोदी की अमेरिका यात्रा और हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की सफल भारत यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जयशंकर को विदेश सचिव के पद पर नियुक्त किए जाने का फैसला कैबिनेट की नियुक्ति संबंधी समिति ने लिया। विदित हो कि चयन समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री ही करते हैं।
 
इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की 31 जनवरी से शुरू हो रही चीन यात्रा से पहले लिया गया यह फैसला अहम माना जा रहा है। चूंकि सिंह के कांग्रेस नेताओं से करीबी संबंध माने जाते हैं अत: मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ही चर्चा जोरों पर थी कि उन्हें पद से हटाया जा सकता हैं। इसके साथ ही, एक अहम बात यह है कि जब मोदी अमेरिका गए थे तो यात्रा को लेकर सारी तैयारियों की जिम्मेदारी जयशंकर को दी गई। इसी तरह गणतंत्र दिवस पर ओबामा के भारत आने में भी मुख्य भूमिका में जयशंकर ही थे। प्रारंभ से ही पीएमओ कभी भी सुजाता सिंह से प्रभावित नहीं हुआ था और जयशंकर ने अपनी पिछली उपलब्धियों के बल पर मोदी को बहुत प्रभावित किया और वे उन्हें नई-नई जिम्मेदारियां देते गए। 
 
इस परिवर्तन का एक अन्य कारण है कि मोदी जयशंकर को विदेश सचिव बनाकर भारत और चीन के रिश्तों पर पड़ने वाले संभावित दुष्प्रभावों को भी दूर करने का प्रयास करना चाहते हैं। जयशंकर पहले चीन में राजदूत रह चुके हैं। वहां के राष्ट्रपति की भारत यात्रा में उनकी वही भूमिका रही थी जो मोदी के अमेरिका और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा में रही है। 
 
जयशंकर के बहाने भारत ने चीन को कूटनीतिक संकेत दिया है। चीन को भारत-अमेरिका के मजबूत होते रिश्ते और इसकी वजह से पाक के षड्‍यंत्र में आने की जरूरत नहीं है। मोदी ने यह संकेत भी दिया है कि चीन को यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि इससे इस उपमहाद्वीप में कोई गंभीर राजनैतिक असंतुलन बन सकता है। चीन सीमा विवाद सुलझाने का मैकेनिज्म भी जयशंकर ने ही चीनी शीर्ष नेताओं के साथ मिलकर निकाला था। 
 
चीन से निकटता बनाकर भारत के खिलाफ उसका इस्‍तेमाल करने की पाकिस्‍तान की कोशिशों से निपटने के लिए भारत ने अब चीन से संपर्क बढ़ाने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब चीन से दोस्‍ती बढ़ाने पर फोकस किया है। 26 मई को अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने से पहले मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आमंत्रण पर चीन जाएंगे। इससे पहले वह अपनी विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज और राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसएस) अजीत डोभाल को वहां भेज रहे हैं। स्‍वराज 31 जनवरी से तीन फरवरी तक चीन का दौरा करेंगी, जबकि डोभाल मार्च में जाएंगे। उसी महीने मोदी की यात्रा का कार्यक्रम बनेगा और मई में बतौर पीएम एक साल पूरा करने से पहले प्रधानमंत्री चीन जाएंगे।
दो कारणों से जरूरी था यह कदम...पढ़ें अगले पेज पर....
 
 

1. अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान पाकिस्‍तान ने चीन के साथ मिलकर भारत विरोधी माहौल बनाने की कोशिश की। ओबामा की यात्रा के दौरान जहां पाकिस्‍तानी सेना प्रमुख चीन गए, वहीं पाकिस्‍तान ने भारत-अमेरिका समझौतों से जुड़े कई मुद्दों का विरोध करने में भी चीन का समर्थन हासिल किया। ऐसे में भारत की ओर से होने वाली यात्राएं चीन को अपना पक्ष समझाने में मददगार साबित होंगी।
 
2. भारत और अमेरिका की बढ़ती नजदीकी को लेकर अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार ये कयास लगा रहे हैं कि जापान-ऑस्ट्रेलिया-यूएस-भारत चीन के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। भारतीय विदेश मामलों से जुड़े सूत्रों ने साफ किया है कि यह रणनीति का गलत अर्थ निकाला जाना है। नई दिल्‍ली में पीएम मोदी ओबामा के साथ बीतचीत के दौरान चीन के प्रति अपनी एप्रोच को लेकर संतुलित थे। यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि चीन के खिलाफ भारत किसी तीसरे देश के कारण भ्रमित नहीं होगा। लेकिन, यह संदेश चीन तक पहुंचाना जरूरी है। भारतीय मंत्री, एनएसए और अंतत: मोदी की यात्रा से यह संदेश 
 
एक वरिष्ठ राजनयिक ने कहा है कि पीएम मोदी के दौरे की तिथि आगामी मार्च महीने में तय होगी। चीनी राष्ट्रपति अपने होम टाउन शियान में पीएम मोदी की मेजबानी को इच्छुक हैं। मोदी ने बीजिंग जाने से पहले नाथुला के जरिए मानसरोवर जाने के नए मार्ग से यात्रा की इच्छा भी व्यक्त की है। इस संबंध में यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल दोनों देशों के बीच सीमा वार्ता में भारत की ओर से विशेष प्रतिनिधि हैं। वह अपनी यात्रा में दोनों देशों के बीच 18 वें दौर की वार्ता के जरिए सीमा विवाद सुलझाने की कोशिश करेंगे। डोभाल वेस्टर्न सेक्टर (अक्साई चीन) का दोनों देशों से मानचित्र तैयार किए जाने का दबाव डालेंगे, ताकि भारतीय जवानों और चीनी सैनिकों के बीच आए दिन होने वाले आमने-सामने के टकराव की स्थिति को टाला जा सके। 
 
नई दिल्ली में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से द्विपक्षीय वार्ता के दौरान पीएम मोदी ने स्पष्ट कहा था कि भारत को अपने सुरक्षा हितों का ख्याल सबसे ज्यादा है, लेकिन आर्थिक और अन्य वैश्विक मुद्दों पर चीन के साथ सहयोग में कोई समस्या नहीं है।
अपनी बातचीत में मोदी ने साफ किया कि भारत की चीन से कोई दुश्मनी नहीं है।
 
बताया जा रहा है कि राष्ट्रपति ओबामा और पीएम मोदी के बीच चीन को लेकर नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में करीब एक घंटे तक बात हुई। सूत्रों के मुताबिक, मोदी ने ओबामा से कहा है कि भारत चीन के साथ ठीक उसी नीति का पालन कर रहा है जो कि कभी आर्थिक मामलों को लेकर अमेरिका अपनाता था। मोदी ने ओबामा को यह भी स्पष्ट किया कि भारत चीन के साथ आर्थिक, आधारभूत संरचना विकास और जलवायु परिवर्तन को लेकर बड़े स्तर पर संबंध स्थापित करने के बारे में सोच रहा है। मोदी का मानना है कि किसी भी देश की कीमत पर दूसरे देश के साथ समझौता या संबंध नहीं रखे जाएंगे। इसीलिए चीन अब प्रधानमंत्री की विदेश संबंधी गतिविधियों का केन्द्र बनने जा रहा है।

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