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बाल दासता मिटाने को कैलाश सत्यार्थी का अभियान

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उमेश चतुर्वेदी

रूसी क्रांति में लेनिन के सहयोगी रहे अराजकतावादी चिंतक प्रिंस क्रोपाटकिन की एक विचारोत्तेजक किताब है। हिन्‍दी में इस किताब का नाम ‘नवयुवकों से दो बातें’ है। आजादी के आंदोलन के दौरान पिछली सदी के तीस और चालीस के दशक में कोलकाता के एक खादी भंडार ने इस किताब को छापा था। तब के कलकत्ता के हरीसन रोड का नाम अब महात्मा गांधी मार्ग हो गया है। उस खादी भंडार ने उस दौर में काफी ऐसा साहित्य छापा, जो भारतीय आजादी के आंदोलन को वैचारिक आधार और गति देने में सहयोगी हो सके। प्रिंस क्रोपाटकिन की उस किताब को हिन्‍दी में तब उसी खादी भंडार ने छापा था। इस किताब में क्रोपाटकिन डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक और दूसरे पेशा लोगों से गरीबी और असमानता को लेकर सवाल पूछते हैं। 
उस किताब में कहीं गरीबी और असमानता के लिए गरीब और कमजोर तबके को जिम्मेदार नहीं ठहराते, लेकिन अपने तर्क कौशल से ऐसे सवाल वे जरूर पाठकों के सामने खड़ा कर देते हैं, जिससे इस गरीबी और असमानता को लेकर पाठक को कुछ हद तक अवसाद में डाल दे और यह अवसाद बढ़ते-बढ़ते किताब के हर्फों के साथ कब क्षोभ में बदल जाता है, समझ ही नहीं आता। उस किताब में बच्चों को लेकर भी एक सवाल है कि ईश्वर के सामने सभी एक हैं। बच्चे भी एक तरह से पैदा होते हैं, लेकिन ऐसा क्यों होता है कि कुछ बच्चों को कुछ ज्यादा ही सहूलियतें, सुविधाएं और तमाम ऐश-ओ-आराम के साधन मिल जाते हैं और कुछ क्यों गरीबी में मजलूम बनकर जीवन काटने के लिए मजबूर होते हैं। इन मजलूम बच्चों का आखिर गुनाह क्या है? आखिर इन बच्चों को जीवन की मूलभूत सहूलियतों से ही क्यों वंचित रहना पड़े?
 
करीब एक सौ दस साल पुरानी इस किताब के सवाल आज भी जिंदा हैं। अपने ही देश को लें। कानूनी जुर्म होने के बावजूद लाखों बच्चे अब भी बाल मजदूरी करने को अभिशप्त हैं। एक आंकड़े के मुताबिक दुनियाभर में अब भी करीब 16 करोड़ 80 लाख बच्चे बाल मजदूरी करने को मजबूर हैं। इसी तरह करीब साढ़े पांच करोड़ बच्चे गुलामी के दलदल में डूबे हुए हैं। ऐसा नहीं कि इस मोर्चे पर काम नहीं हो रहा है। भारत में बच्चों को मुक्त कराने के अभियान में कैलाश सत्यार्थी का बचपन बचाओ आंदोलन पिछले कई सालों से काम कर रहा है। बाल मजदूरों को मुक्त कराने के उनके अभियान को वैश्विक मान्यता मिल चुकी है। 
 
इसके तहत उन्हें 2014 में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। कैलाश सत्यार्थी यह बताते हुए राहत जताते हैं कि उनके वैश्विक प्रयासों और दूसरी संस्थाओं की कोशिशों के चलते साल 2000 के मुकाबले बाल मजदूरों की संख्या कम हुई है। सन् 2000 में दुनियाभर में जहां बाल मजदूरों की अनुमानित संख्या 24 करोड़ 60 लाख थी, वह घटकर इन दिनों करीब 16 करोड़ 80 लाख रह गई है। लेकिन कैलाश सत्यार्थी को चैन नहीं है। उनका भी वही सवाल है, जो सदियों से दार्शनिक, संत, रूसी क्रांति के अराजगकतावादी विचारक प्रिंस क्रोपाटकिन और हमारे यहां गांधी भी पूछते रहे हैं। आखिर किसी कमजोर तबके में पैदा होना बच्चे का गुनाह क्यों है और वह क्यों बदहाल जिंदगी जीने के लिए मजबूर रहे। कमजोर से कमजोर, गरीब से गरीब तबके में पैदा होने वाले बच्चे को भी मूलभूत जीवनीय सहूलियतें क्यों ना मिलें। 
 
कैलाश सत्यार्थी ने वैश्विक स्तर पर बाल मजदूरी और बाल दासता खत्म करने के लिए अभियान शुरू करने जा रहे हैं। इस अभियान का नाम हंड्रेड मिलियन फॉर हंड्रेड मिलियन यानी दस करोड़ के लिए दस करोड़ का अभियान। कैलाश सत्यार्थी ने दुनिया के दस करोड़ बच्चों को गुलामी और मजदूरी के दलदल से निकालने के इस अभियान के तहत दुनिया के दस करोड़ युवाओं को जोड़ने का अभियान चलाने वाले हैं। दुनिया में इन दिनों करीब 40 फीसदी आबादी युवाओं की है। सत्यार्थी की सोच है कि अगर युवाओं को जगा दिया है और उन्हें बाल अधिकारों के साथ ही बच्चों की समस्याओं के बारे में बताया जाय तो वंचित बच्चों के लिए उनमें कुछ करने का जज्बा पैदा होगा और इस तरह वे युवा वंचित युवाओं के करीब आएंगे और उन्हें मजदूरी और दासता के दलदल से मुक्त कराने में मददगार साबित होंगे। 
 
इस अभियान की शुरूआत दिल्ली में 11 दिसंबर को होने जा रही है। इसके तहत युवाओं को बताया जाएगा कि दुनियाभर के कुछ बच्चे असाधारण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इस दौरान बाल मजदूरी, बाल शोषण और बाल शरणार्थी जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाने की कोशिश की जाएगी। इस अभियान के तहत दुनियाभर के युवा उन बच्चों और उनके अभिभावकों के लिए काम करेंगे, जो अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पा रहे। इस अभियान के तहत सत्यार्थी की कोशिश दुनिया में बदलाव लाने की सोच रखने वाले जुनूनी लोगों को तलाश रहे हैं, जो दुनियाभर के लोगों के दिलों में बच्चों के लिए करुणाभाव पैदा कर सकें। 
 
इस अभियान के तहत दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में दुनियाभर के नोबेल पुरस्कार विजेताओं का दो दिनों का सम्मेलन आगामी 10 और 11 दिसंबर को होने जा रहा है। जिसका नाम लॉरेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट रखा गया है। इस कार्यक्रम के मेजबान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी होंगे। इस कार्यक्रम में दुनियाभर की जानी-मानी हस्तियां शामिल होंगी। जिसमें दलाई लामा, ऑस्ट्रेलिया की पूर्व प्रधानमंत्री जूलिया गेरार्ड, यूनिसेफ के प्रमुख और रेडक्रॉस के प्रमुख आदि शामिल हो रहे हैं। इसके साथ ही कई नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के भी शामिल होने की उम्मीद है। 
 
यहां याद दिला देना समीचीन है कि दस दिसंबर को नोबेले पुरस्कार दिए जाते हैं और इस दिन को मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस सम्मेलन के बाद दस करोड़ के लिए दस करोड़ अभियान को अगले साल यानी 2017 में दस देशों में शुरू किया जाएगा। जिसे 2019 तक साठ से अधिक उन देशों में फैलाने की योजना है, जहां बच्चों की हालत ज्यादा खराब है। कैलाश सत्यार्थी को उम्मीद है कि तब तक उनके इस अभियान के कम से कम चालीस लाख समर्थक दुनियाभर में हो चुकेंगे, जो दुनिया को बदलाव की नई राह दिखाएंगे। 

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