जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग की बातें कहने-सुनने का समय शायद अब निकल चुका है। इस वर्ष भारत में गर्मी से मरने वालों का आंकड़ा 2,200 से अधिक हो चुका है। लू से तपते आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में सूरज की जीवनदायिनी किरणें जानलेवा साबित हो रही हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण अति उग्र अल्ट्रावॉयलेट किरणें और दूसरा कारण ज्यादा समय तक धूप और लू में रहना है। माना जाता है कि इन किरणों का सामान्य स्तर 0 से 7 तक (मापने की वैज्ञानिक विधि) तक रहता है। लेकिन इस समय यह आंध्र, तेलंगाना व ओडिशा में यह स्तर 12 के ऊपर है। जाहिर है यह ओजोन की परत में हुए छेद का परिणाम है।
सिर्फ मौसम बदलना ही जलवायु परिवर्तन नहीं : गर्माती धरती पर आसमान से बरस रही खतरनाक पराबैंगनी (अल्ट्रावॉयलेट) किरणें भी अब इतनी घातक हो चुकी हैं कि 15 के स्तर पर धरती को झुलसा रही हैं, जबकि 10 मानक से ज्यादा का स्तर ही खतरनाक की श्रेणी में रखा गया है। इस अप्रत्याशित गर्मी का कारण है जलवायु परिवर्तन और उसकी वजह से ओजोन परत का क्षरण। धरती के चारों और लिपटी ओजोन सुरक्षा परत भी अब इन अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन को रोकने में कारगर सिद्ध नहीं हो पा रही है।
जमीन से 15 से 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमंडल में पाई जाने वाली ओजोन की परत मनुष्यों और अन्य प्राणियों को सूर्य से निकलने वाली हानिकारक अल्ट्रावॉयलेट (यूवी) किरणों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ओजोन की परत सूर्य से आने वाली तकरीबन 97 से 99 प्रतिशत हानिकारक पराबैंगनी- बी विकिरण को अवशोषित करती है। अगले पन्ने पर खतरे में है पूरी दुनिया...
क्या होती है ओजोन परत : ओजोन के अणुओं (ओ-3) में ऑक्सीजन के 3 परमाणु होते हैं। यह जहरीली गैस है और वातावरण में बहुत दुर्लभ है। प्रत्येक 10 मिलियन अणुओं में इसके सिर्फ 3 अणु पाए जाते हैं। 90 प्रतिशत ओजोन वातावरण के ऊपरी हिस्से या समताप मंडल (स्ट्राटोस्फेयर) में पाई जाती है, जो पृथ्वी से 10 और 50 किलोमीटर (6 से 30 मील) ऊपर है। यही गैस धरती पर अत्यंत जहरीली होती है।
विनाश को आतुर 'हम' : हाल ही में वैज्ञानिकों को ऐसी 4 नई मानव-निर्मित गैसों का पता चला है, जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रही हैं। अध्ययन के अनुसार ये चारों गैसें 1960 तक वायुमंडल में नहीं थीं, जो दर्शाता है कि ये मानव निर्मित गैसें हैं। इनमें से 2 गैसें (विशेषकर सीएफसी-113ए) ओजोन परत को बहुत तेजी से नुकसान पहुंचा रही हैं जिसे लेकर वैज्ञानिक काफी चिंतित हैं। आशंका है कि कीटनाशकों के निर्माण में उपयोग होने वाला कच्चा माल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अवयवों की धुलाई में काम आने वाले विलायक (सॉल्वेंट) इसके संभावित स्रोत हो सकते हैं।
याद रहे यूवी किरणों के प्रत्यक्ष संपर्क से मनुष्यों में कैंसर होता है, यदि इन किरणों के संपर्क में अधिक समय रहें तो मौत भी हो सकती है। प्राणियों व फसलों की प्रजनन क्षमता पर भी इनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। समुद्रीय पारितंत्र में क्षति और मत्स्य उत्पादन में कमी का कारण भी यही है। इसका एक और दुष्प्रभाव है ‘ओवन इफेक्ट’ या अत्यधिक गर्मी उत्पन्न करना। अंटार्कटिका क्षेत्र में बड़े हिमखंड लगातार पिघल रहे हैं, जो तटीय क्षेत्रों में बाढ़ सहित कई खतरे पैदा कर सकते हैं। इसके अलावा बढ़ती गर्मी से समुद्र में भयानक तूफान भी बढ़ेंगे, जो कई महाद्वीपों के मौसम को बदल सकते हैं।
जानलेवा हीटवेव : भारत में गर्मी और लू से मरने वालों का आंकड़ा 2200 पार कर जाने के बाद ब्रसेल्स के सेंटर फॉर रिसर्च ऑन द एपीडीमोलॉजी ऑफ डिजास्टर्स के अनुसार ये दुनिया की अब तक की पांचवीं सबसे खतरनाक हीट वेव है और भारत की दूसरी। मौसम विभाग के मुताबिक आने वाले कुछ और दिनों तक गर्मी और लू का कहर जारी रहेगा। उल्लेखनीय है कि भारत में इससे पहले गर्मी और लू से सबसे ज्यादा 2541 लोगों की 1998 में मौत हुई थी जबकि दुनिया ने सबसे जानलेवा हीट वेव 2003 में झेला था जब अकेले यूरोप में गर्मी से 71 हजार से भी ज्यादा लोगों की जान चली गई थी।
हालांकि ऐसा नहीं है कि ओजोन के संरक्षण के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है। इस मुद्दे पर लगातार चर्चा के बाद मांट्रियल प्रोटोकॉल के अनुसार 16 सितंबर को ओजोन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ ने वर्ष 2015 के पर्यावरण दिवस की विषयवस्तु ‘एक विश्व-एक पर्यावरण’ तय की है। और अपील की है कि ‘सात अरब सपने, एक ग्रह, संभालकर उपभोग करें।” लेकिन इंसान के बेपरवाह रवैये से लगता है कि सात अरब सपने सुखद नहीं, बल्कि दु:स्वप्न साबित होने को हैं...।