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बांग्लादेश से समझौते के दूरगामी फायदे

हमें फॉलो करें बांग्लादेश से समझौते के दूरगामी फायदे
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विभूति शर्मा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने एक वर्ष के अल्प कार्यकाल में अनेक देशों की यात्राएं  कर चुके हैं। अमेरिका-चीन जैसे बड़े देश हों या फिर नेपाल-भूटान जैसे छोट पड़ोसी देश। इनकी यात्राओं में मोदी जी ने प्रशंसा और तालियां तो खूब लूटीं, लेकिन दो दिनी बांग्लादेश यात्रा में उन्होंने जो हासिल किया है, उसके आगे पिछली सारी यात्राओं का हासिल नगण्य है। चीन हमें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय से सीमा विवाद सुलझाने के नाम पर ठेंगा दिखाता आ रहा है। उल्टे पाकिस्तान का साथ देते हुए वह हमारी जमीन हथियाने की फिराक में ही रहता है।
पाकिस्तान और चीन की घनिष्ठता भारत के लिए हमेशा खतरे के संकेत के रूप में देखी जाती है। इसके अलावा चीन हमारे अन्य पड़ोसी मित्रों पर भी डोरे डालता रहता है।  बांग्लादेश भी उनमें शामिल है। लेकिन बांग्लादेश हमारे साथ अपने जन्म के साथ ही सहयोगी रुख अख्तियार करता रहा है। खासतौर पर जब शेख हसीना की सरकार सत्ता में हो। हालांकि इसकी वजह भी साफ है। 1971 में भारत ने ही बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद कराया था। शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के प्रथम शासक बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान का साथ देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को युद्ध के मैदान पर जबरदस्त पटखनी दी थी।  
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बांग्लादेश की पहली यात्रा इस बात की गवाह है कि भारत अपनी ‘लुक ईस्ट और एक्ट ईस्ट’ नीति के तहत बांग्लादेश के साथ संबंधों को कितना महत्व देता है। मोदी की बांग्लादेश की पहली यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच भूमि अदला बदली समझौते के क्रियान्वयन को मंजूरी दी गई। इस ऐतिहासिक समझौते पर 41 वर्ष पूर्व 1974 में इंदिरा गांधी और मुजीबुर्रहमान ने हस्ताक्षर किए थे।
 
इस समझौते को लागू करने पर बनी सहमति के कदम का बांग्लादेश के लोगों ने अभूतपूर्व स्वागत किया है। इसे भारत की मोदी सरकार की बडी उपलब्धि माना जा रहा है। स्वयं मोदी ने ट्‍वीट किया, ‘भूमि सीमा समझौते को मंजूरी प्रदान करने के दस्तावेजों के आदान प्रदान से इतिहास रचा गया।’ बांग्लादेश भूमि सीमा समझौते (एलबीए) पर पिछले महीने भारत की संसद ने सर्वसम्मति से अपनी मुहर लगा दी थी। समझौते के तहत भारत को 500 एकड़ भूमि प्राप्त होगी जबकि बांग्लादेश को 10 हजार एकड़ जमीन मिलेगी।  50 हजार लोगों की नागरिकता का सवाल भी सुलझ जायेगा।
 
भारत और बांग्लादेश के बीच 4,096 किलोमीटर लम्बी सीमा लगती है और यह मुद्दा दोनों देशों के संबंधों में एक बड़ा अड़चन बना हुआ था। इस समझौते के तहत 17160.63 एकड़ के रकबे में फैली 111 बस्तियां बांग्लादेश में जाएंगी और 51 बस्तियां भारत में आएंगी जिनका रकबा 7110. 02 एकड़ है। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच 6.1 किलोमीटर की अचिह्नित सीमा का निर्धारण हो जाएगा। इन बस्तियों के नागरिकों के पास भारत या बांग्लादेश में बसने का विकल्प होगा। इस समझौते को आंकड़ों से नहीं नापा जा सकता।
 
आंकड़ों में यह दिखाई देता है कि बांग्लादेश को ज्यादा जमीन और ज्यादा बस्तियां हासिल हुई हैं।  लेकिन हकीकत में ये वे बस्तियां हैं, जहां मुस्लिम आबादी का घनत्व अत्यधिक है।  जबकि भारत को वे बस्तियां मिलेंगी, जहां हिंदू आबादी ज्यादा है।  इन बस्तियों में नागरिकता का मुद्दा भारत के लिए लगातार सिरदर्द बना रहा है।
 
भारत और बांग्लादेश के बीच दो बस सेवाएं : इस यात्रा की एक और बड़ी उपलब्धि भारत और बांग्लादेश के बीच कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने की पहल के तहत दो बस सेवाओं की शुरुआत होना है। ये बस सेवाएं कोलकाता-ढाका-अगरतला और ढाका-शिलांग-गुवाहाटी के बीच चलेंगी और इनके माध्यम से पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश की राजधानी ढाका होते हुए भारत के पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के साथ जोड़ा जाएगा। इन बस सेवाओं का मकसद पड़ोसी देशों के बीच सम्पर्क बढ़ाकर यहां के लोगों के बीच सम्पर्क को बेहतर बनाना है। कोलकाता-ढाका-अगरतला सेवा शुरू होने से पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा राज्य के बीच की दूरी 560 किलोमीटर कम हो जायेगी। त्रिपुरा तीन ओर से बांग्लादेश से घिरा हुआ है। अभी ढाका-कोलकाता और ढाका-अगरतला के बीच अलग-अलग बस सेवाएं चल रही हैं।
 
भारत और बांग्लादेश रेल सम्पर्क को भी मजबूत बनाने को उत्सुक हैं। विशेष तौर पर 1965 से पूर्व के रेल सम्पर्क को फिर से शुरू करने को लेकर। दोनों देश तटीय पोत परिवहन समझौता भी करने को तत्पर हैं ताकि भारत से बांग्लादेश के विभिन्न बंदरगाहों तक छोटे पोतों के आवागमन की सुविधा तैयार की जा सके जो अभी सिंगापुर होते हुए जाते हैं। बांग्लादेश के बंदरगाहों पर भारतीय जहाजों का पहुंचना आर्थिक रूप से तो फायदेमंद होगा ही साथ ही इससे चीन के पसरते पांवों पर अंकुश लगाना भी संभव हो सकेगा। दरअसल बांग्लादेश के बंदरगाहों के विकास में चीन ने भारी मदद की है।
 
कूटनीतिक रूप से इसे चीन की भारत को घेरने की योजना का हिस्सा माना जाता है। अब भारतीय पोत सीधे बांग्लादेश के बंदरगाहों पर माल ले जा सकेंगे। इससे दोनों देशों के आर्थिक विकास का एक नया अध्याय प्रारंभ होगा। भारत महसूस करता है कि बांग्लादेश के साथ सम्पर्क बढ़ाने से पूर्वोत्तर क्षेत्र का दक्षिण पूर्व एशिया के साथ सम्पर्क बनाने में मदद मिलेगी। 
 
तीस्ता जल बंटवारा समझौता टला : बांग्लादेश के साथ तीस्ता जल बंटवारे का समझौता अभी भी अधर में है। दरअसल तीस्ता जल बंटवारे में ममता बनर्जी अभी भी सहमत नहीं हुई हैं। सितंबर 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की बांग्लादेश यात्रा के दौरान तीस्ता समझौता किया जाना था लेकिन बनर्जी के एतराज के बाद अंतिम समय में इसे टाल दिया गया। इसी कारण से बनर्जी उस वक्त प्रधानमंत्री के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा नहीं बनीं थीं। तीस्ता जल बांग्लादेश के लिए महत्वपूर्ण है खासकर दिसंबर से मार्च की अवधि के दौरान जब जल प्रवाह अस्थायी रूप से 5000 क्यूसेक से घटकर मात्र 1,000 क्यूसेक रह जाता है।
 
बांग्लादेश चाहता है कि तीस्ता से आधा पानी उसे मिलना चाहिए, जबकि ममता बनर्जी इसके लिए तैयार नहीं हैं। इस मामले में ममता अपने राज्य पश्चिम बंगाल के हित को सर्वोपरि रखती हैं, जो स्वाभाविक है। इसके बावजूद नरेंद्र मोदी तीस्ता जल बंटवारे को लेकर आशान्वित हैं। उन्होंने अपने भाषण में कहा भी कि इस मामले को हम राज्यों के साथ चर्चा करके निबटा लेंगे।
 
अगर वृहद परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो मोदी की बांग्लादेश यात्रा अब तक की उनकी विदेश यात्राओं में सर्वाधिक सफल यात्रा है। इसके द्वारा न सिर्फ उन्होंने भारतीय हितों का संवर्धन किया है, वरन कूटनीतिक रूप से भी सफलता हासिल की है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन नापाक कोशिशों को नाकाम करने की ओर कदम बढ़ाया है, तो राष्ट्रीय रूप से विरोधियों का साथ लाने में भी कामयाब हुए हैं। 
 
बांग्लादेश की उनकी समकक्ष शेख हसीना के अलावा इस यात्रा में पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी की उपस्थिति नरेंद्र मोदी की एक बड़ी कूटनीतिक सफलता मानी जाएगी, क्योंकि इसके पूर्व ममता पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के साथ समझौते के लिए बांग्लादेश जाने से इंकार कर चुकी थीं। मोदी ममता के इस साथ पर कांग्रेस भी तिलमिलाई, राहुल गांधी का तंज कसना इसका स्पष्ट उदाहरण है। 
 

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