आप सोच रहे होंगे कि मैंने शीर्षक शायद कुछ गलत लिख दिया है, क्योंकि सही शीर्षक तो 'अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है' होना चाहिए। आज की पीढ़ी के पाठक संभवत: यह भी जानना चाहेंगे कि ये अलबर्ट पिंटो कौन है?
दरअसल, 1980 में नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी और स्मिता पाटिल जैसे मंजे हुए कलाकारों की एक फिल्म आई थी। जिसका नाम था- 'अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है'। उस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह ने एक गुस्सैल युवा की भूमिका निभाई थी। यह फिल्म कई मंचों पर सम्मानित और पुरस्कृत हुई थी।
इस फिल्म की याद मुझे 6 अगस्त को नई दिल्ली में हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के टाउन हॉल कार्यक्रम से आई। इसमें प्रधानमंत्री ने गोरक्षा के नाम पर तांडव करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि मुझे ऐसे लोगों पर 'गुस्सा' आता है। ठीक बात है। जिस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने गुस्सा आने वाली बात कही है, उस पर गुस्सा आना ही चाहिए। और गुस्सा आना ही काफी नहीं है, बल्कि उसे जताया भी जाना चाहिए। लेकिन मेरा सवाल तो यह है कि 'अलबर्ट पिंटों को गुस्सा क्यों नहीं आता' आप चाहें तो इसे यूं भी कह सकते हैं कि 'राजा को या नेता को गुस्सा क्यों नहीं आता?'
दरअसल, हमारे यहां नेतृत्व के जिन आवश्यक गुणों का जिक्र किया गया है, उनमें राजा का शांत या 'कूल' रहना जरूरी है। ऐसा इसलिए कि वह गुस्से में आकर कोई ऐसा फैसला न कर बैठे जिसके कारण सत्ता या सिंहासन को, राज्य को या प्रजा को कोई नुकसान उठाना पड़े।
और शायद यही कारण है कि आज का राजा यानी नेता आमतौर पर गुस्सा नहीं करता। वह विषम या विपरीत परिस्थिति पर भी 'रिएक्ट' करने से पहले उन सारी संभावनाओं या आशंकाओं का आकलन करता है, जो उसके गुस्सा करने से पैदा हो सकती हैं।
अब जरा मेरी इस बात को प्रधानमंत्री के उस कथन के संदर्भ में देखिए, जो उन्होंने टाउन हॉल में कहा। प्रधानमंत्री को सत्ता में आने के करीब ढाई साल बाद गुस्सा आया। देश में उनकी ही पार्टी की कई जगहों पर सरकारें हैं और कई जगहों पर भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ सरकार में है। इन राज्यों में कथित 'गोरक्षकों' ने दर्जनों बार ऐसे तांडव किए होंगे, लेकिन वहां के मुख्यमंत्रियों को तो कभी गुस्सा नहीं आया।
ऐसा भी नहीं है कि गोरक्षकों के काले कारनामों वाला 'तत्वज्ञान' केवल प्रधानमंत्री को ही हुआ होगा। सभी जानते हैं कि ये कौन लोग हैं और इनका असली मकसद क्या है और इन्होंने गोरक्षक होने का चोला क्यों ओढ़ रखा है? लेकिन चूंकि 'रक्षकों' की यह 'भक्षक' फौज दरअसल बहुत काम की है इसलिए किसी को इन पर गुस्सा नहीं आता।
पार्टी और सरकार दोनों जानते हैं कि इन रक्षक उर्फ भक्षकों का कब, कहां और कैसे इस्तेमाल करना है। और जब कोई व्यक्ति या समूह सत्ता प्राप्ति में सहायक हो तो उस पर गुस्सा कैसे किया जा सकता है? यानी राजा इसलिए गुस्सा नहीं करता, क्योंकि उसे मालूम है कि इस मामले पर उसका गुस्सा करना सत्ता और सिंहासन के लिए खतरनाक हो सकता है। और यह 'अगुस्सा' न तो 'गोरक्षकों' के मामले तक सीमित है और न ही ऐसे लोगों के खिलाफ चुप्पी की इस प्रवृत्ति पर किसी राजनीतिक दल का एकाधिकार है। हरेक राजनीतिक दल के अपने-अपने 'गोरक्षक गिरोह' हैं, जो समय-समय पर बड़े काम आते हैं।
सरकारें या राजनीतिक दल ऐसे 'स्व-सहायता समूह' जान-बूझकर खड़े करते हैं या खड़े होने देते हैं। आर्थिक क्षेत्र के 'स्व-सहायता' समूहों से ये समूह इस मायने में अलग होते हैं कि इनमें जमा होने वाली 'पूंजी' प्रजा के नहीं, बल्कि राजा के काम आती है। लेकिन चूंकि अब सम्राट ने ही कह दिया है कि उन्हें ऐसे लोगों पर और उनकी हरकतों पर 'गुस्सा' आता है, तो देखना होगा कि बाकी राजे-रजवाड़ों और जागीरदारों को गुस्सा आता है या नहीं।
चाणक्य ने कहा था कि 'राजा के गुस्से से यदि किसी की हानि न हो और राजा की प्रसन्नता से किसी का लाभ न हो तो राजा का गुस्सा करना या प्रसन्न होना दोनों व्यर्थ हैं।' इसलिए अब निगाहें इस पर पर टिकी रहेंगी कि राजा के गुस्से का कहर समाज विरोधियों पर टूटता है या नहीं।
प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों से कहा है कि ऐसे लोगों की कुंडली या कच्चा चिट्ठा तैयार करें। मेरे हिसाब से इसके लिए अलग से कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जैसे हरिद्वार, गया आदि जगहों पर बैठने वाले पंडों के पास 7 पुश्तों की जानकारी उपलब्ध होती है, वैसे ही अलग-अलग दलों के 'पंडों' के पास ऐसे सारे लोगों की कुंडली पहले से ही मौजूद होगी। बस, जरा-सा उन पंडों को टाइट करने की देर है, वे सारा पोथी-पत्रा लेकर दौड़े चले आएंगे।
खतरा बस एक ही है कि इनमें कई सारे पंडे ऐसे होंगे, जो अपने ही कुल या वंश के निकलेंगे। ऐसे में फैसला आपको ही करना होगा कि 'राव राजा' कहकर आपकी वंशावली गाने वाले इन लोगों से कैसा सलूक किया जाए। यह खतरा यदि आप उठाने को तैयार हों, तो आपके गुस्से का कोई मतलब निकलेगा, वरना आजकल सिर्फ नथूने फुलाने से कोई नहीं डरता...!