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राजनीति में कॉलेज की डिग्री कितनी जरूरी

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अनवर जमाल अशरफ

अब्राहम लिंकन को अमेरिका का सबसे कामयाब राष्ट्रपति माना जाता है। लिंकन ने दास प्रथा खत्म किया था। वे कम पढ़े-लिखे थे और उनके पास कोई डिग्री नहीं थी, लेकिन लिंकन की राजनीतिक समझबूझ इससे कभी प्रभावित नहीं हुई। लिंकन के लगभग 100 साल बाद अमेरिका ने हैरी ट्रूमन के रूप में अगला राष्ट्रपति देखा, जिसके पास कॉलेज की डिग्री नहीं थी। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री पर उठे विवाद के बीच यह बहस भी उचित है कि क्या राजनीतिक नेतृत्व के लिए कम से कम कॉलेज की पढ़ाई जरूरी है।
अमेरिका में राष्ट्रपति बनने के लिए कोई डिग्री अनिवार्य नहीं, लेकिन ट्रूमन को छोड़कर पिछले 100 सालों में सभी राष्ट्रपतियों ने स्नातक या इससे ज्यादा की पढ़ाई की। पिछले साल जब स्कॉट वॉकर का नाम रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर उछला, तो फिर से डिग्री को लेकर विवाद हुआ। विस्कॉन्सिन के गवर्नर स्कॉट स्नातक नहीं हैं और विरोधियों ने इस मुद्दे पर उन्हें घेरने की कोशिश की।
 
हालांकि इस बीच डोनाल्ड ट्रंप ने रिपल्बिकन पार्टी के उम्मीदवारों को किनारे कर दिया है और स्कॉट तो बहुत पहले ही रेस से अलग हो चुके हैं। जहां तक भारत का सवाल है, चुनावों में डिग्री से ज्यादा सामाजिक व्यक्तित्व महत्वपूर्ण होता है। भारत में सिर्फ 74 फीसदी लोग साक्षर हैं और दस्तखत कर लेने भर को साक्षरता का पैमाना माना जाता है। वास्तविक साक्षरता का स्तर निश्चित तौर पर इससे कम होगा। ऐसे में सभी नेताओं का पढ़ा लिखा होना संभव नहीं है।
 
एम. करुणानिधि और जयललिता के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी बिना डिग्री वाले नेताओं में शामिल हैं। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के मुताबिक राजीव गांधी ने एक इंटरव्यू में माना था कि वे कैम्ब्रिज की कॉलेज परीक्षा में फेल हो गए थे। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और एचडी देवेगौड़ा भी बहुत ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे।
 
क्या डिग्री वाले बेहतर हैं : भारतीय राजनीति में डिग्री या पढ़ाई लिखाई को राजनीति में प्रवेश का पैमाना नहीं बनाया जा सकता। लेकिन अमेरिका में इसे लेकर दिलचस्प चर्चा हो रही है। डिबेट डॉट ओआरजी ने बहस कराई कि क्या सिर्फ कॉलेज डिग्री वालों को ही राजनीति में आने की इजाजत मिलनी चाहिए। ख्याल रहे कि अमेरिका में लगभग 98 प्रतिशत लोग साक्षर हैं और 15 साल से ज्यादा उम्र के 32 प्रतिशत लोगों के पास कॉलेज की डिग्री है।
 
बहरहाल इस बहस के आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिले। डिबेट डॉट ओआरजी में 58 फीसदी लोगों का मानना है कि राजनीति में जाने के लिए कॉलेज की डिग्री होनी चाहिए। ऐसे की एक मत में भारतीय राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का उदाहरण दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि कलाम के महान राष्ट्रपति बनने के पीछे उनका असाधारण ज्ञान भी था। 
 
इस बहस में तर्क दिए गए हैं कि आधुनिक विश्व में राजनीतिक नेतृत्व करने वालों को विषयों की व्यापक समझ होनी चाहिए, जो पढ़ाई यानी डिग्री से ही संभव है। डिग्री को जरूरी नहीं मानने वाले लोगों का कहना है कि नेतृत्व करने वाले का मुख्य काम समाज की सेवा करना है, जिसके लिए शिक्षा से जरूरी दूरदर्शिता और संकल्प की जरूरत पड़ती है।
 
सफलता का पैमाना पढ़ाई नहीं : कॉलेज की पढ़ाई को सफलता का पैमाना नहीं बनाया जा सकता। भारत में धीरुभाई अंबानी से लेकर अमेरिका के स्टीव जॉब्स और बिल गेट्स तक के पास कॉलेज की डिग्री नहीं है। पर वे बेहद सफल रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि वे सार्वजनिक जीवन में नहीं रहे हैं और उनकी किसी के प्रति जिम्मेदारी नहीं बनती। जनता, सरकार और राष्ट्र का नेतृत्व करने वाले नेताओं की जिम्मेदारी अलग होती है। उनका निजी जीवन सीमित होता है और इसलिए उनसे सवाल भी ज्यादा पूछे जाते हैं।
 
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक मुश्किल यह भी है कि वे सक्रिय राजनीति में बहुत बाद में आए। आमतौर पर राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोग छात्र जीवन से ही राजनीति करने लगते हैं और कॉलेज यूनिवर्सिटी के चुनावों में हिस्सा लेते रहते हैं। लालू यादव, अरुण जेटली, सीताराम येचुरी और नीतीश कुमार जैसे उदाहरण हैं, जो कॉलेज के जमाने से राजनीति कर रहे हैं। लेकिन मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे और उस काल के उनके जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा रहस्यों से भरा है। इसमें उनकी पढ़ाई भी शामिल है।
 
डिग्री पर गर्व :  जवाहरलाल नेहरू और मनमोहनसिंह जैसे पढ़े लिखे प्रधानमंत्रियों की डिग्री कभी संदेह के घेरे में नहीं रही। पंजाब यूनिवर्सिटी ने तो बार-बार कहा कि उन्हें इस बात का गर्व है कि मनमोहन सिंह ने उनके यहां पढ़ाई की थी। अमेरिका में हार्वर्ड और स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी भी इस बात को गौरव के साथ बताती हैं कि फलां राष्ट्रपति ने उनके यहां पढ़ाई की थी, लेकिन मोदी के साथ ऐसा नहीं हो पाया। कोई भी यूनिवर्सिटी उन्हें यह सम्मान देती नजर नहीं आई। ऊपर से बीजेपी ने जिन डिग्रियों को असली कह कर पेश किया, उन पर भी सवाल उठ रहे हैं।
 
प्रधानमंत्री बनने के लिए डिग्री अनिवार्य नहीं। लेकिन यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हलफनामे में दी गई जानकारी गलत न निकले। शादी के मुद्दे पर मोदी एक बार फंस चुके हैं। अब डिग्री को लेकर वे दोबारा नहीं फंसना चाहेंगे। खासकर तब, जब इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं।

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