इमरान खान और उनकी पूरी सरकार ने भरसक छाती पीटी दुनिया में भारत को बदनाम करने के लिए किंतु किसी ने उसकी नहीं सुनी। पाकिस्तान से गुजर रहे अपने रोड प्रोजेक्ट के कारणों से चीन को उसका साथ देना पड़ा किंतु उतना ही जितना एक बिलखते बच्चे को झुनझुना देकर चुप कराने की कोशिश की जाती है।
ट्रंप तो कभी झुनझुना देते हैं तो कभी डंडा दिखाते हैं। वे स्वयं भ्रमित हैं कि उन्हें करना क्या है? जब भारत का साथ देना था तो इमरान को डांटकर बोल दिया कि विलाप बंद करो और अपने आंतकियों को लगाम दो और जब उन्हें अफगानिस्तान में पाकिस्तान की मदद चाहिए तो मध्यस्थता का प्रस्ताव दे दिया। बस उस प्रस्ताव को लेकर पाकिस्तान झुनझुना बजाने लगा।
रूस और जापान के सामने हाथ फैलाना मतलब अपना सिर दीवार पर फोड़ना था अत: पाकिस्तान ने रूस और जापान की तरफ तो देखा भी नहीं। फ्रांस के साथ उसने जरूर कोशिश की किंतु उलटे फ्रांस ने तो संयुक्त राष्ट्र संघ की रक्षा समिति के बंद दरवाजा बैठक में पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया। फ्रांस समेत सभी देशों ने तो उसका ऐसा बुरा हाल किया कि अब पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ में आवाज उठाने की बातें करना भी बंद कर दीं।
फ्रांस के साथ भारत की घनिष्ठता बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। विशेषतौर से राफेल सौदे पर विपक्ष के बेहूदा आरोपों से सरकार ने जिस तरह फ्रांस और उसकी कंपनी का बचाव किया, उससे फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉन के निमंत्रण पर हुई मोदी की शासकीय यात्रा पूरी हो चुकी है, जहां रक्षा सहयोग पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। रक्षा के साथ नौवहन क्षेत्र, अंतरिक्ष सहयोग, सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने पर चर्चा हुई। फ्रांस के साथ उन्नत तकनीक वाली जैतापुर परमाणु संयंत्र परियोजना को आगे बढ़ाने पर भी चर्चा हुई।
इन बढ़ते सहयोगों के बीच पाकिस्तान, फ्रांस से थोड़ी भी सहानुभूति प्राप्त नहीं कर सका। अब पाकिस्तान को उम्मीद बची थी सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से। वह भी किसी और कारण से नहीं वरन इस्लाम के नाम पर। तो आइए वहां उसका क्या हश्र हुआ? वह भी देख लेते हैं। हाल ही में सऊदी अरब की एक बड़ी सरकारी कंपनी 'अरामको' ने रिलायंस से जो सौदा किया है, उसकी धनराशि देखकर ही पाकिस्तान सकते में है। 'अरामको' ने रिलायंस की एक ग्रुप कंपनी के केवल 20 प्रतिशत शेयर खरीदने के लिए 75 बिलियन डॉलर देने की घोषणा कर दी है।
अब सोचने की बात है कि मात्र 6 बिलियन डॉलर के ऋण के लिए पाकिस्तान ने अपनी पूरी नाक अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्था के सामने रगड़ दी और दूसरी तरफ भारत की एक कंपनी का एक भाग ही 75 बिलियन डॉलर का निवेश लेकर आ गया! जाहिर है सऊदी अरब की सरकार जब इतना बड़ा निवेश भारत में कर रही है तो निश्चित ही वह भारत को एक बड़े बाजार के रूप में देख रही है और उसे भारत के साथ मित्रवत संबंध चाहिए। इसीलिए उसने भी पाकिस्तान के रुदन को अनसुना कर दिया।
अब बात करें संयुक्त अरब अमीरात की, जो कभी पाकिस्तान के निकट हुआ करता था। यह मोदी सरकार की कूटनीति का ही कमाल है कि उसने आर्टिकल 370 को भारत का घरेलू मसला बताकर अपने हाथ झाड़ लिए। ऊपर से 24 अगस्त, शनिवार को मोदी को अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'आर्डर ऑफ शेख जायेद' से सम्मानित भी कर दिया! यहां मोदी की शाही परिवार के वरिष्ठ सदस्यों (जिनके पास महत्वपूर्ण मंत्रालय हैं) के साथ द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और परस्पर हित के वैश्विक मुद्दों पर व्यापक चर्चा हुई। मोदी के व्यक्तिगत प्रयासों से यूएई भारत का घनिष्ठ मित्र बन चुका है। यहां पाकिस्तान की अब कोई पूछ ही नहीं है।
यहां से प्रधानमंत्री 24 अगस्त को खाड़ी के एक अन्य देश बहरीन पहुंचे, जो कि इस देश की भारत के किसी प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी। बहरीन में मोदी ने युवराज शेख खलीफा बिन सलमान अल खलीफा के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की। बाद में बहरीन के शेख हमद बिन ईसा अल खलीफा ने मोदी के सम्मान में एक रात्रिभोज का आयोजन किया। यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने बहरीन की राजधानी मनामा में श्रीनाथजी के प्राचीन मंदिर के पुनरुद्धार कार्य का शुभारंभ भी किया।
अब देखिए, यूएई में अक्षरधाम मंदिर और बहरीन में श्रीनाथजी के मंदिर का काम आरंभ हो चुका है। दूसरी तरफ कश्मीर और पाकिस्तान में अतिवादियों ने कितने ही मंदिरों को गिरा दिया है। ऊपर से इमरान का बेबुनियाद आरोप है कि कश्मीर में किसी संप्रदाय विशेष को हानि पहुंचाना मोदी सरकार का उद्देश्य है। तथ्य तो कुछ अलग बोलते हैं। कश्मीर से किस संप्रदाय को धकेला गया, यह विश्व जानता है। ऐसे में इमरान और पाकिस्तान सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं, तो फिर विश्व में उसे क्योंकर समर्थन मिलने लगा?
बहरीन से पीएम मोदी फ्रांस के बियारेत्ज में 45वें जी-7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। जहां वे मेहमान के तौर पर आमंत्रित हैं और विभिन्न विषयों पर अपनी बात रखेंगे। दूसरी तरफ भारत की नजरें रहेंगी उनकी ट्रंप के साथ मुलाकात पर। मोदी सरकार हाल ही के चुनावों में और अधिक मजबूत होकर बनी है, वहीं ट्रंप की स्थिति अगले वर्ष के चुनावों के लिए कमजोर दिख रही है। ऐसे में मोदी का आत्मविश्वास ट्रंप से कहीं अधिक होगा और लगता है कि वे एक-दो बात मोदी की जरूर सुनेंगे।
पाकिस्तान के सामने अब बचा कौन? उत्तरी कोरिया जिसके साथ उसका 'ठगी का बंधन' है। यदि उत्तरी कोरिया कुछ आवाज करेगा तो पाकिस्तान के दिन और बुरे आ जाएंगे। अत: पाकिस्तान के लिए बेहतर है कि वह अपने काम से काम रखे, अपने घर को आतंक से मुक्त करे, अपनी वित्तीय स्थिति को ठीक करे और कश्मीर से अपना ध्यान हटाकर बलूचिस्तान पर लगाए अन्यथा पीओके तो जाना ही है, बलूचिस्तान का भी कोई भरोसा नहीं।