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मनुष्य की अनंत जिज्ञासा ने पहुँचा दिया उसे प्लूटो तक

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शरद सिंगी

इस सदी की महत्वपूर्ण घटनाओं में शुमार होने वाली एक घटना जुलाई माह में हुई जब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का विमान हमारे सौरमंडल के अंतिम छोर प्लूटो तक सफलतापूर्वक पहुँच गया और वहाँ से सूचनाएँ एकत्रित कर प्रेषित करना आरम्भ कर दिया।
 
यान का प्लूटो तक पहुंचना एक बहुत बड़ी मानवीय वैज्ञानिक उपलब्धि है। आइए, इस घटना की ब्योरेवार और विस्तार से चर्चा करें। एक दशक पूर्व तक प्लूटो हमारे सौरमंडल का अंतिम ग्रह माना जाता था। हमारे सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह होने की वजह से यह बच्चों और विद्यार्थियों में बड़ा लोकप्रिय था किन्तु सन 2006 में स्थापित मान्यताओं को एक बड़ा झटका लगा जब खगोल वैज्ञानिकों ने प्लूटो से ग्रह होने का दर्जा छीन लिया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वैज्ञानिकों ने प्लूटो जितने बड़े कुछ और पिंड हमारे सौर मंडल में खोज लिए थे।
 
यदि प्लूटो के ग्रह का दर्जा बरकरार रखना था तो अन्य पिंडों को भी नौ ग्रहों के साथ जोड़ना पड़ता। इसलिए सौरमंडल के ग्रहों की एक नई परिभाषा तय की गई। प्लूटो के साथ अन्य पिंड भी इस परिभाषा में  खरे नहीं उतरते। इस तरह प्लूटो हमारे नवग्रहों में से बाहर हुआ और पृथ्वी को मिलाकर हमारे सौरमंडल में आठ ग्रह ही बचे। 
 
प्लूटो के जात बाहर होने के बाद भी खगोल शास्त्रियों की रुचि उसमें बनी रही। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने प्लूटो के बारे में अधिक जानकारी एकत्रित करने के लिए एक अंतरिक्ष अभियान 'न्यू होराइजन' के नाम से आरम्भ किया। इस अभियान का यान साढ़े नौ वर्षों तथा लगभग 6 अरब किलोमीटर की लम्बी यात्रा करके पहुँचा प्लूटो के समीप। वह भी तब जब यह यान 50000 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ रहा है।
 
गति का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रक्षेपण के बाद मात्र 9 घंटे में वह चन्द्रमा के पार निकल गया था। इस यान ने मानवता को पहली बार प्लूटो के दर्शन बहुत निकट से करवा दिए। यान से पृथ्वी की दूरी का अंदाज़ इसी बात से लग जाता है कि यान से कोई भी सिग्नल पृथ्वी तक पहुँचने में साढ़े चार घंटे का समय लग रहा था। 
 
उल्लेखनीय है कि प्लूटो पृथ्वी के आकार के पांचवे हिस्से के बराबर है और हमारे चन्द्रमा से भी छोटा है किन्तु हैरत की बात यह है कि यह ग्रह पाँच चंद्रमाओं का मुखिया है याने इस क्षुद्र (बौने) ग्रह के आसपास पाँच चन्द्रमा परिक्रमा कर रहे हैं। अभी तक प्लूटो एक निष्क्रिय ग्रह माना जाता रहा है क्योंकि इसका तापमान शून्य से 400 डिग्री से कम है और पृथ्वी पर लगे टेलिस्कोप से वह एक बर्फ के गोले से अधिक कुछ नहीं दिखता था। परन्तु जब खगोल वैज्ञानिकों ने यान द्वारा नज़दीक से लिए गए फोटो देखे तो उन्हें एक अद्भुत नज़ारे की दावत मिली। हिमगिरि की श्रृंखला और ग्लेशियर दिखे। पानी से बने बर्फ के पर्वत और जमे पानी की मोटी परत के आवरण की संभावना देखी। मृत या निष्क्रिय ग्रह पर यह सब निर्माण संभव नहीं है। पहाड़ों का निर्माण भूभौतिकीय गतिविधियों के बिना संभव नहीं है।  याने यह ग्रह जीवंत है।
 
अब वैज्ञानिकों का सिर दर्द कर रहा है कि प्लूटो को सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा तो लगभग नगण्य है तो फिर सतह परिवर्तन के लिए ऊर्जा का दूसरा क्या स्रोत है? शायद पृथ्वी की तरह इसका गर्भ भी दहक रहा है और वहीं से प्लूटो को ऊर्जा मिल रही है अपनी सतह पर बदलाव करने की।  
 
प्लूटो की अपनी एक छोटी सी ग्रह व्यवस्था है जिसमें वह स्वयं और उसके पाँच चन्द्रमा हैं। सबसे बड़ा चन्द्रमा कैरन प्लूटो के आकार का आधा है। अपने आकर के हिसाब से प्लूटो के पास जो चन्द्रमा है वह सौरमंडल के किसी अन्य ग्रह के पास नहीं। पृथ्वी के 248 वर्षों के बराबर उसका एक वर्ष है क्योंकि सूर्य से इतना दूर होने से उसे सूर्य की परिक्रमा करने में इतना समय लग जाता है। 156 घंटों का एक दिन होता है। गुरुत्वाकर्षण कम होने से यहाँ पर 100 किलो के आदमी का वज़न मात्र 7 किलो ही रहेगा। 
 
इस अभियान में जितनी सूचनाएँ एकत्रित हुई हैं उनका विश्लेषण करने में अभी कई माह लगेगें और प्लूटो के बारे में अनेक भ्रांतियाँ दूर होंगी। प्लूटो अपना खोया हुआ दर्जा पुनः प्राप्त कर पाएगा  या नहीं इस प्रश्न पर सभी की निगाहें रहेगी। यान में अभी भी ईंधन शेष है और वह प्लूटो से आगे निकल चुका है एक ऐसे संसार में जिसके बारे में हमें अधिक जानकारी नहीं है।
 
इसे क्विपर क्षेत्र कहते हैं जो छोटे छोटे पिंडों और धूमकेतुओं का इलाका माना जाता है। इन सभी अंतरिक्ष अभियानों का उद्देश्य हमारे ब्रह्मांड की उत्पत्ति और संरचना का ज्ञान पाना है। ब्रह्मांड की तरह ही यह ज्ञान यात्रा लम्बी और अनंत है। मनुष्य की जिज्ञासाओं का भी कोई अंत नहीं। जितने नए रहस्य खुलेंगे उनसे कई और नए रहस्य प्रकट होने के दरवाजे खुलेंगे। ज्ञान के आगे ज्ञान का विस्तार है और उसके आगे भी ज्ञान है और इनको पाने का कोई सहज उपाय भी नहीं। 50000 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार भी इस ज्ञान यात्रा में नगण्य लगती है किन्तु प्रत्येक चरण में अर्जित ज्ञान अगले चरण का मार्गदर्शन करेगा।  

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