- अनिल अनूप
वेश्यावृत्ति के पीछे सबसे बड़ा कारण क्या है, तो अधिकांश लोगों का जवाब होता है- यौन इच्छा। यदि आपका भी यही जवाब है, तो हम आपके सामने जो तथ्य प्रस्तुत करने जा रहे हैं, उन्हें पढ़ने के बाद आपका जवाब निश्चित तौर पर बदल जाएगा।
सेक्स वर्कर्स के पुनर्वास के लिए 2010 में दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इस पैनल का गठन किया था। 24 अगस्त 2011 के अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने पैनल की बैठकों में राष्ट्रीय महिला आयोग को भी हिस्सा लेने का निर्देश दिया था।
इस पैनल को अनैतिक मानव तस्करी (रोकथाम) अधिनियम 1956 (आईटीपीए) में कुछ संशोधनों का सुझाव देना है, ताकि देश में रहने वाले सेक्स वर्कर संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीवन-यापन कर सकें।
अखबारों, टीवी या न्यूज वेबसाइटों पर अक्सर आप सेक्स रैकेट के खुलासों की खबरें पढ़ते होंगे, जिनकी हेडलाइन कुछ ऐसी होती हैं- 'ब्यूटी पार्लर में चल रहा था देह व्यापार', 'आईएएस के घर पर सेक्स रैकेट', 'मुंबई की रेव पार्टी में हाई प्रोफाइल वेश्याएं गिरफ्तार...' ऐसी खबरें, आप ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते तक याद रखते होंगे।
राष्ट्रीय एड्स कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसारद, मुंबई देश की सबसे बड़ी सेक्स इंडस्ट्री है। यहां पर 2 लाख से ज्यादा वेश्याएं हैं। सबसे खतरनाक बात यह है कि यहां 50 फीसदी से अधिक वेश्याएं एचआईवी से ग्रसित हैं। वर्ष 2013 में मुंबई में वेश्याओं की संख्या 165000 लाख थी। यह संख्या हर साल 10 फीसदी की दर से बढ़ रही है। देह व्यापार के मामले में कोलकाता दूसरे नंबर पर है। ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, मुंबई एशिया की सबसे बड़ी सेक्स इंडस्ट्री है।
भारत में वेश्यावृत्ति का चलन आज का नहीं बल्कि सदियों से चला आ रहा है। प्राचीन भारत में 'नगरवधु' हुआ करती थीं। दूसरीं सदी में ईसा पूर्व में लिखी गई संस्कृत की कहानी 'मृचाकाटिका' में वैशाली की नगरवधु इसी काम के लिए जानी जाती है।
17वीं और 16वीं सदी में गोवा में पुर्तगाली कॉलोनी हुआ करती थी। यहां पर जापानी दासियां हुआ करती थीं, जिनमें अधिकांश जापान की महिलाएं व कम उम्र की लड़कियां होती थीं, जिन्हें दासी बनाकर उनके साथ सेक्स किया जाता था। पुर्तगाली व्यापारी इन लड़कियों को जापान से पानी के जहाज में भारत लाते थे। यही कारण है कि सदियों से गोवा देह व्यापार का गढ़ बना हुआ है।
19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में अंग्रेज यूरोप और जापान से लड़कियों को लेकर आने लगे और भारत में काम कर रहीं अंग्रेजों की सेनाओं में सैनिकों को यौन सुख पहुंचाने का दबाव डालने लगे। ये वेश्याएं सैनिकों को यौन सुख प्रदान करती थीं। यह भी एक बड़ा कारण है कि हजारों की संख्या में भारतीय लोग अंग्रेजी सेना में यौन सुख के लालच में भर्ती हुए।
20वीं सदी के आते-आते क्रूर अंग्रेजों ने भरतीय लड़कियों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया। यूरोप से आईं वेश्याएं जब अपनी सेवाएं देने में अक्षम हो जातीं, तो उन्हें छावनी में सैनिकों की सेवा करने व उनके लिए भोजन पकाने के लिए तैनात कर दिया जाता।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की 2007 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 30 लाख से ज्यादा फीमेल सेक्स वर्कर हैं, जिनमें 35.47 सेक्स वर्कर 18 साल की आयु से पहले ही वेश्या बन गईं। वहीं ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट ने और भी खतरनाक आंकड़े प्रस्तुत किए। इस रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत में 2 करोड़ सेक्स वर्कर हैं। जिनमें सिर्फ मुंबई में ही 2 लाख हैं 1997 से 2004 के बीच वेश्याओं की संख्या में 50 फीसदी इजाफा हुआ।
एचआईवी संक्रमित हो रहा सूरत : एड्स कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात का सूरत शहर तेजी से एचआईवी की चपेट में आ रहा है। 2002 में यहां पर कुल वेश्याओं में 17 प्रतिशत एचआईवी से ग्रसित थीं, वहीं यह सन् 2012 में बढ़कर 43 प्रतिशत हो गईं। 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई 2013 में यहां की कुल वेश्याओं में 58 फीसदी एचआईवी संक्रमित पाई गईं यानी सूरत में वेश्यावृत्ति के जाल में फंसने का मतलब एड्स को न्योता देनाl
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के बॉर्डर पर एक के बाद एक गांव व कस्बे हैं, जहां वेश्यावृत्ति का व्यापार फलफूल रहा है। इन इलाकों को 'देवदासी बेल्ट' भी कहा जाता है।
देश का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया कोलकाता का सोनागाछी इलाका है। दूसरे नंबर पर मुंबई का कमाठीपुरा, फिर दिल्ली की जीबी रोड, आगरा का कश्मीरी मार्केट, ग्वालियर का रेशमपुरा, पुणे का बुधवर पेट हैं। इन स्थानों पर लाखों लड़कियां हर रोज बिस्तर पर परोसी जाती हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत सेक्स टूरिज्म के बड़े स्पॉट माने जाते हैं। इनके अलावा अगर 2-टियर व 3-टियर शहरों की बात करें तो वाराणसी का मडुआडिया, सहारनपुर का नक्कासा बाजार, मुजफ्फरपुर का चतुर्भुज स्थान, आंध्रप्रदेश के पेड्डापुरम व गुडिवडा, इलाहाबाद का मीरागंज, नागपुर का गंगा जुमना और मेरठ का कबाड़ी बाजार इसी काम के लिए फेमस हैं।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि देश में 12 लाख से ज्यादा बच्चियां वेश्यावृत्ति के कार्य में लिप्त हैं। यह खुलासा देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो की रिपोर्ट में हुआ, जो मई 2009 में प्रकाशित की गई।
10 करोड़ महिलाएं वेश्यावृत्ति में लिप्त : सीबीआई की रिपोर्ट, जिसे गृह सचिव मधुकर गुप्ता ने जारी किया, उसके अनुसार, देश में 10 करोड़ महिलाएं वेश्यावृत्ति में फंस चुकी हैं। इनमें 40 फीसदी बच्चियां शामिल हैं। सीबीआई की रिपोर्ट 2012 के अनुसार, देश में देह व्यापार में लिप्त लड़कियों में से 90 प्रतिशत तो देश के अंदर ही एक कोने से दूसरे कोने में ले जाकर बेच दी जाती हैं।
देवस्थानों पर बढ़ रही वेश्यावृत्ति : सीबीआई की रिपोर्ट 2012 के अनुसार, देश के तमाम देवस्थानों पर जहां लाखों की संख्या में तीर्थयात्री ईश्वर के विभिन्न रूपों के दर्शन करने आते हैं, वहां पर वेश्यावृत्ति तेजी से बढ़ रही है। यह चलन वर्ष 2012 के बाद से तेजी से बढ़ा है। तत्कालीन गृह सचिव मधुकर गुप्ता के अनुसार, सीबीआई अभी तक आंकड़े नहीं जुटा पाई है कि कितनी लड़कियां देवस्थानों के आसपास बने होटलों, धर्मशालाओं व गेस्ट हाउस में अपनी सेवाएं दे रही हैं।
सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि हमारे देश के कई हिस्सों में वेश्यावृत्ति को बढ़ावा देने वाली कई प्रथाएं चली आ रही हैं। उदाहरण के तौर पर बंगाल की चुकरी प्रथा ही ले लीजिए, जिसके अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति कर्ज चुकाने में नाकाम रहता है, तो उसके परिवार की महिलाओं को अपना शरीर देकर कीमत चुकानी होती है। इसके अंतर्गत एक साल तक लड़की को वेश्या के रूप में मुफ्त में काम करना होता है। इसके लिए सन् 1976 में सरकारी कानून आया, जिसके अंतर्गत तब से अब तक करीब 2,850,000 महिलाओं को कर्ज चुकाकर छुड़ाया जा चुका है।
वेश्यावृत्ति का एक और कड़वा सच यह है कि जब परिवार में आय के साधन बंद हो जाते हैं, तब परिवार की सबसे बड़ी लड़की यह राह चुनती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, वेश्यावृत्ति में आने वाली महिलाओं में 22 फीसदी सिर्फ इसी कारण इस धंधे में आईं।
नेपाल की एनजीओ मैती की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 2 लाख नेपाली लड़कियां देह व्यापार में लिप्त हैं। इनमें से अधिकांश 14 साल की उम्र से कम हैं।
एनजीओ मैती की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लोगों में नेपाल से लाई गईं वर्जिन लड़कियां ज्यादा पसंद की जाती हैं। उनके दाम भी काफी ऊंचे लगते हैं। यही कारण है कि नेपाल से लड़कियों को बहला-फुसलाकर या अगवा कर भारत लाए जाने का चलन बढ़ रहा है।
1988 में ऑल बंगाल विमेन यूनियन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में लड़कियों के वेश्यावृत्ति में आने के कारणों का खुलासा किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, 5.1 फीसदी महिलाएं माता-पिता के कहने पर इस धंधे में आईं। सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, 13.8 प्रतिशत लड़कियां दोस्तों के चक्कर में पड़कर वेश्यावृत्ति में आईं। इसमें खास आकर्षण पैसा कमाना था।
22.6 प्रतिशत महिलाएं अपने ही इलाकों में अपना जिस्म बेचती हैं। यानी ज्यादातर लोगों को उनके बारे में पता होता है। 23 प्रतिशत महिलाएं अंजान व्यक्ति अथवा दलाल के चक्कर में फंसकर वेश्यावृत्ति में आईं। रिपोर्ट के अनुसार, 13 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थीं, जो अपनी बहन या अन्य महिला रिश्तेदार के इस धंधे में होने के बाद दाखिल हुर्इं उन्हीं से प्रेरित होकर।
रिपोर्ट के अनुसार, 10 फीसदी महिलाएं प्यार में धोखा खाने पर इस व्यापार में आईं या फिर उन्हें शादी का झूठा प्रस्ताव देकर इस प्रोफेशन में धकेल दिया गया। 1.5 प्रतिशत महिलाएं अपने पति की सहमति से इस व्यापार में उतरीं। यह रिपोर्ट पश्चिम बंगाल पर आधारित है। इसे भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो आंकड़े थोड़े ऊपर-नीचे हो सकते हैं। (आलेख में दिए गए तथ्य और विचार लेखक द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित हैं)