पिछले माह चीन के एक वैज्ञानिक जियानकुई ने मां के गर्भ में ही जींस का संशोधन करके दो जुड़वां लड़कियों का जन्म करवा दिया। दुनिया के वैज्ञानिकों में खलबली मच गई। मनुष्य के बच्चे के जीन्स संशोधन किए जाने की नैतिकता पर प्रश्न खड़े हो गए। वैज्ञानिकों ने जियानकुई के इस कृत्य की घोर निंदा की। आनुवांशिक संशोधन, जिसे जेनेटिक इंजीनियरिंग या डीएनए बदलने की तकनीक भी कहा जाता है, पहली बार 1970 के दशक में प्रयोग में आई थी।
यह तकनीक चयनित जीव के जीन्स को दूसरे जीव में और गैर संबंधित प्रजातियों के बीच स्थानांतरित करने की प्रक्रिया है। पाठकों को बता दें कि एक जीएमओ (आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव) प्रयोगशाला की प्रक्रिया का परिणाम है, जहां एक प्रजाति के जीव के डीएनए में से जीन्स निकाले जाते हैं और कृत्रिम रूप से एक असंबंधित पौधे या जानवर के जीन्स में बलपूर्वक डाल दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया को जेनेटिक संशोधन (जीएम) भी कहा जा सकता है।
मानव अधिकारों के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मनुष्यों में इस प्रक्रिया को करने की छूट दे दी गई और यदि ये विधि कुछ धूर्त वैज्ञानिकों के हाथ लग गई तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। यह क्रिया अप्राकृतिक है और इससे मनुष्य की पूरी रेस बदल सकती है। पैदा होने वाले बच्चों के अधिकारों पर भी यह संशोधन प्रहार है क्योंकि बच्चों के जन्मजात गुणों को बदलने का अधिकार उसका स्वयं का है किसी दूसरे का नहीं। यहां तक कि मां-बाप का भी नहीं। यदि बच्चों के जींस बदलने का फैशन चल पड़ा तो अगली पीढ़ी में कुछ बच्चे संपादित जींस वाले होंगे और कुछ सामान्य।
जरा कल्पना कीजिए कि जो माता-पिता इस प्रक्रिया के दाम को वहन कर सकेंगे वे अपने बच्चों को अपनी चाहत के अनुसार उसके गुण-धर्म को संशोधित करवा लेंगे। इस तरह सम्पादित जींस वाले बच्चे सामान्य बच्चों से बेहतर होंगे जो निश्चित तौर पर सामान्य बच्चों के साथ अन्याय होगा।
मानव सभ्यता रंग, धर्म और जाति के भेद से अभी तक उभरी भी नहीं है कि यह एक नई कहानी आरंभ हो जाएगी। संशोधित डीएनए वाले बच्चे अपने आपको जैविक गुणों में दूसरों से बेहतर समझेंगे। इसलिए विभिन्न क्षेत्रों के दुनियाभर के लोगों ने जीन्स संशोधन पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है।
यद्यपि ऊपरी तौर पर चीन भी बच्चों की जींस संपादन के विरुद्ध है किन्तु स्पष्ट तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है कि जींस के संपादन करने वाले चीनी वैज्ञानिक को सरकारी स्वीकृति प्राप्त थी या नहीं। अब इस प्रक्रिया का दूसरा पहलू देखते हैं। जींस संपादन की क्रिया से अनेक बच्चों को वंशानुगत रूप से मिलने वाली बीमारियों जैसे एचआईवी, मोटापा इत्यादि से निजात दिलाई जा सकती है।
गर्भ में उन सारी बीमारियों के संशोधन हो जाएंगे और भविष्य में यह संशोधन टीके की तरह काम करेगा। ये वंशानुगत बीमारी नई पीढ़ी को छू भी नहीं सकेगी। तब तो गाएं भी अपनी आवश्यकता के अनुसार बनवाई जा सकेंगी। गाय पालकों को यदि बिना सींग की गाय चाहिए तो वैसा आर्डर कर सकेंगे। जिन्हें बछड़ा चाहिए वे बछड़ा बनाएंगे और जिन्हें दूध की गाय चाहिए वे बछड़ी का ऑर्डर करेंगे।
यह विवाद अनेक दशकों से है कि विज्ञान मनुष्य के लिए वरदान है या अभिशाप। वैज्ञानिक नोबल ने परमाणु ऊर्जा का आविष्कार किया था जिस आविष्कार ने आज की हमारी दुनिया ही बदल दी। बिना परमाणु ऊर्जा के आधुनिक युग का स्वरूप इतना चकाचौंधभरा नहीं होता। हम ऊर्जा के लिए तरसते रहते और बिजली हमें राशन में मिलती। दूसरी ओर उसी परमाणु ऊर्जा ने दुनिया के गोले को परमाणु बम में भी तब्दील कर दिया।
इस तरह एक ही आविष्कार क्षणभर में विध्वंस कर सकता है और पूरी पृथ्वी से हर प्रकार के जीवन को समाप्त कर सकता है। जब तक दुनिया को चेतना आई और परमाणु हथियारों पर नियंत्रण करने के कानून बने तब तक तो अमेरिका और रूस ने हजारों की संख्या में बम बनाकर अपने स्टोर में रख लिए। यही हाल जीन्स संशोधन का है। यदि यह अनियंत्रित हो गया तो दुनिया का स्वरूप क्या होगा वह कल्पना करना भी मुश्किल है। यदि इस विधि को सही उपयोग के लिए आगे बढ़ाना है तो अभी से अनेक तरह के नियंत्रण और दिशानिर्देश लागू करने होंगे अन्यथा यदि दुनिया के देशों में रेस प्रारंभ हो गई तो फिर इसका कोई अंत नहीं है।