मनुष्य अपने आपको कितना ही ज्ञानी समझे किंतु वह अपनी बुद्धि के इस्तेमाल से अभी तक केवल अपने जीवित रहने की क्षमताओं का विकास ही कर पाया है या फिर प्रकृति जिन नियमों का पालन करती है, उनको समझने का प्रयास कर रहा है। साथ ही मनुष्य ने अपनी समझ से जीने के लिए कुछ अचार संहिताएं बना लीं,चाहे कानून के माध्यम से या धर्म के माध्यम से।
किंतु यदि हम अपने ग्रह पृथ्वी से बाहर की बात करें तो हमारे वैज्ञानिक अपने सौरमंडल के बारे में कुछ छोटी-मोटी जानकारी जरूर निकाल चुके हैं, परंतु उसके बाहर की विस्तृत दुनिया के बारे में हमारा ज्ञान नगण्य है यानी फिलहाल हमारी स्थिति कुएं के एक मेंढक से अधिक कुछ नहीं है।
उदाहरण के लिए सुबह हम जिस दिशा में सूर्य देखते हैं, उसे पूर्व कहते हैं और शाम होते ही उसी दिशा को पश्चिम कहने लगते हैं। हम जानते हैं कि सूर्य स्थिर है, पृथ्वी ने अपनी दिशा बदली है, सूर्य ने नहीं यानी दिशाओं को हमने अपनी सुविधा के अनुसार गढ़ लिया है, क्योंकि यदि हम सूर्य की बात करें तो उसका पूर्व और पश्चिम कौन सी दिशा में है, हम नहीं बता सकते यानी हमारा ब्रह्मांड दिशारहित है। उसी तरह पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमने की गति और सूर्य की युति से हमने समय और काल की गणना का फॉर्मूला बना लिया। यद्यपि जो दिल्ली में समय है, वह न्यूयॉर्क में नहीं।
किंतु हम दिल्ली का समय देखकर न्यूयॉर्क का समय तो बता सकते हैं, वहीं पृथ्वी से बाहर इस समय का कोई अर्थ नहीं। चांद को ही लीजिए। उसके 24 घंटे पृथ्वी के 27 दिनों में समाप्त होते हैं। हर ग्रह-उपग्रह की अलग-अलग घड़ी है और अलग तारीख, वहीं सूर्य के लिए न तो कोई सुबह है, न कोई मौसम है और न ही समय है। यानी हमारी आज की समझ के अनुसार यदि सूर्य पर जीवन होता तो उसके लिए समय, दिशा और काल सब बेकार हैं। तो फिर प्रश्न उठता है कि ब्रह्मांड का समय और काल क्या है? विधाता के पास कौन सी जादुई घड़ी है?
वैज्ञानिकों के अनुसार अभी तक हम यही जानते हैं कि ब्रह्मांड की बस एक ही भोर हुई थी। उसे हम आरंभ कह दें या आमुख। आरंभ हुआ महाविस्फोट के साथ जिसने इस ब्रह्मांड की प्रस्तावना लिख दी। उस घटना को 13 करोड़ वर्ष बीत चुके हैं। किंतु अभी भी हमें पता नहीं है कि हम ब्रह्मांड के किस युग में जी रहे हैं। क्या हम बाल्यकाल में हैं या उसकी तरुणाई में?
बस हमें इतना पता है कि हम बहते चले जा रहे हैं इस अनंत में। जहां समय, काल, दिशाएं मानव के दिए बस नाम हैं, असल कुछ नहीं। आज हमने इस प्रश्न को फिर इसलिए उठाया कि पिछले सप्ताह वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे सिग्नल पकड़े, जो महाविस्फोट के समय निकले थे। ये सिग्नल पकड़ने के लिए पहले इतने आधुनिक यंत्र नहीं थे, जो करोड़ों वर्षों से ब्रह्मांड में सैर कर रहे संकेतों और हवाई जहाज या अन्य संकेतों में भेद कर सकें। अब वे उन्हें पकड़ पा रहे हैं।
वैज्ञानिक इन संकेतों को पाकर बड़े प्रसन्न हैं, क्योंकि वे जानना चाहते हैं कि शून्य में से यह अनंत ब्रह्मांड पैदा कैसे हुआ? उस महाविस्फोट में ऐसा क्या हुआ था कि क्षणभर में ब्रह्मांड की रचना हो गई? करोड़ों आकाशगंगाएं हैं जिनमें हैं खरबों तारे और ग्रह। अब वैज्ञानिक इन संकेतों की थाह में पहुंचने का प्रयास करेंगे।
अब सोचिए, ब्रह्मांड के भोर में जन्मीं करोड़ों आकाशगंगाओं में से हम किसी पिद्दी आकाशगंगा के किसी अदने से ग्रह पर जमीन-जायदाद के केस में उलझे हैं। मानव इतिहास के बहुत छोटे से काल में मनुष्य ने सहस्रों युद्ध लड़कर अपनी शक्तियों और संसाधनों को जाया किया है। यदि मनुष्य ने ये ही संसाधन खोजों में लगाए होते तो शायद आज हम कई ग्रहों के स्वामी होते। (फ़ाइल चित्र)