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...क्या गम है जिसको छुपा रहे हो?

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राजीव रंजन तिवारी

‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो?’ याद तो होगा ही। वर्ष 1983 में एक फिल्म आई थी ‘अर्थ’। उसी फिल्म के लिए इस कालजयी गजल को प्रख्यात गीतकार कैफी आजमी ने लिखा था, जिसे संगीत से संवारा था जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने और गाया था जगजीत सिंह ने। आप सोच रहे होंगे इतने गर्मागर्म राजनीतिक और कूटनीतिक माहौल में इस गजल का क्या औचित्य है?
 
जी हां, मैं बताता हूं। हाल ही में भारतीय सेना ने एलओसी (लाइन ऑफ कंट्रोल) पार कर पाकिस्तानी सीमा के अंदर सर्जिकल स्ट्राइक किया था। भारतीय मीडिया के एक बड़े खेमे द्वारा यह बताया गया कि इस सैन्य कार्रवाई में तीन से चार दर्जन आतंकियों समेत दो पाकिस्तानी सैनिकों को मार दिया गया। फिर क्या था, केन्द्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के समर्थक सोशल साइट्स फेसबुक, व्हाट्स एप्प और ट्‍विटर पर ठहाके लगाते हुए इस कदर हमलावर हुए कि अन्य विचारधाराओं के लोग सन्न रह गए। तभी कुछ लोगों के जुबान से यह सुनने को मिला- ‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो?’
 
आखिर यह बात समझ से परे है कि सेना की सर्जिकल स्ट्राइक, जो हालात के अनुरूप रुटीन की कार्रवाई थी, फिर सिर्फ खुद को ‘राष्ट्रभक्त’ बताने वाले लोग इतने आक्रामक क्यों हो गए? वो इस कदर शोर करके आखिर क्या छिपाना चाह रहे थे अथवा अपने शोर में वो किस आवाज को दबाना चाह रहे थे। आखिरकार मुंहामुंही वो बात भी सामने आ ही गई, जिसे दबाने की कोशिश थी। बताया गया कि डीजी बंसल आत्महत्या प्रकरण में मिले सुसाइड नोट में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का नाम लिखा हुआ है। अब तो कुछ बातें समझ में आ ही गई होंगी। खैर, समझ में नहीं आई तो भी कोई बात नहीं, हम अपना काम करते हैं।
 
गौरतलब है कि 18 सितम्बर, 2016 को सेना की उड़ी स्थित कैम्प पर हुए आतंकी हमले में 19 भारतीय सैनिक मारे गए थे तथा दो दर्जन गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। इस दौरान जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतीय सैनिकों ने भी सभी चार आतंकियों को मार गिराया था। इतना होते ही पूरे देश में जंगल की आग तरह आक्रोश फैल गया। हर कोई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लोकसभा चुनाव 2014 के प्रचार के दरम्यान किया गया उनका वादा याद दिलाने लगा। इसके अंतर्गत प्रधानमंत्री के 56 इंची सीना से लेकर एक के बदले 10 सिर लाने वाली बातों को जोर-शोर से फैलाया जाने लगा।
 
खास बात यह है कि पीएम मोदी पर जुबानी हमला केवल उनके राजनीतिक विरोधी ही नहीं, बल्कि समर्थक भी कर रहे थे। इस बीच भारतीय मीडिया के एक खेमे ने भी झूठ फैलाकर देश के आक्रोशित लोगों को शांत करने का प्रयास किया। पर, भारतीयों का गुस्सा इतना जल्दी थोड़े ही शांत होने वाला था। ये लोग नेस्तनाबूद पाकिस्तान देखना चाह रहे थे। तमाम राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय उतार-चढ़ाव के बीच भारतीय सेना भी अपनी गोपनीय रणनीति तैयार करने में लगी थी, जिसका बोध उन्हें ट्रेनिंग के दौरान ही कराया दिया जाता है। शासन-सत्ता से अलग सैन्य अफसरों को ट्रेनिंग के दौरान ही यह बता दिया जाता है कि किस हालात में उन्हें क्या करना है। अपने प्रशिक्षण के अनुरूप भारतीय सेना अपनी तैयारियां कर रही थी। तैयारी पूरी होने के बाद 28 सितम्बर, 2016 की रात में कश्मीर के निकट पाकिस्तान सीमा के अंदर प्रवेश कर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया गया। जिसे नकारते हुए पाकिस्तान ने कहा कि भारतीय सैनिकों की गोलीबारी में उनके दो सैनिक मारे गए हैं।
 
इन सारे मामलों से इतर आर्थिक भ्रष्टाचार के कथित आरोपी डीजी बंसल के आत्महत्या प्रकरण में 28 सितम्बर, 2016 को ही एक सुसाइड नोट सामने आया, जिसमें साफ तौर पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का नाम लिखा हुआ था। यदि राजनीति की बात करें तो निश्चित रूप से सुसाइड नोट में अमित शाह के नाम का मामला जोर पकड़ता और और आरएसएस के दबाव में अमित शाह को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाया भी जा सकता था। इतना बड़ा मामला। सत्तारूढ़ दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर आपराधिक आरोप।
 
स्वाभाविक है, भाजपा और सरकार से जुड़े लोग तथा उनके अंधभक्त इसे पचा नहीं पाते। फिर क्या था, मुद्दे की तलाश में भक्त समर्थकों का मन दर-दर भटकने लगा। इसी बीच सेना ने उन्हें सर्जिकल स्ट्राइक थमा दिया। अब शुरू हो गई असली कहानी। देखते-देखते चौक-चौराहों से लेकर सोशल साइट्स फेसबुक, ट्‍विटर और ह्वाट्स एप्प पर समर्थकों ने समवेत हमला बोल दिया। वह सिर्फ शोर था। जिस शोर की गूंज में कुछ दबाने की कोशिश थी। बाद में पता चला कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह वाले मामले को तूल पकड़ने से रोकने की कोशिश में ही ये भक्त हमलावर हुए। इसके पीछे एक कारण यह भी था कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में वर्ष 2017 के आरंभ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। यदि अमित शाह वाला मामला तूल पकड़ता तो इन राज्यों के चुनाव में भाजपा की भारी किरकिरी होती और विपक्षी दलों को बैठे-बिठाए हमला करने का मौका मिल जाता। खैर, यह आपराधिक मामला है, इसमें कानून अपना काम करेगा। क्या काम करेगा, वो खुद जाने।
 
कुल मिलाकर सवाल यह उठ रहा है कि लाइन ऑफ कंट्रोल पर सर्जिकल स्ट्राइक करके भारत कौन से मकसद हासिल करना चाहता है? कहीं इसके परिणाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ना भुगतने पड़ें। आपको बता दें कि ब्रिटेन में पाकिस्तानी मूल के एक व्यक्ति की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर हो रही है जिसमें वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले की गर्दन दबाते हुए मुस्कुरा रहा है। यह मुस्कुराहट वही जज्बात हैं जो सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उफान पर हैं। भारत में बच्चे-बच्चे की जबान पर है। और पाकिस्तान में भी। कश्मीर की बात भी बच्चा-बच्चा कर रहा है, लेकिन यह कोई नई बात नहीं है।
 
भारत और पाकिस्तान दोनों में बच्चे कश्मीर का नाम सुनते-सुनते बड़े होते हैं। बड़े होते-होते इतना सुन चुके होते हैं कि कश्मीर उनके लिए एक आबादी का नाम नहीं रह जाता, बस एक मसला रह जाता है। एक मसला जो जज्बाती है और भूख-प्यास ही नहीं, जिंदगी से भी बड़ा। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दोनों तरफ के जज्बात उबाल मार रहे हैं। भौंहें तनी हुई हैं, मुट्ठियां भिंची हुई हैं। ठीक उसी तरह जैसे मुंबई आतंकी हमले के बाद या संसद पर हमले के बाद हुआ था, लेकिन उस बार से इस बार तक एक फर्क है। सर्जिकल स्ट्राइक लफ्ज का फर्क। 
 
भारतीयों को लग रहा है कि भारत अमेरिका और इस्राएल बन गया है। दुश्मन के घर में घुसकर मार रहा है। पर भारत अगर वाकई अमेरिका या इसराइल बन गया है या बन रहा है, तो भारतीयों के साथ क्या हो सकता है, यह अमेरिकी विदेश मंत्रालय की विदेश जाने वाले अमेरिकियों के लिए जारी होने वाली एडवाइजरी से समझा जा सकता है। उस एडवाइजरी से एक ही बात समझ आती है कि कोई अमेरिकी धरती पर कहीं सुरक्षित नहीं है। क्योंकि अमेरिका के साथ किसी को सहानुभूति नहीं है। उसके यहां डर पसरता है, हमले होते हैं और मासूम लोग मरते हैं। लेकिन कोई सहानुभूति की लहर नहीं उठती। ऐसा उन सर्जिकल स्ट्राइक्स की वजह से है, जो अमेरिका दुनियाभर में अंजाम देता है। लिहाजा, भारतीय अगर इस बात पर खुश हैं कि भारत इसराइल या अमेरिका बन रहा है तो इसका दूसरा पहलू भी देखना चाहिए।
 
दूसरा पहलू यह है कि भारत पाकिस्तान के बिछाए जाल में फंस रहा है। कश्मीर में पिछले डेढ़ महीने में 100 से ज्यादा लोग हिंसा में मारे जा चुके हैं। दुनिया ने कहीं चूं तक नहीं की। ना यूएन में कोई प्रस्ताव पास हुआ, ना यूरोपीय संघ ने गुस्सा जाहिर किया और ना अमेरिका ने अफसोस जताया। इसकी वजह है दुनिया में भारत की साख। दुनिया मानकर चल रही है कि भारत एक शांतिप्रिय मुल्क है और अगर लोग मर रहे हैं तो मजबूरन हो रहा होगा क्योंकि भारत तो एक पीड़ित है और पाकिस्तान को यही बर्दाश्त नहीं है। पाकिस्तान चाहता है कि लोग कश्मीर पर बात करें और भारत को पीड़ित नहीं आक्रांता मानें। बहरहाल, देखना है कि क्या-क्या होता है? 

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