tailor kanhaiya lal murder case : गर्दन कटी, भरोसा बुरी तरह कटा....उदयपुर हत्याकांड की इस पाशविक और वहशियाना घटना पर शब्द जख्मी हैं... खून वहां बहा लेकिन वही खून यहां हमारी नसों में जम गया है...मस्तिष्क की शिराएं सुन्न है....
हम कहां रह रहे हैं ये कैसा देश बना रहे हैं हम???? शौर्य और वीरता की धरा उदयपुर में ऐसा कायराना कृत्य? इस घटना ने समूचे देश को दहला दिया है। आप देखिए वीडियो बार बार देखिए किस भरोसे और इत्मीनान के साथ नाप ले रहे थे कन्हैयालाल और एक बार भी उस भरोसे पर मन न भर आया जाहिलों का....
कौन सा धर्म गला रेतने की तालीम देता है??? त्योहारों पर गले मिलने वाले देश में गले काटे जा रहे हैं और हम तमाशबीन तालीबान बने हैं। कहाँ गई हमारी नैतिकता हमारी इंसानियत हमारी अदब हमारी तरबियत... कैसे कर सकता है कोई उस पर वार जो निहत्था है.... जिसे इल्म भी नहीं था कि नाप लेते हुए अगले ही पल उसकी गर्दन भी नप जाएगी...
युद्ध में भी अगर दुश्मन की तलवार गिर जाए तो वीर ऐसा कायराना वार नहीं करते बल्कि तलवार को थमा कर फिर युद्ध जारी रखते हैं पर यह हरकत हमारी मानवीय और सहनशील संस्कृति पर तमाचा है। हमें इस 'सोच' के "पोषक तत्वों" को कमजोर करना होगा। कहाँ से आ रही है यह दुर्गंधयुक्त सोच कि जो हमारे अनुसार नहीं है उसे नष्ट ही कर दो....
धर्म दोषी नहीं है हमारी संकुचित सोच और नकारात्मक नजरिये से हम इंसान से शैतान हो जाते हैं और शैतान से हैवान... यह गंदी और घिनौनी घटना इंसान के गिरते चरित्र को रेखांकित करती है।
किस पर भरोसा करें, ग्राहक तो भगवान का रूप होता है ये कैसा ग्राहक था जो गला काट कर दानव बना और ऊपर से वहशियाना हरकत यह कि वीडियो पर कबूलनामा ??? क्या अब इस देश में किसी का खौफ नहीं,किसी की परवाह नहीं... अपराध अपराध है चाहे किसी धर्म का कोई शख्स करे, क्या ऑल्ट न्यूज़ के जुबेर के साथ खड़े रहने वाले बुद्धिजीवी कन्हैया के लिए शब्द अपने कंठ से धकेलेंगे??? गलत को गलत कहने का साहस है उनमें जो छुपकर वार करने वालों के लिए लिख रहे हैं कि उकसाया किसने??
क्या हमारे धर्म,भगवान, रीतिरिवाज, परम्परा की जड़ें इतनी कमजोर हैं कि किसी के कुछ कहने भर की देर हुई और हम सारे देश की सम्पदा जलाने पर आमादा हो जाएं?
ये तमाम चीजें जो हमें लगता है कि धर्म के नाम पर करना चाहिए वास्तव में हमें भीतर से खोखला कर रही है, हमारी सोच को विकृत और समझ को कंगाल बना रही है....अपनी-अपनी परवरिश के अनुसार हम सभ्य-असभ्य हो सकते हैं पर हमें कोई हक नहीं कि किसी इंसान को जानवर की तरह नृशंस तरीके से खत्म कर दें...किसी की भी जान लेने का हक किसी को भी नहीं है....अगर गुनाह किया हो तब भी नहीं और फिर यहाँ तो गुनाह बस इतना था कि ग्राहक को ग्राहक समझा....
कोई उपदेश नहीं पर इस तरह के कलंक देश की फिज़ां को खराब न करने पाए ....यह सब्र हमें ही रखना होगा...यह इस समय देश की बड़ी जरूरत है....
दो मिनट का मौन उस भरोसे के लिए जो टूटा उस टेलर की दुकान पर जहां बेफिक्री से एक बंदा अपनी 'जान के ग्राहक' का नाप ले रहा था....
हालात ए जिस्म सूरत ए जां और भी खराब
चारों तरफ खराब, यहां और भी खराब
नज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे
होंठों पे आ रही है जुबां और भी खराब...(दुष्यंत कुमार)